लोकसभा चुनाव 2019: झारखंड की सात सीटों पर भितरघात का साया
रांची।
लोकसभा
चुनावों
की
गहमा-गहमी
के
बीच
कभी
भारतीय
राजनीति
की
प्रयोगशाला
के
रूप
में
चर्चित
झारखंड
का
चुनावी
माहौल
बेहद
दिलचस्प
हो
गया
है।
राज्य
की
14
लोकसभा
सीटों
पर
उम्मीदवारों
की
घोषणा
हो
चुकी
है।
यहां
अंतिम
चार
चरणों
में
मतदान
होना
है।
झारखंड
के
चुनावी
परिदृश्य
में
सबसे
रोचक
तथ्य
यह
है
कि
यहां
की
सात
सीटों
पर
एनडीए
और
यूपीए
को
भितरघात
की
आशंका
से
जूझना
पड़
रहा
है।
कहने
को
तो
इन
सात
सीटों
में
से
केवल
तीन
पर
ही
तिकोना
मुकाबला
है,
लेकिन
बाकी
चार
सीटों
पर
उम्मीदवारों
को
लेकर
असंतोष
चरम
पर
है।
यह
असंतोष
अंतिम
चुनाव
परिणाम
पर
असर
डालेगा,
इसमें
संदेह
नहीं
है।
रांची में रामटहल चौधरी हैं भाजपा की राह का रोड़ा
सबसे पहले बात करते हैं झारखंड की राजधानी रांची की। यहां से भाजपा ने संजय सेठ को उतारा है, जिन्हें आज तक किसी चुनाव लड़ने का अनुभव नहीं है। उनका मुकाबला कांग्रेस के दिग्गज सुबोधकांत सहाय से है, लेकिन उनकी सबसे परेशानी भाजपा के बागी रामटहल चौधरी हैं। सुबोधकांत सहाय जहां हटिया से विधायक और रांची से सांसद रह चुके हैं, वहीं रामटहल चौधरी भी चुनावी अखाड़े के पुराने खिलाड़ी हैं। इस बार बढ़ती उम्र के आधार पर भाजपा ने उन्हें टिकट नहीं दिया, तो उन्होंने पार्टी छोड़ दी और निर्दलीय ही चुनाव मैदान में कूद पड़े। नामांकन दाखिल करने के दौरान उनके समर्थकों की जो भीड़ उमड़ी, उसे देख कर भाजपा खेमे में खलबली मच गयी है। सच भी यही है कि रामटहल चौधरी भाजपा के वोट में ही सेंध लगायेंगे। इतना ही नहीं, वह अपनी जाति के वोटों पर भी खासी पकड़ रखते हैं। इसलिए रांची के अलावा अन्य सीटों पर भी भाजपा को कुरमियों की नाराजगी झेलनी होगी।
रामटहल चौधरी के चुनाव मैदान में होने के कारण सुबोधकांत सहाय जहां राहत महसूस कर रहे हैं, वहीं संजय सेठ के सामने सिर मुंडाते ही ओले पड़े जैसी स्थिति बन गयी है। राजधानी होने के कारण स्वाभाविक तौर पर रांची झारखंड की सबसे प्रतिष्ठित सीट मानी जाती है और भाजपा इसे किसी भी कीमत पर हाथ से नहीं जाने देना चाहती है।
चतरा में एनडीए-यूपीए दोनों परेशान
झारखंड की चतरा सीट एकमात्र ऐसी सीट है, जहां बहुकोणीय मुकाबला हो रहा है। यहां 29 अप्रैल को मतदान होना है। यहां से भाजपा ने अपने निवर्तमान सांसद सुनील सिंह को एक बार फिर मैदान में उतारा है, जबकि कांग्रेस ने बरही के विधायक मनोज यादव को टिकट दिया है। यूपीए की सीट शेयरिंग के तहत यह सीट कांग्रेस के कोटे में गयी थी, लेकिन राजद ने यहां से सुभाष यादव को उतार कर यूपीए के लिए परेशानी पैदा कर दी है। उधर भाजपा के स्थानीय नेता राजेंद्र प्रसाद साहू भी बागी बन कर ताल ठोंक रहे हैं। इस तरह चतरा में दोनों खेमों के सामने वोट बंटने का खतरा मंडरा रहा है। ऐसे में बाजी किसके हाथ रहेगी, यह देखना दिलचस्प होगा। कांग्रेस और राजद के प्रत्याशी के एक ही जाति के होने और भाजपा के बागी के पास वैश्य मतदाताओं का समर्थन होने के कारण सुनील सिंह थोड़ी राहत जरूर महसूस कर रहे हैं।
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कोडरमा में भाजपा को है भितरघात का खतरा
