लोकसभा चुनाव 2019: खंडवा में कांग्रेस-भाजपा को एक-दूसरे के असंतुष्टों से आस
नई दिल्ली। दो प्रमुख पार्टियां। दो पूर्व सांसद। दो पूर्व प्रदेश अध्यक्ष। दोनों को ही एक-दूसरे की पार्टी के बगावती कार्यकर्ताओं पर भरोसा। यही तस्वीर है खंडवा-बुरहानपुर की। मध्यप्रदेश की खंडवा-बुरहानपुर लोकसभा सीट पर कांग्रेस और भाजपा के पूर्व प्रदेशाध्यक्षों में कड़ा मुकाबला है। दोनों ही पार्टियों ने खंडवा-बुरहानपुर सीट को प्रतिष्ठापूर्ण सीट मान लिया है। भाजपा ने यहां से नंदकुमार सिंह चौहान को टिकट दिया है, तो कांग्रेस ने अरूण यादव को। नंदकुमार सिंह चौहान वर्तमान सांसद हैं और अरुण यादव पूर्व सांसद। दोनों ही नेता बाहुबली और धनबली दोनों हैं और दोनों ही एक जैसी चुनौती का सामना कर रहे हैं। वह है पार्टी के असंतुष्टों की चुनौती।
अरुण यादव और नंदकुमार तीसरी बार आमने-सामने
भाजपा और कांग्रेस बुरहानपुर में जो दांव खेल रहे है, वह है दूसरी पार्टी के असंतुष्टों को प्रोत्साहित करना। बुरहानपुर सीट से विधायक चुनी जाने वाली अर्चना चिटनिस मंत्री रहने के बावजूद विधानसभा चुनाव में नहीं जीत पाई। विधानसभा चुनाव में हार की यही फांस चिटनिस के मन में है। उन्हें लगता है कि पूर्व प्रदेश भाजपाध्यक्ष नंदकुमार सिंह चौहान ने चिटनिस को हराने में प्रमुख भूमिका निभाई थी। अब चिटनिस अपनी हार का बदला लेना चाहती है। पहले उन्होंने लोकसभा क्षेत्र से अपनी दावेदारी पेश की थी, जिसे पार्टी ने नहीं माना।
अरुण यादव और नंदकुमार सिंह चौहान दोनों ही तीसरी बार आमने-सामने हैं। नंदकुमार सिंह चौहान 5 बार खंडवा लोकसभा सीट से जीत चुके हैं, जबकि अरुण यादव 1 बार खंडवा और 1 बार खरगोन लोकसभा सीट से चुनाव जीत चुके हैं। इस बार चुनाव में उन्हें अपने खंडवा-बुरहानपुर के पार्टी कार्यकर्ताओं पर भरोसा नहीं है। इसलिए वे खंडवा-बुरहानपुर से सटे खरगोन लोकसभा क्षेत्र से अपने पुराने कार्यकर्ताओं को आमंत्रित कर चुनाव प्रचार में जुटे हैं।
अरुण यादव के सामने दोहरी चुनौती
अरुण यादव को खंडवा-बुरहानपुर सीट पर दो लोगों से मुकाबला करना पड़ रहा है। एक तो उन्हें भाजपा के दिग्गज नेता नंदकुमार सिंह चौहान से टक्कर लेनी है और दूसरा बुरहानपुर से निर्दलीय चुनाव जीतने वाले सुरेन्द्र सिंह शेरा से भी टकराना है। सुरेन्द्र सिंह शेरा ने बुरहानपुर विधानसभा क्षेत्र से अपने बूते पर जीत हासिल की थी। विधानसभा चुनाव में जीत के बाद शेरा ने अपनी पत्नी के लिए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का टिकट मांगा था, लेकिन कांग्रेस ने विधायक शेरा की पत्नी जयश्री ठाकुर को टिकट नहीं दिया, जिससे शेरा पार्टी के प्रति बगावती तेवर दिखाने लगे। उनका कहना है कि पड़ोस के संसदीय क्षेत्र के उम्मीदवार को बुलाकर खंडवा-बुरहानपुर से चुनाव लड़वाना स्थानीय कार्यकर्ताओं का अपमान है।
खंडवा-बुरहानपुर संसदीय क्षेत्र में आठ विधानसभा क्षेत्र है। इनमें से चार पर कांग्रेस का, एक पर कांग्रेस के बागी विधायक का और तीन पर भाजपा के विधायकों का कब्जा है। अरुण यादव ने भी पहले अपने खरगोन लोकसभा क्षेत्र से टिकट मांगा था। फिर उन्होंने मंदसौर क्षेत्र से भी टिकट का दावा जताया था, लेकिन पार्टी ने उन्हें टिकट दिया खंडवा-बुरहानपुर सीट से। वास्तव में खंडवा और खरगोन दोनों ही निमाड़ क्षेत्र के महत्वपूर्ण शहर हैं। दोनों का मिजाज भी लगभग एक जैसा है।
