नितिन गडकरी की आदर्श बातों के पीछे छिपी है क्या कोई सियासत?
नई दिल्ली। राजनीति के ऐसे दौर में जब समर्थन और विरोध में कही गई बातें अतशयता का शिकार हों, तब किसी नेता की ओर से आदर्श बतियाना और ऐसा आदर्श जो कई बार अपनों के ही विरोध में जाता नजर आता हो, किसी को अजीब लग सकता है। कुछ ऐसी ही आदर्श बातें केंद्रीय सड़क और परिवहन मंत्री तथा पूर्व भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी लगातार कर रहे हैं। बीते करीब एक वर्ष के दौरान उनकी ओर से कई ऐसी बातें की गईं जिनके सियासी हलकों में अपने-अपने तरीके से अर्थ निकाले गए। इसको लेकर भी चर्चाएं हुईं कि कहीं ऐसी आदर्श बातों के पीछे कोई राजनीति तो नहीं है। इसके पीछे एक कारण यह हो सकता है कि बीते दिनों मीडिया में यह कहा जाने लगा था कि गडकरी किसी विशेष परिस्थिति में प्रधानमंत्री पद की रेस में भी हो सकते हैं। हालांकि उनकी ओर से लगातार इसका पुरजोर खंडन किया गया, इसके बावजूद अभी भी इन संभावनों को खारिज नहीं किया जा रहा है। माना यही जा रहा है कि गडकरी की आदर्श बातों के पीछे जरूर कुछ न कुछ खास है।
हमारी सरकार ने काम नहीं किया तो दूसरों को दें मौका
इन संभावनाओं को एक बार फिर बल तब मिला जब हाल ही में उन्होंने फिर कुछ बड़ी और आदर्श बातें कहीं। गडकरी ने कहा कि अगर हमारी सरकार ने अच्छा काम नहीं किया है, दूसरों को मौका देने में कोई दिक्कत नहीं है। उन्होंने कहा कि सत्ता में जो पार्टी होती है, उसे उसके काम के आधार पर आंका जाता है। अगर जनता को लगता है कि हमारी सरकार ने काम नहीं किया, तो उन्हें दूसरों को मौका देना चाहिए। मुझे नहीं लगता कि राजनीति सिर्फ सत्ता में आने के लिए है जबकि राजनीति समाज के लिए होती है। उन्होंने मतदाताओं से भी कहा कि मतदान करने से पहले जनता को सरकार द्वारा बीते पांच साल में किए गए काम को ध्यान में रखना चाहिए। वैसे अगर इसकी पड़ताल की जाए, तो शायद वह यह कहना चाहते हैं कि हमारी सरकार ने बहुत काम किया है। इसलिए मतदाता इसी के आधार पर वोट करेंगे। इसके बावजूद कहीं न कहीं ध्वन्यार्थ कुछ और ही निकलते लगते हैं। उनकी इस बात से ऐसा लगता है जैसे यह सरकार का अथवा सत्ताधारी पार्टी के किसी बड़े नेता का कथन नहीं है। अपनी स्पष्टबयानी के लिए जाने जाने वाले गडकरी इससे पहले भी समय-समय पर इस तरह के बयान देते रहे हैं।
एक बार उन्होंने कहा था कि जो मेरिट में आता है, वह आईएएस और आईपीएस बनता है। जो सेकेंड क्लास आता है वह चीफ इंजीनियर बनता है। लेकिन जो तीन बार फेल होता है, वह मंत्री बनता है। राजनीति में आने के लिए किसी तरह की गुणवत्ता की आवश्यकता नहीं होती। ऐसा कहते हुए संभवतः उन्होंने आज की राजनीति पर ही तीखा कटाक्ष किया था। इतना ही नहीं, वह कभी यह भी कहते हैं कि मुझे झूठ बोलना नहीं आता। चतुर और चतरा शब्दों में अंतर बताते हुए वह कहते हैं कि कुछ लोग झूठ-मूठ रोते और हंसते हैं। समाज में जितने तरह के लोग हैं, उतने तरह के नेता भी हैं। मैं मक्खन लगाने वालों में से नहीं हूं। एक बार गडकरी ने यह भी कहा था कि जीत के कई पिता होते हैं, लेकिन हार हमेशा अनाथ होती है। अगर उनकी बातों पर गौर किया जाए, तो पता चलता है कि ऐसी बातें कहकर वह अपने नेतृत्व के समक्ष कोई समस्या तो नहीं पैदा कर रहे हैं। चूंकि अब तक उनकी पार्टी और सरकार की ओर से इस आशय का कोई संकेत नहीं आया है, उनकी पार्टी के विरोधी भले ही इस सबके कुछ अलग अर्थ निकालें कहा जा सकता है कि उससे किसी को भी समस्या नहीं है।
पार्टी लाइन से अलग देते हैं बयान
ऐसे समय जब देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की काफी आलोचना की जा रही हो, गडकरी ने कभी यह भी कहा था कि नेहरू कहते थे कि भारत एक देश नहीं है, यह एक आबादी है। इस देश का हर व्यक्ति देश के लिए प्रश्न है, समस्या है। उनके भाषण मुझे बहुत पसंद हैं। अब से कुछ समय पहले ही उन्होंने यह भी कह दिया था कि पाकिस्तान पर हुई एयर स्ट्राइक का श्रेय किसी को नहीं लेना चाहिए। वैसे तो इस तरह की बातों में कोई बुराई नहीं लगती बल्कि इन्हें अच्छी श्रेणी में रखा जा सकता है लेकिन उनका क्या किया जा सकता है जिन्हें हर इस तरह की बात में राजनीति नजर आने लगती है।
चुनाव में उतरा कोई और नेता गडकरी जैसा दम क्यों नहीं दिखाता?
गडकरी के बयान बनते हैं सुर्खियां
गडकरी की भी इस तरह की बातों को लेकर राजनीतिक हलकों में चर्चाएं होने लगती हैं। असल में जब से इस तरह की चर्चाएं शुरू हुईं कि अगर किसी कारणवश ऐसी स्थिति उत्पन्न होती है कि किसी नए प्रधानमंत्री की स्थिति बने, तो वह नितिन गडकरी हो सकते हैं। तब से गडकरी के इस तरह के वक्तव्यों को नए नजरिये से देखा जाने लगा और यह कहा जाने लगा कि गडकरी की आदर्श बातों के पीछे यही खास है। लेकिन यहां यह भी याद रखने की बात है कि खुद गडकरी ने कई बार कहा है कि उनकी प्रधानमंत्री बनने की कोई इच्छा नहीं है। वह दावेदार भी नहीं हैं।
वह यह भी कहते हैं कि वह इसी तरह की बात करते हैं जिसमें किसी तरह की लागलपेट नहीं होती। साफ बातें करना अच्छा होता है और सभी को स्पष्ट बयानी करनी चाहिए। जो भी हो, इतना तो है ही कि वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में इस तरह की आदर्श बातें कम ही कही-सुनी जाती हैं। राजनीतिक हलकों में इस तरह की चर्चाएं भी हैं कि अभी कुछ समय तक ऐसे वक्तव्य आते रहेंगे। फिलहाल, इन्हें भले ही नजरंदाज कर दिया जा रहा हो, भविष्य में इनका अर्थ स्पष्ट हो सकता है।