रतलाम-झाबुआ सीट पर जयस के उतरने से किसके वोट कटेंगे?
नई दिल्ली। मध्यप्रदेश के करीब 85 प्रतिशत आदिवासी क्षेत्र वाले लोकसभा चुनाव क्षेत्र रतलाम-झाबुआ में मुख्य मुकाबला तीन उम्मीदवारों में होगा। मध्यप्रदेश में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ने वाले जय आदिवासी युवा शक्ति संगठन (जयस) को लोकसभा चुनाव में कोई तवज्जो नहीं मिल पाई। जयस के प्रमुख डॉ. हीरालाल अलावा कांग्रेस के टिकट पर मनावर से जीत तो गए, लेकिन कांग्रेस को समर्थन देने के बाद भी उन्हें मंत्री नहीं बनाया गया। जयस ने चुनाव में कांग्रेस से 4 सीटें मांगी थी, लेकिन एक भी सीट नहीं मिली। भाजपा में जाने की धमकियां भी काम नहीं आई। अब जयस ने अपने उम्मीदवार खड़े करने का फैसला किया है।
जयस का कांग्रेस-भाजपा दोनों पर आक्रामक रुख
आदिवासी राजनीति में सक्रिय जयस के नेताओं का कहना है कि अब तक कांग्रेस और भाजपा आदिवासी वोटों को 'लूटती' आई है। अब जाकर आदिवासियों ने अपना राजनैतिक संगठन बनाया है। पिछले चुनाव में जयस ने कांग्रेस से समझौता कर लिया था, लेकिन अब जयस स्वतंत्र रूप से राजनीति करेगा। जयस ने रतलाम झाबुआ सीट से कमलेश डोडियार को टिकट दिया है। पिछले विधानसभा चुनाव में कमलेश डोडियार निर्दलीय रूप से सैलाना विधानसभा क्षेत्र से उम्मीदवार थे। उन्हें कांग्रेस ने न तो टिकट दिया था और न ही समर्थन। इसके बावजूद वे करीब 18 हजार वोट पाने में कामयाब रहे।
आदिवासी राजनीति में सक्रिय होने का दावा करने वाले जयस रतलाम झाबुआ संसदीय क्षेत्र से उम्मीदवार को खड़ा कर चुकी है, लेकिन वह यह बात भूल गई कि अजजा सुरक्षित लोकसभा क्षेत्र से सभी उम्मीदवार ही होंगे। इसलिए जयस के नाम पर वोट तो मांगे जा सकते है, लेकिन मतदाता के सामने कांग्रेस और भाजपा के आदिवासी नेता भी सामने है। कांतिलाल भूरिया, प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष रहने के साथ ही केन्द्र में मंत्री भी रह चुके हैं और उनका संसदीय क्षेत्र में अच्छा खासा होल्ड है।
जयस नेता कह रहे, बड़ी पार्टियों ने लूटे आदिवासियों के वोट
जयस के नेताओं के भाषण में जो बात कही जाती है, वो यह कि अब तक आदिवासियों के वोटों को बड़ी पार्टियों के नेता बहला-फुसलाकर प्राप्त करते रहे और उन्होंने अपनी पार्टी के बड़े नेताओं के इशारे पर काम किया। दलितों के हित की तरफ उनका ध्यान बहुत कम रहा। जयस के उम्मीदवार जीतने के बाद आदिवासियों के उत्थान को सर्वोच्च प्राथमिकता देंगे। झाबुआ और आलीराजपुर जिले की 5 विधानसभा सीटों पर और रतलाम जिले की ग्रामीण तथा सैलाना विधानसभा सीट के मतदाता जयस के कार्यों से परिचित हैं।
जयस के सामने जो सबसे बड़ी चुनौती है, वह यह कि आदिवासी अंचलों के करीब 70 प्रतिशत ग्रामीण परिवार रोजगार के लिए इंदौर और दूसरे शहरों में पलायन कर चुके है। कई आदिवासी गांवों में बहुत कम मतदाता उपलब्ध हैं। गर्मी के दिनों में सिंचाई की व्यवस्था नहीं होने से खेत छोड़कर आदिवासी परिवार जा चुके हैं। विधानसभा चुनाव के वक्त सर्दियों का मौसम था और आदिवासियों का पलायन नहीं के बराबर था। इसीलिए रतलाम-झाबुआ संसदीय क्षेत्र के आदिवासी क्षेत्रों में फिलहाल चुनाव प्रचार का कोई खास माहौल नहीं है। कांग्रेस और भाजपा के प्रत्याशी प्रमुख कस्बों और सड़क के किनारे के गांव में भी जनसंपर्क कर रहे हैं।
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जयस से भाजपा-कांग्रेस दोनों चिंतित
जयस के उम्मीदवार की घोषणा होने से भाजपा और कांग्रेस दोनों चिंतित नजर आ रही हैं। दोनों ही पार्टियां अभी समझ नहीं पा रही है कि जयस का प्रत्याशी उनमें से किसके वोट काटेगा। भाजपा और कांग्रेस अपना वोट बैंक मजबूत बनाने के लिए संघर्ष में जुट गई हैं। रतलाम-झाबुआ संसदीय सीट पर भी मतदान 19 मई को होगा। झाबुआ सेसटे हुए धार, इंदौर, खरगोन में भी इसी दिन मतदान है।
रतलाम-झाबुआ संसदीय क्षेत्र से भाजपा के जी.एस. डामोर प्रत्याशी हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में उन्होंने कांग्रेस के नेता डॉ. विक्रांत भूरिया को हराया था, जिनके पिता कांतिलाल भूरिया अब लोकसभा चुनाव में उनके सामने हैं। रतलाम-झाबुआ सीट वैसे तो कांग्रेस की परंपरा सीट मानी जाती है, लेकिन पिछले लोकसभा चुनाव में वहां से भाजपा प्रत्याशी दिलीप सिंह भूरिया की जीत हुई थी।
बीमारी के बाद दिलीप सिंह भूरिया का निधन हो गया और जब उपचुनाव हुआ, तब उसमें फिर कांतिलाल भूरिया विजयी हुए। विधानसभा चुनाव में अपने बेटे की हार के बाद कांतिलाल भूरिया फूंक-फूंककर कदम रख रहे है। विधानसभा चुनाव में भी मुकाबला त्रिकोणीय हो गया था, जब कांग्रेस के बागी उम्मीदवार जेवियर मेढ़ा खड़े हुए और यह विधानसभा सीट कांग्रेस के हाथ से निकल गई।
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