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नसीमुद्दीन-बालियान के बयानों में देखिए ध्रुवीकरण की अंतिम कोशिश

By प्रेम कुमार
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नई दिल्ली। आखिरी वक्त पर ध्रुवीकरण की कोशिश हैं नेता बयान देते हैं और उन बयानों की मीन-मेख निकाली जानी शुरू हो जाती है। ऐसे में हम कहते हैं कि आखिर नेताओँ की मर्जी के हिसाब से उन्हें तवज्जो क्यों देने लग जाते हैं हम। मगर, इन बयानों का मतलब इतना भर नहीं होता कि चुप्पी लगाकर उनकी 'मारक क्षमता' को ख़त्म कर दिया जाए। जिस बयान में यह क्षमता जितनी होती है वह उतना ही ज्यादा चर्चा में होता है।

नसीमुद्दीन ने चला आखिरी दांव

नसीमुद्दीन ने चला आखिरी दांव

2019 के आम चुनाव के पहले चरण के आखिरी वक्त पर बिजनौर में कांग्रेस प्रत्याशी नसीमुद्दीन सिद्दीकी ने बीएसपी नेता मायावती पर जमकर आरोप लगाए। ‘अभी नहीं, तो कभी नहीं' वाले अंदाज में वे मायावती बरसे, जिनके वे कभी करीबी हुआ करते थे। ऐसा लगा मानो उनकी ज़ुबान किसी ने अब तक बंद कर दी थी। सम्भव है कि महागठबंधन और कांग्रेस के बीच जो सहयोग की सम्भावना का संबंध बनने वाला था, उस वजह से नसीमुद्दीन सिद्दीकी चुप रहे हों। अगर मतदान के दिन आखिरी वक्त पर भी अगर नसीमुद्दीन नहीं बोलते, तो बाद में बोलकर भी क्या मिलता। बिजनौर से नसीमुद्दीन कांग्रेस के प्रत्याशी हैं और महागठबंधन उम्मीदवार के रहते मुस्लिम वोटों के बंटने का ख़तरा झेल रहे हैं। इसलिए उन्होंने आखिरी दांव चल दिया।

महागठबंधन की नेता मायावती पर सीटें बेचने के आरोप के साथ-साथ बड़ा राजनीतिक आरोप नसीमुद्दीन ने यह जड़ दिया कि वे मुसलमानों के वोट बटोरकर बीजेपी के साथ मिल सकती हैं। जाहिर है मतदान वाले दिन नसीमुद्दीन के इस आरोप का जवाब देने का मौका मायावती या बीएसपी के पास नहीं है। मुस्लिम वोटों को अपनी ओर करने के लिए नसीमुद्दीन सिद्दीकी की यह आखिरी चाल कही जा सकती है।

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क्या नसीमुद्दीन ने जातिसूचक शब्द कहा?

क्या नसीमुद्दीन ने जातिसूचक शब्द कहा?

ऐसा कहते हुए नसीमुद्दीन ने ‘चमार' जाति का उल्लेख किया है। कई टीवी चैनलों ने इसे विवादित बोल के तौर पर दिखाया और दूसरे दलों के नेताओं की भी प्रतिक्रिया यही मानकर सामने आयी। हालांकि किसी जाति का उल्लेख भर कानूनी रूप से गलत नहीं हो सकता। जब वह जातिसूचक शब्द बन जाता है, किसी का अपमान करने का मकसद सामने आता है तभी वह वैधानिक तौर पर गलत होता है।

नसीमुद्दीन सिद्दीकी के बयान को पूरा सुनने पर जो बात समझ में आती है वह यह कि महागठबंधन में रहने पर बीएसपी की नेता मायावती कथित तौर पर चमारों या दलितों को टिकट बेच रही थीं, महागठबंधन बन जाने के बाद मुसलमानों को बेच रही हैं। मुस्लिम विरादरी को संबोंधित करते हुए और उन्हें अपना बताते हुए नसीमुद्दीन सिद्दीकी ये कहना नहीं भूलते कि जब बीएसपी मुसलमान वोट बटोर कर बीजेपी के ही साथ बैठने वाली है तो क्यों नहीं सीधे बीजेपी को ही वोट दे दिया जाए। यह एक तरह से मुस्लिम प्रत्याशी का मुस्लिम वोटरों के बीच मुस्लिम वोट के लिए आखिरी दांव है। चुनाव आयोग इस पर संज्ञान ले सकता है। धार्मिक आधार पर वोट मांगने का दोषी भी नसीमुद्दीन सिद्दीकी को ठहराया जा सकता है।

बुर्के के बहाने बालियान ने साधे गैर हिन्दुओं के वोट एक और उदाहरण संजीव बालियान का है। उन्होंने आरोप लगाया है कि बुर्के में महिलाएं एक से ज्यादा और फर्जी मतदान कर रही हैं। महिला कर्मचारी के नहीं रहने की वजह से चेहरे का मिलान नहीं हो रहा है। इसलिए जरूरत पड़ेगी तो वे दोबारा मतदान की भी मांग करेंगे। यह आरोप किसी उदाहरण को सामने रखते हुए होता, तो बात समझी जा सकती थी। मगर, सामान्य तौर पर ऐसे बयान देकर प्रत्याशी ने वास्तव में आखिरी क्षण में धार्मिक आधार पर वोटों के ध्रुवीकरण का ही दांव चला है। हालांकि चुनाव आयोग ने तुरंत प्रतिक्रिया देते हुए संजीव बालियान के आरोपों को गलत ठहरा दिया। मगर, सवाल ये है कि यह कोई प्रशासनिक शिकायत नहीं थी कि चुनाव आयोग ने निपटारा कर दिया। वास्तव में यह धार्मिक ध्रुवीकरण के इरादे से दिया गया बयान था। इस लिहाज से प्रत्याशी संजीव बालियान के बयान की जांच करने और उस हिसाब से कार्रवाई करने की आवश्यकता है।

कार्रवाई करेगा चुनाव आयोग?

कार्रवाई करेगा चुनाव आयोग?

दोनों प्रत्याशियों के बयानों के केंद्र में मुस्लिम वोटर हैं और उनका लक्ष्य भी मुस्लिम या गैर मुस्लिम वोटरों को साधना है। क्या ऐसे बयानों को हम राजनीतिक दलों की नैतिकता पर छोड़ दे सकते हैं? क्या चुनाव आयोग को इन बयानों पर संज्ञान लेते हुए प्रत्याशियों से जवाब-तलब और कार्रवाई नहीं करनी चाहिए? वोटरों को रिझाने के लिए प्रत्याशी किस हद तक गिर जाते हैं उसका उदाहरण हैं बिजनौर में कांग्रेस प्रत्याशी नसीमुद्दीन सिद्दीकी और मुजफ्फरनगर में बीजेपी प्रत्याशी संजीव बालियान।

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English summary
Lok Sabha Elections 2019: Nasimuddin Siddiqui and Sanjeev Balyan Statement attempt of polarization
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