कोडरमा संसदीय सीट पर भी तिकोना मुकाबला है। भाजपा ने डॉ रविंद्र राय के स्थान पर हाल ही में पार्टी में शामिल हुईं अन्नपूर्णा देवी को उतारा है, तो झाविमो सुप्रीमो और राज्य के पहले मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी यहां से एक बार फिर किस्मत आजमा रहे हैं। इन दोनों के बीच भाकपा माले के राजकुमार यादव भी हैं, जिन्होंने पिछले चुनाव में दूसरा स्थान हासिल किया था। यहां भाजपा की सबसे बड़ी परेशानी स्थानीय कार्यकर्ताओं का असंतोष है। भाजपा के पुराने लोग अन्नपूर्णा को पूरी तरह पचा नहीं पा रहे हैं। विधानसभा चुनाव में उन्हें हरानेवाली डॉ नीरा यादव के साथ प्रणव वर्मा और खुद डॉ राय भी असहज महसूस कर रहे हैं। भाजपा के निचले स्तर के नेता और कार्यकर्ता चुनाव में अन्नपूर्णा के लिए कितना काम करेंगे, यह अब तक साफ नहीं हुआ है। उधर बाबूलाल मरांडी और राजकुमार यादव के बीच अल्पसंख्यक और पिछड़े वर्ग का वोट हासिल करने की होड़ मची है। यह सच है कि मरांडी पिछले चुनाव के बाद से ही इस क्षेत्र में लगातार काम कर रहे हैं, लेकिन राजकुमार यादव के पास माले का कैडर वोट सुरक्षित है। इसके अलावा वह धनवार से विधायक भी हैं, जिसका लाभ उन्हें मिलेगा।
कोयलांचल धनबाद में है भाजपा-कांग्रेस की अग्निपरीक्षा
झारखंड की धनबाद सीट कोयलांचल की राजधानी कही जाती है। यह राज्य की एकमात्र ऐसी सीट है, जहां शहरी मतदाताओं की संख्या सबसे अधिक है। इस सीट पर भाजपा ने जहां अपने निवर्तमान सांसद पशुपति नाथ सिंह को उतारा है, वहीं कांग्रेस ने दरभंगा से भाजपा के सांसद रहे कीर्ति आजाद को टिकट दिया है। भाजपा उम्मीदवार को जहां अपनी ही पार्टी के बड़े तबके के विरोध का सामना करना पड़ रहा है, वहीं कीर्ति आजाद के खिलाफ स्थानीय कांग्रेसी उद्वेलित हैं। यहां तक कि प्रदेश अध्यक्ष डॉ अजय कुमार को भी यहां विरोध का सामना करना पड़ा।
आयातित उम्मीदवार के विरोध को शांत करने के अलावा कांग्रेस के सामने अपने पुराने और तपे-तपाये नेताओं को मनाने की चुनौती भी है, जो अपनी उपेक्षा से नाराज चल रहे हैं। श्रमिक नेता राजेंद्र सिंह, चंद्रशेखर दुबे, मन्नान मलिक और अजय दुबे सरीखे दिग्गज कांग्रेसी अपनी पार्टी के आयातित प्रत्याशी के साथ अब तक नजर नहीं आये हैं। उधर भाजपा के सामने सिंह मेंशन के छोटे युवराज सिद्धार्थ गौतम भी चुनौती बन कर खड़े हैं। सिद्धार्थ के बड़े भाई संजीव सिंह झरिया से भाजपा के विधायक हैं और फिलहाल अपने चचेरे भाई नीरज सिंह की हत्या के आरोप में जेल में हैं। भाजपा प्रत्याशी पीएन सिंह ने जेल में उनसे भेंट कर समर्थन तो हासिल कर लिया है, लेकिन सिद्धार्थ को मनाने की उनकी कोशिशें फिलहाल सफल होती नहीं दिख रही। इस कारण धनबाद का चुनाव भी तिकोना हो जाये, तो कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी।
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गिरिडीह में आजसू-झामुमो के सामने सहयोगियों को साथ लाने की चुनौती
