जानिए, दिल्ली में त्रिकोणीय मुकाबला क्या एडवांटेज बीजेपी है?
नई दिल्ली- राजधानी दिल्ली में भी लोकसभा चुनाव के लिए चुनावी बिसात बिछ चुकी है। आम आदमी पार्टी ने अपने उम्मीदवारों की घोषणा बहुत पहले कर रखी थी। अब कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी ने भी अपने सारे पत्ते खोल दिए हैं। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने महीनों पहले प्रत्याशी घोषित करने के बावजूद अंतिम समय तक कांग्रेस से हाथ मिलाने की कोशिश की। लेकिन, कांग्रेस में आखिरकार पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित की चली और तरह-तरह की बयानबाजी के बाद अंत में दोनों पार्टियों में गठबंधन की संभावना पूरी तरह से खत्म हो गई। दरअसल, दिल्ली में 2014 के चुनाव में भाजपा को मिले वोट को देखकर केजरीवाल के हाथ-पांव फूल रहे थे, इसलिए वो कांग्रेस से तालमेल के लिए सियासी मिन्नतें करते रह गए, लेकिन अंतत: उन्हें मायूसी ही हाथ लगी। अब यह तय हो चुका है कि इसबार भी राजधानी में आम आदमी पार्टी (AAP),कांग्रेस और बीजेपी (BJP) के बीच त्रिकोणीय मुकाबला होना है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या भाजपा दोबारा 2014 वाला ही प्रदर्शन दोहरा पाएगी, जब उसने दिल्ली की सातों सीटों पर कब्जा कर लिया था।
दिल्ली का चुनावी त्रिकोण
दिल्ली में तीनों मुख्य पार्टियों ने सभी सातों सीटों के लिए अपने-अपने प्रत्याशी घोषित कर दिए हैं। पूर्वी दिल्ली से आम आदमी की आतिशी मार्लेना के मुकाबले कांग्रेस ने अपने पुराने दिग्गज और शीला सरकार में मंत्री रहे अरविंदर सिंह लवली को चांस दिया है, तो बीजेपी ने यहां से पूर्व स्टार क्रिकेटर गौतम गंभीर को बैटिंग करने के लिए उतार दिया है। नॉर्थ-ईस्ट दिल्ली में आप (AAP) के दिलीप पांडे के मुकाबले बीजपी ने मौजूदा सांसद और प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी को दोबारा टिकट दिया है, तो कांग्रेस की ओर से खुद शीला दीक्षित ने क्षेत्र की कमान संभाल ली है। साउथ दिल्ली में केजरीवाल की पार्टी के राघव चड्ढा के मुकाबले बीजपी ने अपने मौजूदा सांसद रमेश बिधूड़ी को ही टिकट दिया है, तो कांग्रेस ने बॉक्सर विजेंदर सिह को चुनावी रिंग में उतारकर मुकाबले को दिलचस्प बना दिया है। चांदनी चौक सीट पर केंद्रीय मंत्री डॉक्टर हर्ष वर्धन फिर से मोदी के नाम और अपने काम के आधार पर वोट मांगेगे, जिनके मुकाबले आप (AAP)ने पंकज गुप्ता को बहुत पहले ही टिकट दे दिया था और अब कांग्रेस ने अपने दिग्गज जेपी अग्रवाल को भी उतार दिया है। नई दिल्ली में भाजपा ने काफी सोच-विचार के बाद अपने मौजूदा सांसद मीनाक्षी लेखी पर एकबार फिर से दांव लगाया है, तो कांग्रेस ने अपने पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और दिल्ली में पार्टी के चर्चित फेस अजय माकन पर चांस मारा है। जबकि, ब्रिजेश गोयल यहां काफी पहले से आप (AAP) के घोषित उम्मीदवार हैं।
वेस्ट दिल्ली में भाजपा ने फिर से पूर्व सीएम साहिब सिंह वर्मा के बेटे परवेश साहिब सिंह को टिकट दिया, जिनके मुकाबले आम आदमी पार्टी ने बलवीर सिंह जाखड़ और कांग्रेस ने अपने पुराने दिग्गज महाबल मिश्रा को उतारा है। इसके अलावा नॉर्थ-ईस्ट दिल्ली में भी चुनावी फिजा बदल गई है। यहां पर भाजपा ने आखिरी वक्त में अपने मौजूदा सांसद और दलित नेता उदित राज का टिकट काटकर गायक हंस राज हंस को टिकट थमा दिया है। यहां पर कांग्रेस के टिकट पर राजेश लिलोथिया और आम आदमी पार्टी के टिकट पर गुगन सिंह चुनाव मैदान में हैं।
स्टार चेहरों पर दांव
दिल्ली में 7 लोकसभा सीटे हैं, जहां लगभग आधी यानी 3 सीटों पर स्टार उम्मीदवारों की मौजूदगी ने चुनाव को रोचक बना दिया है। 2007 में टी-20 वर्ल्ड कप और 2011 के वनडे वर्ल्ड कप की विजेता भारतीय टीम के सदस्य रहे गौतम गंभीर के बारे में पहले से ही अंदाजा था कि बीजेपी उन्हें दिल्ली के किसी सीट से टिकट दे सकती है। खासकर नई दिल्ली सीट के लिए उनका नाम कई दिनों से आगे चल रहा था। लेकिन, पार्टी ने उन्हें पूर्व दिल्ली में चुनावी बल्ला भांजने का अवसर दिया है। गंभीर दिल्ली में सबसे कम उम्र वाले भी प्रत्याशी हैं। लेकिन, दो और स्टार नाम ऐसे हैं, जो दिल्ली के लोगों के साथ-साथ सियासी पार्टियों के लिए भी चौंकाने वाले हैं। इनमें बॉक्सर विजेंदर सिंह और सूफी सिंगर हंस राज हंस का नाम शामिल है। हंस राज हंस 2016 से बीजेपी में हैं और उससे पहले वे शिरोमणी अकाली दल और कांग्रेस में भी रह चुके हैं। जबकि, साउथ दिल्ली से विजेंदर सिंह का नाम कांग्रेस ने आखिरी वक्त में घोषित किया है।
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किनका कटा पत्ता?
