Lok sabha elections 2019: आखिर आडवाणी कहां और क्यों रह गए पीछे?
नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव 2019 को लेकर बीजेपी ने अपने उम्मीदवारों की पहली लिस्ट गुरूवार को जारी कर दी है,बीजेपी की इस लिस्ट में पार्टी के वयोवृद्द नेता लाल कृष्ण आडवाणी को जगह नहीं मिली है, बल्कि उनकी जगह से उनके संसदीय क्षेत्र गांधीनगर से भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह को टिकट दिया गया है, जिसके बाद विरोधी दल चिल्ला रहे हैं कि मोदी वृद्द नेताओं का अपमान करते हैं और इस वक्त भाजपा में उनकी तानाशाही चल रही है, वगैरह-वगैरह।
आडवाणी की जगह अमित शाह लड़ेंगे चुनाव
लेकिन सोचने वाली बात यह है कि भाजपा के संस्थापक सदस्यों में से एक रहे लाल कृष्ण आडवाणी, जो कि देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी के बेहद करीबी साथी और देश के गृहमंत्री रह चुके हैं, उन्हें लेकर इस तरह की बातें क्यों हो रही है, आखिर क्यों और किस जगह आडवाणी अपनी लोकप्रियता में उन्नीस रह गए।
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जिन्ना विवाद
राजनीतिक पंडितों ने इसके पीछे की कई वजहों को बताया है, जिनमें से एक खास कारण है जिन्ना विवाद, जिसका भूत उनके पीछे ऐसे पड़ा, जिससे चाहकर भी वो पीछा नहीं छुड़ा पाए, दरअसल बात साल 2005 में आडवाणी को पाकिस्तान जाने का अवसर मिला था, जहां जाकर उन्होंने जिन्ना को सेकुलर बताया और उनकी मजार पर जिन्ना को 'हिंदू मुस्लिम एकता का दूत' करार दिया था, जिसे की भारतीयों और बीजेपी के कुछ नेताओं को पचाना मुश्किल हो गया था।
साल 2009 में हुई थी भाजपा की करारी हार
दरअसल आडवाणी की छवि कट्टर हिंदू नेता की रही है, राम मंदिर के लिए उन्होंने ही रथयात्रा निकाली थी, जिसने उनकी और भाजपा की लोकप्रियता में चौगुना इजाफा किया था लेकिन जिन्ना विवाद के बाद उनकी छवि में वो बात नहीं रही जिसके लिए वो जाने जाते रहे हैं, हालांकि उन्होंने कोशिश बहुत की लेकिन आज तक वो उसमें सफल नहीं हो पाए हैं। इसके बाद बीजेपी ने आडवाणी को साल 2009 में पीएम पद का उम्मीदवार बनाया लेकिन उस चुनाव में भाजपा को मुंह की खानी पड़ी जिसके चलते बीजेपी के वो वरिष्ठ नेता होते हुए भी बड़े नेता नहीं बन पाए और शायद इसी वजह से वो धीरे-धीरे साइडलाईन होते चले गए।
अटल-आडवाणी का दौर समाप्त
रही सही कसर साल 2014 में पूरी हो गई, जहां पर वो नरेंद्र मोदी की पीएम उम्मीदवारी का असफल विरोध करने की वजह से अपने ही लोगों के निशाने पर आ गए थे, हालांकि मोदी की ओर से हमेशा उन्हें आदर्श स्थान दिया गया लेकिन इसके बावजूद विरोधीदल हमेशा यही चिल्लाते रहे कि अटल-आडवाणी का दौर भाजपा में समाप्त हो गया है और यह वक्त मोदी-शाह का है।
उम्र बनी बाधा
फिलहाल 91 बरस की उम्र के आकंड़े ने आडवाणी को गांधीनगर सीट से दूर कर दिया है और उनकी सीट पर वो उम्मीदवार आज खड़ा है, जिन्होंने कभी इस सीट पर आडवाणी के लिए ही प्रबंधन का काम किया था।
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