झारखंड की गिरिडीह एकमात्र ऐसी सीट है, जहां एनडीए और यूपीए के सबसे बड़े घटक दल, भाजपा और कांग्रेस सीधे मुकाबले में नहीं हैं। भाजपा ने यह सीट आजसू को दी है, जबकि यूपीए की ओर से झामुमो यहां से चुनाव लड़ रहा है। आजसू ने चंद्रप्रकाश चौधरी को उतारा है, जबकि झामुमो से जगन्नाथ महतो मैदान में हैं। अब तक यह सीट भाजपा के पास थी। निवर्तमान सांसद रविंद्र पांडेय हालांकि आजसू के समर्थन में चुनाव नहीं लड़ने का ऐलान कर चुके हैं, लेकिन भाजपा के स्थानीय नेता और कार्यकर्ता आजसू के साथ पूरी तरह जुड़ नहीं सके हैं। जगन्नाथ महतो के साथ भी यही परेशानी है। कांग्रेस के लोग 2012 की उस घटना को अब तक नहीं भूल सके हैं, जिसमें जगन्नाथ महतो ने अपने समर्थकों के साथ बेरमो में कांग्रेसी दिग्गज राजेंद्र सिंह के घर पर हमला बोला था। इस प्रकार गिरिडीह में भाजपा और कांग्रेस, दोनों के लिए अपने सहयोगियों को मदद पहुंचाने की चुनौती है। गोड्डा में परेशान है भाजपा, तो झाविमो को फुरकान का डर गोड्डा सीट से भाजपा ने डॉ निशिकांत दुबे पर एक बार फिर भरोसा जताया है, तो यूपीए ने यह सीट झाविमो को दी है, जिसके टिकट पर प्रदीप यादव ताल ठोंक रहे हैं। यहां के स्थानीय भाजपाई निशिकांत दुबे की कार्यशैली से नाराज दिखाई देते हैं, जबकि प्रदीप यादव कांग्रेस के फुरकान अंसारी से परेशान हैं। भाजपाइयों का कहना है कि निशिकांत दुबे ने कभी स्थानीय कार्यकर्ताओं को तवज्जो नहीं दी और कुछ लोगों से घिरे रहे। इसलिए इस बार उनका जादू नहीं चलनेवाला। उधर यूपीए की सीट शेयरिंग में गोड्डा सीट झाविमो को देने का फुरकान अंसारी विरोध कर चुके हैं। उनके विधायक पुत्र डॉ इरफान अंसारी तो यहां तक कह चुके हैं कि अल्पसंख्यक को टिकट नहीं देने का बुरा असर न केवल झारखंड की बाकी सीटों पर, बल्कि बिहार और बंगाल की सीटों पर भी पड़ेगा और इसका खामियाजा कांग्रेस को उठाना होगा। इसके साथ ही फुरकान अंसारी की पुत्री शबाना ने गोड्डा से तृणमूल कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ने का ऐलान कर झाविमो की परेशानी बढ़ा दी है। इस दिलचस्प लड़ाई में कौन बाजी मारेगा, यह देखना बेहद रोमांचक होगा।
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लोहरदगा में सुदर्शन भगत के साथ आजसू असहज, कांग्रेस अपने ही दिग्गजों से घिरी
लोहरदगा संसदीय सीट से भाजपा के सुदर्शन भगत एक बार फिर किस्मत आजमा रहे हैं, तो कांग्रेस ने विधायक सुखदेव भगत को उतारा है। बेहद शांत और सौम्य सुदर्शन भगत के साथ यहां सबसे परेशानी आजसू को लेकर है। लोहरदगा विधानसभा क्षेत्र में हुए उपचुनाव में अपने उम्मीदवार की हार का बड़ा कारण आजसू के लोग सुदर्शन भगत को मानते हैं। विधानसभा के पिछले चुनाव में आजसू के कमल कमल किशोर भगत यहां से जीते थे, लेकिन अदालत द्वारा सजा सुनाये जाने के कारण उनकी विधायकी चली गयी। फिर यहां हुए उप चुनाव में सुखदेव भगत जीते थे। उस उप चुनाव में सुदर्शन भगत की चुप्पी और निष्क्रियता को आजसू के लोग भूल नहीं पा रहे हैं। इसलिए इस बार वे सुदर्शन भगत की कितनी मदद करेंगे, यह देखना अभी बाकी है। उधर सुखदेव भगत की उम्मीदवारी से दिग्गज कांग्रेसी भी सहज नहीं हैं। डॉ रामेश्वर उरांव और डॉ अरुण उरांव सरीखे कांग्रेसी, जो यहां से टिकट के दावेदार थे, अब तक सुखदेव भगत के साथ नजर नहीं आये हैं। इनके समर्थन के बिना सुखदेव भगत का सफर आसान नहीं होगा।
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