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लोकसभा चुनाव 2019 : आडवाणी की बात नहीं, नीयत पर है संदेह : नज़रिया

आज सवाल आडवाणी जी की बात का नहीं, उनकी नीयत का है. इस स्थिति के लिए वे खुद जिम्मेदार हैं. जीवन के हर क्षेत्र में व्यक्ति को यह जरूर पता होना चाहिए कि कब दूसरों के लिए जगह खाली कर देनी है. क्योंकि कोई सम्मान देता नहीं, उसे अर्जित करना पड़ता है. आडवाणी ने पिछले कुछ सालों में सम्मान की अपनी अर्जित पूंजी गंवा दी है.

By प्रदीप सिंह
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लाल कृष्ण आडवाणी, बीजेपी
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लाल कृष्ण आडवाणी, बीजेपी

लंबी चुप्पी के बाद आखिरकार लाल कृष्ण आडवाणी बोले. बात तो उन्होंने सही कही पर इरादा भी सही है इसमें संदेह है. वे जो बोले वह उनकी पार्टी की बजाय उसके विरोधियों की मदद करने वाला है.

इस संदेह की एक पृष्ठभूमि है, जिसकी शुरुआत 2013 में गोवा में हुई थी. इन छह सालों में आडवाणी ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को उनके मौजूदा रूप में कभी स्वीकार नहीं किया.

वहीं, मोदी और अमित शाह इस दौरान हमेशा आशंकित रहे कि न जाने कब आडवाणी क्या बोल दें. उन्हें आशंका थी और है कि आडवाणी जब भी बोलेंगे उनके लिए मुश्किल ही पैदा करेंगे.

दरअसल, आडवाणी ने कभी किसी के नेतृत्व को मन से स्वीकार नहीं किया. पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी काफी समय तक इसका अपवाद रहे. उसका कारण यह है कि वाजपेयी की मदद से ही उन्होंने पार्टी के अंदर उन्हें चुनौती दे सकने वाले हर नेता को हाशिए पर धकेला.

नानाजी देशमुख की तस्वीर पर फूल अर्पित करते पीएम नरेंद्र मोदी
Getty Images
नानाजी देशमुख की तस्वीर पर फूल अर्पित करते पीएम नरेंद्र मोदी

नानाजी के मंत्री बनने का डर

बात को समझने के लिए साल 1977 का एक उदाहरण जरूरी है. जनता पार्टी लोकसभा चुनाव जीत गई. जनसंघ उसका घटक दल था. नानाजी देशमुख की जेपी आंदोलन में अग्रणी भूमिका थी. वे बहुत अच्छे संगठनकर्ता, वक्ता और अजातशत्रु माने जाते थे. हर पार्टी में उनके संबंध थे. मोरारजी देसाई ने मंत्रियों की सूची बनाई तो जनसंघ घटक से तीन नाम थे- वाजपेयी, आडवाणी और नानाजी.

नानाजी को उद्योग मंत्रालय दिया जा रहा था. आडवाणी को लगा कि इससे नानाजी का कद बढ़ जाएगा. वे सह सर कार्यवाह भाऊराव देवरस के पास गए. कहा कि सब लोग सरकार में चले जाएंगे तो संगठन की उपेक्षा होगी. रज्जू भइया को नानाजी के पास भेजा गया. वे नानाजी के यहां गए और सीधे पूछा 'क्या नाना तुम भी सरकार में जाना चाहते हो?'

नानाजी ने कहा, 'नहीं मैंने तो ऐसा नहीं कहा.' उनसे कहा गया तो मंत्री बनने से मना कर दो. उन्होंने मोरारजी को फोन कर दिया. नानाजी को समझ में आ गया कि अब उनके लिए आगे का रास्ता बंद हो गया है. उन्होंने सैद्धांतिक फैसला लिया कि साठ साल के बाद नेताओं को रिटायर हो जाना चाहिए और खुद रिटायर हो गए. पार्टी में संदेश चला गया.

आडवाणी

दोबारा अध्यक्ष नहीं बन सके जोशी

इसी तरह डॉ. मुरली मनोहर जोशी संघ की मदद से पार्टी के अध्यक्ष बन तो गए लेकिन दूसरा कार्यकाल नहीं ले पाए और न कभी फिर अध्यक्ष बन पाए. डॉ. जोशी को दूसरा कार्यकाल मिलने से रोकने के लिए आडवाणी, वाजपेयी के पास अध्यक्ष बनने का प्रस्ताव लेकर गए थे. यह दीगर बात है कि वाजपेयी ने सिरे से मना कर दिया.

यह बात 1993 की है. उस समय वाजपेयी को हटाकर आडवाणी लोकसभा में विपक्ष के नेता बन चुके थे. उसके बाद उन्होंने 2002 में वाजपेयी को हटाकर प्रधानमंत्री बनने की कोशिश की ये तो ताजा इतिहास है. इत्तफाक है कि इस बार भी यह प्रस्ताव लेकर रज्जू भइया ही वाजपेयी के पास गए.

