गुना में पार्टी का नहीं, राजघराने का प्रभाव बोलता है
नई दिल्ली। गुना कांग्रेस की परंपरागत सीट मानी जाती है, जहां से ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस के उम्मीदवार हैं। सिंधिया लगातार 4 बार से इस सीट पर जीतते आ रहे हैं। यहां से या तो सिंधिया घराने का सदस्य जीतता आया हैं या उसका समर्थन पाने वाला उम्मीदवार। भाजपा के संस्थापकों में से एक ग्वालियर की पूर्व महारानी विजयाराजे सिंधिया 1957 में यहां से कांग्रेस के टिकट पर जीत चुकी हैं। सिंधिया घराने ने यहां से स्वतंत्र पार्टी के नेता आचार्य जे.बी. कृपलानी का समर्थन किया, तो वे भी यहां से जीत गए और जब विजयाराजे सिंधिया यहां से स्वतंत्र पार्टी की उम्मीदवार के रूप में खड़ी हुईं, तब भी जीतीं। माधवराव सिंधिया यहां से निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में भी जीत चुके हैं और बाद में कांग्रेस के टिकट पर लड़कर भी।
गुना में पार्टी नहीं सिंधिया घराने की चलती है
इस सीट से चार बार विजयाराजे सिंधिया, दो बार माधवराव सिंधिया और चार बार ज्योतिरादित्य सिंधिया जीत चुके हैं। 2014 की मोदी लहर में भी इस सीट से ज्योतिरादित्य सिंधिया जीते थे। हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में इस लोकसभा सीट की 8 विधानसभा सीटों में से 4 पर भाजपा और 4 पर कांग्रेस का आधिपत्य है।
गुना संसदीय क्षेत्र में बहुजन समाज पार्टी भी अपना उम्मीदवार खड़ा करना चाहती थी, लेकिन बहुजन समाज पार्टी का प्रत्याशी कांग्रेस में शामिल हो गया। इस पर मायावती ने कड़ी आपत्ति ली थी और कहा था कि कांग्रेस को इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी, क्योंकि बसपा के उम्मीदवार लोकेन्द्र सिंह राजपूत गुना से मैदान में थे, लेकिन वे कांग्रेस में शामिल हो गए।
गुना संसदीय क्षेत्र में पार्टियां शायद ज्यादा महत्व नहीं रखती। यहां पार्टियों के बजाय सिंधिया घराना ज्यादा महत्व रखता हैं। भारतीय जनता पार्टी ने यहां से के.पी. यादव को उम्मीदवार बनाया हैं और इस तरह की चर्चा आम है कि भाजपा ने जान-बूझकर ज्योतिरादित्य सिंधिया के लिए रास्ता साफ रखा है।
मध्य प्रदेश कांग्रेस में सिंधिया का वर्चस्व
मध्यप्रदेश कांग्रेस में ज्योतिरादित्य सिंधिया का अपना वर्चस्व हैं। उनके गुट के मंत्री लगातार यहां डेरा डाले हैं और पार्टी का काम कर रहे हैं। सिंधिया को हराने के लिए केन्द्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह और पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह भी आम सभाएं कर चुके हैं। भाजपा की स्टार प्रचारक मानी जाने वाली स्मृति ईरानी भी इस संसदीय क्षेत्र में जनसंपर्क और सभाएं कर चुकी हैं। स्मृति ईरानी को उस वक्त बड़ा झटका लगा, जब उन्होंने यहां के मतदाताओं को सिंधिया घराने के गुणगान करते हुए पाया। एक सभा में जब उन्होंने उपस्थित भीड़ से पूछा कि बताइए आपमें से किसी का कर्ज माफ हुआ है क्या, तब भीड़ में से एक बड़ा वर्ग चिल्लाकर बोला। हां हमारा कर्ज माफ हुआ है, हमारा कर्ज माफ हुआ है। इस पर स्मृति ईरानी को कोई जवाब नहीं सूझा।
भाजपा को यहां परेशानी यह है कि उसके अनेक कार्यकर्ता ज्योतिरादित्य सिंधिया के संपर्क में है। इस कारण वे सिंधिया के खिलाफ खुलकर नहीं बोलते। लोग कहते है कि सिंधिया भी अब अपनी महाराज वाली छवि बदलने में जुटे हैं। अब चुनाव प्रचार के दौरान वे खटिया पर बैठ जाते हैं। स्थानीय ठेलों पर चाय पी लेते हैं, लोगों को गले लगाते हैं, पारंपरिक नृत्य भी करते हैं, कहीं युवकों के बीच जाकर क्रिकेट खेलने लगते हैं और लोगों को उनके नाम के आगे जी लगाकर भी पुकारते हैं।
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सिंधिया के सामने भाजपा प्रत्याशी मोदी के नाम के भरोसे
भाजपा को यहां मोदी के नाम पर वोट मांगते देखा जा रहा है। भाजपा को लगता है कि नरेन्द्र मोदी उनकी नैया पार करा देंगे। इसीलिए आम सभाओं में भाजपा नेता राष्ट्रीय मुद्दे ज्यादा उछाल रहे हैं। बसपा के उम्मीदवार का कांग्रेस में जाना भी भाजपाइयों के मनोबल को तोड़ रहा है। उनका कहना है कि गुना और छिंदवाड़ा दो ऐसी सीटें है, जहां से जीतना भाजपा के लिए बहुत बड़ी उपलब्धि हो सकती है।
भाजपा को आशा है कि हो सकता है नरेन्द्र मोदी के नाम का जादू गुना में चल जाएं, क्योंकि 2014 में नरेन्द्र मोदी के नाम का जादू यहां चला था और सिंधिया की जीत का अंतर लाखों वोटों से घटकर 86 हजार 360 वोटों पर आ टीका था। सिंधिया के चुनाव की कमान गुना के साथ ही ग्वालियर, भिंड और मुरैना के सिंधिया समर्थक संभाले हुए हैं। सिंधिया यहां के मतदाताओं के लिए जाने-पहचाने व्यक्ति हैं। मतदाताओं को लगता है कि गुना क्षेत्र के विकास में सिंधिया बड़ी भूमिका निभा सकते हैं। भले ही उनकी पार्टी सरकार में आए या न आए। गुना के लोगों को स्थायी बस स्टैण्ड, रिंग रोड, पॉलिटेक्निक कॉलेज, बड़े अस्पताल और बायपास तक जाने के लिए लिंक रोड की जरूरत है। उन्हें लगता है कि जिस तरह छिंदवाड़ा में कमलनाथ ने विकास कार्य करवाया है, उसी तरह सिंधिया भी गुना में विकास कार्य करवा चुके हैं, क्योंकि प्रदेश में कांग्रेस की सरकार है और राज्य सरकार से संबंधित सभी काम सिंधिया के इशारों पर हो ही जाएंगे।
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