मोदी को सत्ता से दूर रखने के लिए अब आखिरी दांव चलेंगे 21 विपक्षी दल
पीएम मोदी को फिर से सरकार बनाने से रोकने के लिए 21 विपक्षी दल अब अपना आखिरी दांव आजमाने की कोशिश में हैं। जानिए क्या है उनकी रणनीति।
नई दिल्ली। 2019 के लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Elections 2019) के पांच चरण पूरे होने के बाद अब बाकी बचे दो चरणों के चुनाव को लेकर सियासी सरगर्मियां तेज हो गई हैं। 23 मई को चुनाव नतीजे आने के साथ ही यह स्पष्ट हो जाएगा कि देश में अगली सरकार किसकी बनने जा रही है। इस बीच सूत्रों के हवाले से एक बड़ी खबर यह है विपक्षी दल सातवें चरण का मतदान खत्म होने के बाद राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद (President Ramnath Kovind) से मिलने की योजना बना रहे हैं। दरअसल, विपक्षी दल राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से मिलकर उनके सामने यह मांग रखने वाले हैं कि अगर लोकसभा चुनाव में खंडित जनादेश (Lok Sabha Election Results) आता है तो ऐसी स्थिति में सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी को सरकार बनाने के लिए ना बुलाया जाए।
क्यों यह 'असामान्य कदम' उठाना चाहता है विपक्ष?
एनडीटीवी की खबर के मुताबिक, केंद्र में भाजपा सरकार के विरोधी 21 सियासी दल एक पत्र पर हस्ताक्षर करने की तैयारी में हैं। इन दलों की योजना है कि लोकसभा चुनाव के परिणाम घोषित होने के बाद वो केंद्र में एक वैकल्पिक सरकार को अपना समर्थन देने के लिए इस पत्र को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को सौंपेंगे। सूत्रों का कहना है कि विपक्षी दल यह 'असामान्य कदम' इसलिए उठाना चाहते हैं ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि राष्ट्रपति लोकसभा चुनाव के बाद किसी भी सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी को सरकार बनाने का निमंत्रण ना दें, जिससे उस पार्टी को क्षेत्रीय दलों या किसी गठबंधन के घटक दलों को तोड़ने की कोशिश करने का मौका ना मिल सके।
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1998 में गिर गई थी वाजपेयी सरकार
543 सीटों वाली लोकसभा में बहुमत के लिए 272 सीटों का आंकड़ा चाहिए। 2014 के लोकसभा चुनावों में भाजपा को प्रचंड बहुमत के साथ अकेले ही 282 सीटों पर जीत मिली थी। वहीं लोकसभा में एनडीए के सांसदों की संख्या 336 थी। आपको बता दें कि इससे पहले साल 1998 में तत्कालीन राष्ट्रपति केआर नारायणन ने अटल बिहारी वाजपेयी से कहा था कि वो सरकार बनाए जाने के लिए बुलाने से पहले और सदन में विश्वास प्रस्ताव हासिल करने से पहले उनके सामने समर्थन पत्र पेश करें। उस लोकसभा चुनाव में भाजपा ने 178 सीटों पर जीत हासिल की थी, जबकि उनके गठबंधन को 252 सीटें मिली थी। अटल बिहारी वाजपेयी ने बाहरी समर्थन से किसी तरह केंद्र में अपनी सरकार का गठन कर लिया, लेकिन महज 20 दिन बाद ही केवल एक वोट से उनकी सरकार गिर गई।
पिछले 5 साल में सामने आ चुके हैं कई विवाद
गौरतलब है कि पिछले पांच सालों में कई राज्यों में सरकार गठन को लेकर काफी विवाद सामने आए हैं। मणिपुर, गोवा और कर्नाटक में चुनाव के बाद बनी सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी और चुनाव बाद बने गठबंधन को सरकार का गठन विवादों में रहा है। कर्नाटक में जब सरकार बनाने के लिए कांग्रेस ने जेडीएस के साथ गठबंधन किया तो भाजपा ने इसका विरोध किया था। कर्नाटक में प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष बीएस येदुरप्पा ने राज्यपाल से मिलकर मांग की, कि सबसे बड़ा दल होने के नाते भाजपा को सरकार बनाने और सदन में विश्वास मत हासिल करने का मौका मिलना चाहिए। इसके बाद राज्यपाल से बीएस येदुरप्पा को सरकार बनाने का मौका मिला, लेकिन वो सदन में बहुमत साबित नहीं कर पाए।
गैर-कांग्रेस, गैर-भाजपा मोर्चा बनाने की भी कोशिश
आपको बता दें कि इन 21 राजनीतिक दलों के बीच राष्ट्रीय स्तर पर हालांकि कोई औपचारिक गठबंधन नहीं है लेकिन इन सभी दलों ने भाजपा को साधने के लिए एक ही मोर्चे पर काम किया है। ऐसे भी संकेत हैं कि केंद्र में सरकार गठन के लिए अन्य समीकरणों पर भी विचार किया जा सकता है। इनमें तेलंगाना के मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव की पहल के तहत एक गैर-कांग्रेस, गैर-भाजपा मोर्चा बनाने की भी कोशिश हैं। लोकसभा चुनाव के अंतिम चरण का मतदान 19 मई को होगा और इसके बाद 23 मई को चुनाव परिणाम घोषित कर दिए जाएंगे।