नरेंद्र मोदी आडवाणी के प्रिय पात्रों में थे. 2002 के गुजरात दंगे के बाद मोदी की कुर्सी बचाने में आडवाणी की सबसे अहम भूमिका थी. हालांकि, 2005 में आडवाणी को पार्टी से निकाले जाने से बचाने में मोदी की भूमिका कम महत्वपूर्ण नहीं थी.

नरेंद्र मोदी, बीजेपी
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नरेंद्र मोदी, बीजेपी

इस सबके बावजूद जब मई 2013 में गोवा में मोदी को लोकसभा चुनावों के लिए पार्टी की अभियान समिति का अध्यक्ष बनाने की बात आई तो आडवाणी इसे स्वीकार करने को तैयार नहीं हुए. वे समझ रहे थे कि इसका अगला कदम प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी है. वे पार्टी के इस फैसले को रोकने के लिए गोवा कार्यकारिणी में गए ही नहीं. उन्हें लगा कि उनकी अनुपस्थिति में यह फैसला नहीं होगा.

उसके बाद जब पार्टी के संसदीय बोर्ड में नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाए जाने का प्रस्ताव आने वाला था तो वे आखिरी मिनट तक उसे रुकवाने की कोशिश करते रहे. उन्हें लगता था कि संसदीय बोर्ड में उनका बहुमत है.

एनडीए छोड़कर जाने की कगार पर खड़े नीतीश कुमार को उन्होंने संदेश भिजवाया कि हमारे पुराने अध्यक्ष (नितिन गडकरी) ने जो वादा किया था उस पर हम कायम हैं. संसदीय बोर्ड में हमारा बहुमत है और हम मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार नहीं बनने देंगे. उसके बाद जो हुआ वह बताने की जरूरत नहीं है.

नरेंद्र मोदी, अमित शाह, बीजेपी
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नरेंद्र मोदी, अमित शाह, बीजेपी

आडवाणी से मोदी-शाह को डर

आडवाणी आज तक इस बात को स्वीकार नहीं कर पाए हैं. यही वजह है कि मोदी और अमित शाह आज भी आशंकित रहते हैं. शायद इसी अविश्वास या डर के कारण पार्टी नेतृत्व ने उन्हें कोई संवैधानिक पद नहीं दिया.

दो साल पहले उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा की अप्रत्याशित जीत हुई. नतीजों के बाद हुई पहली संसदीय दल की बैठक (उस समय संसद का बजट सत्र चल रहा था) में आडवाणी ने पार्टी के एक वरिष्ठ नेता से कहा कि वे आशीर्वाद देने के लिए कुछ बोलना चाहते हैं. उनसे उसी विनम्रता से कहा गया कि 'दादा आप यहीं से आशीर्वाद दे दीजिए. कुछ गड़बड़ हो गई तो समस्या हो जाएगी.'

आडवाणी ने अपने ब्ल़ॉग में जो लिखा है उस बात से कोई असहमत नहीं हो सकता. पर ऐसे समय जब पार्टी राष्ट्रवाद और राष्ट्रीय सुरक्षा को लोकसभा चुनावों के विमर्श का केंद्र बनाना चाहती है, यह बयान नेतृत्व को कटघरे में खड़ा करने की कोशिश नज़र आता है. इसीलिए इसके असर को कम करने के लिए प्रधानमंत्री ने तुरंत ट्वीट करके कहा, 'आडवाणी जी ने भाजपा के मूल तत्व को सच्चे रूप में प्रस्तुत किया है.'

आडवाणी

विडंबना देखिए कि आडवाणी को अपने उत्कर्ष के दिनों में कुछ ऐसा ही वाजपेयी से सुनना पड़ा था. फर्क यह है कि उस समय वाजपेयी आडवाणी की तरह अस्ताचल में नहीं गए थे.

बात 1990 की है जब आडवाणी ने सोमनाथ से अयोध्या रथ यात्रा का फैसला किया. भोपाल में पार्टी की राष्ट्रीय परिषद की विस्तारित बैठक में इसका औपचारिक ऐलान हुआ. अधिवेशन के समापन भाषण में वाजपेयी ने आडवाणी की ओर देखते हुए कहा कि 'आडवाणी जी इस बात को याद रखिएगा कि आप अयोध्या जा रहे हैं, लंका नहीं.' आडवाणी के लोगों ने तब इसे वाजपेयी की कुंठा और हताशा के रूप में लिया था. आज इतिहास अपने को दोहरा रहा है.

सार्वजनिक जीवन में कई बार बात सही या गलत होने से ज्यादा यह अहम हो जाता है कि वह किस समय और किस मकसद से कही गई है.

आज सवाल आडवाणी जी की बात का नहीं, उनकी नीयत का है. इस स्थिति के लिए वे खुद जिम्मेदार हैं. जीवन के हर क्षेत्र में व्यक्ति को यह जरूर पता होना चाहिए कि कब दूसरों के लिए जगह खाली कर देनी है. क्योंकि कोई सम्मान देता नहीं, उसे अर्जित करना पड़ता है. आडवाणी ने पिछले कुछ सालों में सम्मान की अपनी अर्जित पूंजी गंवा दी है.

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English summary
Lok Sabha Elections 2019: no doubt on Advanis word but doubt on his intention
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