यूपी में महागठबंधन को बड़ा झटका, इस सहयोगी पार्टी ने छोड़ा साथ
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लखनऊ। लोकसभा चुनावों से पहले यूपी में शुक्रवार को महागठबंधन को उस समय बड़ा झटका लगा, जब उनकी एक सहयोगी पार्टी ने गठबंधन में से अलग होने का ऐलान कर दिया। समाजवादी पार्टी की सहयोगी पार्टी रही निषाद पार्टी ने लोकसभा चुनाव में सीट ना मिलने के कारण महागठबंधन से अलग होने की घोषणा कर दी। निषाद पार्टी के चीफ संजय निषाद ने कहा कि, हमारी पार्टी को सीट देने की घोषणा कही गई था, लेकिन गठबंधन में एक भी सीट नहीं मिली है। हम 'गठबंधन' के साथ नहीं हैं।
निषाद पार्टी ने आज फैसला लिया है कि हम 'गठबंधन' के साथ नहीं हैं
निषाद पार्टी के चीफ संजय निषाद ने शुक्रवार को मीडिया से बात करते हुए कहा कि, अखिलेश यादव ने कहा था कि वह हमारी पार्टी के लिए सीटों की घोषणा करेंगे। लेकिन उन्होंने पोस्टर / पत्र या किसी पर भी हमारा नाम नहीं रखा। जिसके चलते मेरी पार्टी के कोर कमेटी के कार्यकर्ता और अधिकारी चिंतित हैं। इसलिए निषाद पार्टी ने आज फैसला लिया है कि हम 'गठबंधन' के साथ नहीं हैं, हम स्वतंत्र हैं, स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ सकते हैं और अन्य विकल्पों की भी तलाश कर सकते हैं। पार्टी अब स्वतंत्र है।
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यूपी में सपा-बसपा-रालोद गठबंधन में निषाद पार्टी भी शामिल थी
बता दें कि, यूपी में सपा-बसपा-रालोद गठबंधन में निषाद पार्टी और जनवादी पार्टी भी शामिल हैं। लेकिन अखिलेश यादव की ओऱ से अभी तक इस गठबंधन के फार्मूले पर पत्ते नहीं खोले गए हैं। हालांकि संकेत मिल रहे थे कि सपा एक सीट अपने सिंबल तथा दूसरी सीट निषाद के बैनर तले लड़ने के लिए छोड़ सकती है। आपको बताते चले कि, 2018 में हुए उप चुनाव में इसी दल के साथ गठबंधन कर अखिलेश यादव ने गोरखपुर की सीट भाजपा के हाथ से छीन ली थी।
पूर्वांचल में की लगभग 25 लोकसभा सीटों पर निषाद मतदाताओं की अच्छी पैठ
ऐसा कहा जा रहा है कि अगर अखिलेश यादव को पूर्वी उत्तर प्रदेश में अधिक से अधिक सीटें जीतनी है तो इन छोटे दलों के साथ तालमेल बनाकर चलना ही पड़ेगा। पूर्वांचल में की लगभग 25 लोकसभा सीटों पर निषाद मतदाताओं की अच्छी पैठ मानी जाती है। यूपी की वाराणसी और गोरखपुर लोकसभा सीट पर निषाद मतदाता सबसे ज्यादा संख्या में हैं। इसी के चलते समाजवादी पार्टी ने गोरखपुर में प्रवीण निषाद को टिकट दिया और जीत दर्ज की।
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