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नंदकुमार सिंह चौहान से कार्यकर्ताओं खुश नहीं
नंदकुमार सिंह चौहान से भाजपा कार्यकर्ताओं की शिकायत यह है कि जब वे प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष थे, तब उन्होंने स्थानीय कार्यकर्ताओं की घोर उपेक्षा की। वे तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के साथ ताल से ताल मिलाते रहे और अपना हित साधते रहे। इसी संसदीय क्षेत्र की विधानसभा से चुनकर जाने वाली अर्चना चिटनिस से उनकी राजनैतिक प्रतिस्पर्धा चर्चा में रही है। अब हार के बाद अर्चना चिटनिस प्रतिशोध के इरादे से कार्य कर रही है। उनका विरोध जगह-जगह मुखर है। अनेक कोशिश करने के बाद भी नंदकुमार सिंह चौहान अर्चना चिटनिस को समझा नहीं पाए। अर्चना चिटनिस का संसदीय क्षेत्र में अच्छा खासा प्रभाव है, उनके पिता बृजमोहन मिश्र भी इसी संसदीय क्षेत्र की विधानसभा से चुनकर जाते रहे हैं और विधानसभा के अध्यक्ष भी रह चुके हैं।
जिस तरह की शिकायत भाजपा के स्थानीय नेताओं को नंदकुमार सिंह चौहान से है। लगभग वैसी ही शिकायत कांग्रेस के स्थानीय नेताओं को अरुण यादव से है। प्रदेशाध्यक्ष रहते हुए अरुण यादव ने कांग्रेस की गुटबाजी को जमकर हवा दी। अब अरुण यादव को बड़वाह और भीकनगांव विधानसभा क्षेत्रों से अच्छे समर्थन की उम्मीदें है, क्योंकि विधानसभा चुनावों में इन विधानसभा सीटों से कांग्रेस की बढ़त करीब 45 हजार वोटों की थी। इन दोनों ही विधानसभा क्षेत्रों में चौहान की तुलना में यादव समुदाय के लोग अधिक है और अरुण यादव उन्हें अपना पारंपरिक मतदाता मानते है।
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दोनों पार्टियों को असंतुष्टों से आस
निर्दलीय विधायक सुरेन्द्र सिंह शेरा की नाराजगी कांग्रेस और भाजपा दोनों ही पार्टियों से है। विधानसभा चुनाव में उन्हें हराने के लिए दोनों ही पार्टियों ने पूरी ताकत लगा दी थी। शेरा की मूल शिकायत यह है कि भाजपा तो उनके खिलाफ थी ही, लेकिन उनका पूरा खानदान कांग्रेस का वफादार सेवक रहा है। ऐसे में कांग्रेस के नेताओं द्वारा उन्हें टिकट नहीं दिया जाना और विधानसभा चुनावों में हरवाने की कोशिश करना उन्हें उचित नहीं लगता था। अब वे कांग्रेस की मुखालिफत कर रहे है। आधिकारिक रूप से वे कांग्रेस के विधायक है भी नहीं, इसलिए उन्हें मनाना कांग्रेस के प्रत्याशी के लिए आवश्यक हो गया है। शेरा के बड़े भाई शिवकुमार सिंह और महेन्द्र सिंह दोनों ही खंडवा बुरहानपुर क्षेत्र से लोकसभा में प्रतिनिधित्व कर चुके है। अब शेरा अपनी पत्नी जयश्री ठाकुर को निर्दलीय चुनाव लड़ाने की तैयारी में है। उन्होंने इसकी घोषणा भी कर दी है और कमर भी कस ली है। ऐसे में अरुण यादव के लिए वे परेशानी और चुनौती बनकर उभरे है। अरुण यादव को लगता है कि अर्चना चिटनिस नंदकुमार सिंह चौहान के खिलाफ सहयोग करके उनकी मदद कर सकती है। दोनों ही पार्टियों को एक-दूसरे के असंतुष्टों का सहारा है।
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