दिल्ली में टिकट चाहने वाले जिन नेताओं का पत्ता कटा है, उसमें बीजेपी के नॉर्थ-वेस्ट दिल्ली के मौजूदा सांसद उदित राज सबसे चर्चित हैं। उन्होंने खुद को भाजपा का एकमात्र राष्ट्रीय कद का दलित नेता बताकर पार्टी छोड़ने तक की धमकी दी है। उन्होंने अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल से चौकीदार शब्द हटा भी लिया है। दूसरा नाम कांग्रेस के बहुत ही चर्चित नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल का है, जिन्हें कांग्रेस ने धीरे से ही सही, झटका जोर का दिया है। वह चांदनी चौक से अबकी बार भी चुनाव लड़ने का दावा ठोक रहे थे, लेकिन ऐन वक्त पर पार्टी ने जेपी अग्रवाल नाम की गुगली चलके उनका पत्ता साफ कर दिया है। हालांकि, वे पार्टी से बगावत की नहीं सोच रहे और मायूस होकर भी हाथ का साथ थामे रखने की बात कह रहे हैं। खबरों के मुताबिक साउथ दिल्ली सीट से कांग्रेस पहले सज्जन कुमार के भाई रमेश कुमार को टिकट देने पर विचार कर रही थी। लेकिन, सिखों के विरोध के मद्देनजर पार्टी ने अपना कदम वापस खींच लिया। गौरतलब है कि सज्जन कुमार को 1984 के सिख विरोधी दंगे में दोषी करार दिया जा चुका है।
एडवांटेज बीजेपी ?
यह बात किसी से छिपी नहीं है कि दिल्ली में कांग्रेस के साथ गठबंधन करने को लेकर आम आदमी पार्टी और उसके सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल बहुत ही ज्यादा परेशान थे। कांग्रेस बार-बार मना करती रही और आप (AAP) सीटों का एक नया ऑफर लेकर कांग्रेस को रिझाने का प्रयास करती रही। कांग्रेस में भी एक वर्ग केजरीवाल की दलीलों से सहमत था कि अगर दोनों ने गठबंधन नहीं किया जो बीजेपी को हराना मुश्किल है। केजरीवाल और कांग्रेस के शीला कैंप से अलग नेताओं को यह डर सता रहा है कि अगर दिल्ली में एंटी-बीजेपी वोटों का बंटवारा हुआ, तो भाजपा के लिए 2014 का परिणाम दोहराना बहुत ही आसान हो जाएगा। मसलन, तब पूर्वी दिल्ली में भाजपा को 47.8% वोट मिले थे, जबकि आप (AAP) को 31.9% और कांग्रेस को 17% वोट मिले थे। यही हाल उत्तरी दिल्ली (बीजेपी-45.2%, आप-34.3%, कांग्रेस- 16.3%), दक्षिणी दिल्ली (बीजेपी-45.1%, आप-35.6%, कांग्रेस-11.4%), चांदनी चौक (बीजेपी-44.6%, आप-30.7%, कांग्रेस-17.9%), नई दिल्ली (46.7%, आप-30%, कांग्रेस-18.6%), उत्तर-पश्चिमी दिल्ली (बीजेपी-46.4%, आप-38.6%, कांग्रेस-11.6%) और पश्चिमी दिल्ली (बीजेपी-48.3%, आप-28.4%, कांग्रेस-14.3% ) में भी हुआ था। कांग्रेस में शीला खेमा आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन के लिए इसलिए अंत-अंत तक इनकार करता रहा, क्योंकि उसे लग रहा था कि इस चुनाव में भले ही पार्टी को थोड़ा फायदा हो जाए, लेकिन अगले साल होने वाली विधानसभा चुनाव में इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा। जबकि, आम आदमी पार्टी और उसके मुखिया केजरीवाल कांग्रेस को एक-दो सीटों का ऑफर देकर पंजाब और हरियाणा में भी अपनी साख बचाने की जुगत लगा रहे थे। लेकिन अंत में कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी के सारे ऑफर ठुकरा दिए। जाहिर है कि बीजेपी ने दिल्ली में अंत-अंत तक उम्मीदवारों के नाम का ऐलान आप और कांग्रेस की बातचीत के मद्देनजर ही रोके रखा था। अब पार्टी के नेताओं और उम्मीदवारों को लगता है कि पहली लड़ाई तो उसकी काफी आसान हो चुकी है और बाकी के लिए काम और मोदी का नाम ही काफी है।