लालू के विरोध के बाद भी जीतते रहे हैं पप्पू यादव, मधेपुरा में शरद की राह मुश्किल
नई दिल्ली। मधेपुरा लोकसभा सीट पर तीसरे चरण के तहत 23 अप्रैल को चुनाव होना है। मौजूदा सांसद पप्पू यादव ने जिस तरह से बगावत का बिगुल फूंका है उससे मधेपुरा सुर्खियों में है। पप्पू यादव ने एलान किया है कि वे हर हाल में यहां से चुनाव लड़ेंगे। पप्पू यादव 28 मार्च को मधेपुरा सीट के लिए नामांकन करेंगे। इस घोषणा के बाद शरद यादव की राह मुश्किल होती दिख रही है।
पप्पू यादव की राजद से ठनी
पप्पू यादव कोशी इलाके के प्रभावशाली नेता माने जाते हैं। 2004 के उपचुनाव और 2014 में वे राजद के टिकट पर मधेपुरा सीट से सांसद चुने गये थे। 2013 में लालू प्रसाद के सजायाफ्ता होने के बाद पप्पू यादव राजद की विरासत संभालने की चाहत रखने लगे। पप्पू खुद को यादवों का सबसे बड़ा नेता बताने लगे। इस मुद्दे पर उनका लालू प्रसाद से मनमुटाव शुरू हुआ। तेजस्वी तो पप्पू से खार खाने लगे। यह अदावत नफरत में बदल गयी। पप्पू यादव को राजद से निलंबित कर दिया गया। तेजस्वी पप्पू के कट्टर विरोधी बन गये। तेजस्वी की दखल के कारण ही पप्पू की कांग्रेस में इंट्री नहीं हो सकी। राजद से दरकिनार किये जाने के बाद पप्पू कांग्रेस में जाना चाहते थे। कांग्रेस भी जीताऊ उम्मीदवार आता देख कर तैयार थी। पप्पू की पत्नी रंजीत रंजन सुपौल से कांग्रेस की सांसद भी हैं। लेकिन तेजस्वी के वीटो के कारण पप्पू कांग्रेस में नहीं जा सके। पप्पू की राह बंद करने के लिए राजद ने यह सीट अपने पास रख ली। कांग्रेस में जा कर पप्पू किसी दूसरी सीट से भी चुनाव लड़ने के लिए तैयार थे। किंतु तेजस्वी ने ऐसा होने नहीं दिया। इस अपमान से तिलमिलाये पप्पू ने अपने दम पर मधेपुरा से चुनाव लड़ने की घोषणा की है।
महागठबंधन की पहली लिस्ट से मंसूबों पर फिरा पानी तो अब क्या करेंगे पप्पू यादव?
शरद यादव की राह मुश्किल
मध्य प्रदेश के शरद यादव बड़े समाजवादी नेता रहे हैं। लेकिन पिछले दो दशक से उनकी संसदीय राजनीति लालू-नीतीश पर निर्भर रही है। वे कभी लालू प्रसाद के साथ रहे तो कभी नीतीश कुमार के साथ । जदयू का सांसद रहते 2017 में शरद यादव की नीतीश से तकरार शुरू हुई। फिर वे जदयू से अलग हो गये। उन्होंने लोकतांत्रिक जनता दल के नाम से एक नया दल बनाया। इस दल का कोई राजनीतिक वजूद नहीं बन पाया तो वे लालू के दरबार में गये। लालू ने शरद की पार्टी को कोई टिकट देने से मना कर दिया। मजबूर शरद यादव अब लालू के सिम्बल, लालटेन छाप से चुनाव लड़ेंगे। चुनाव बाद शरद की पार्टी का राजद में विलय होना है। शरद यादव को मधेपुरा से राजद का उम्मीदवार बनाया जाएगा। शरद यादव जब नीतीश के साथ थे तो उन्होंने 1999 में लालू प्रसाद जैसे महाबली को लोकसभा चुनाव में पटकनी दी थी। इसके अलावा शरद इस सीट पर 1991,1996 और 2009 में जीत चुके हैं। लेकिन पप्पू यादव मधेपुरा के लिए बहुत मजबूत उम्मीदवार हैं। 2014 में पप्पू, शरद को हरा चुके हैं। अब अगर पप्पू चुनाव लड़ते हैं तो शरद की राह मुश्किल हो जाएगी।
लालू के विरोध के बाद भी जीतते रहे हैं पप्पू
1990 में पप्पू यादव का बिहार की राजनीति में उदय हुआ था। उस समय वह केवल 25 साल के थे और मधेपुरा के सिंहेश्वर से निर्दलीय चुनाव जीते थे। बिहार में यह दौर पिछड़ावाद के उभार का था। 1990 में लालू यादव की सरकार को पूर्ण बहुमत हासिल नहीं था। लालू निर्दलीय और अन्य दलों के सहयोग से सरकार चला रहे थे। इसी दौर में युवा पप्पू लालू के करीब आये। लालू को पप्पू की जरूरत थी लेकिन वह इस उभरते नेता से परहेज भी करते थे। मजबूत नेता को लालू तरजीह नहीं देते थे । 1991 में जब लोकसभा का चुनाव आया तो पप्पू ने लालू से चुनाव लड़ने के लिए टिकट मांगा । लालू ने इंकार कर दिया। 26 साल के नौजवान पप्पू ने लालू की परवाह नहीं की। 1991 में पूर्णिया से निर्दलीय की पर्चा दाखिल कर दिया। लालू के पुरजोर विरोध के बावजूद पप्पू यादव यह चुनाव जीतने में कामयाब हुए। तभी से वे कोशी इलाके में एक राजनीतिक ताकत बन गये। 2014 में नरेन्द्र मोदी की लहर के बाद भी वे मधेपुरा से जीते थे। उन्होंने अपने दम पर अपनी पत्नी रंजीत रंजन को भी सुपौल से सांसद बना दिया। वे कांग्रेस के टिकट पर चुनवा लड़ रह थीं लेकिन जीत पप्पू ने ही दिलायी थी। सुपौल में कांग्रेस का कोई जनाधार नहीं था लेकिन पप्पू ने पिछड़ों की राजनीति को ऐसा साधा कि रंजीत रंजन लोकसभा पहुंच गयीं। अब मधेपुरा से पप्पू यादव की उम्मीदवारी को गंभीर चुनौती माना जा रहा है।
लोकसभा चुनाव से पहले लालू की पार्टी को बड़ा झटका, RJD की प्रदेश अध्यक्ष BJP में शामिल