जावेद अख्तर-शबाना आजमी आएंगे, कन्हैया कुमार को जिताएंगे?
नई दिल्ली। बिहार का बेगूसराय लोकसभा क्षेत्र अब हाई प्रोफाइल सीट में शुमार है। केन्द्रीय मंत्री गिरिराज सिंह के इंकार और इकरार, इस मामले में अमितशाह की दखल और जेएनयू कांड से चर्चित कन्हैया कुमार ने बेगूसराय को सुर्खियों में ला दिया है। कन्हैया कुमार इस सीट पर सीपीआइ के उम्मीदवार हैं। कन्हैया के प्रचार के लिए मशहूर गीतकार जावेद अख्तर और लिजेंड्री एक्ट्रेस शबाना आजमी यहां आने वाली हैं। बेगूसराय में महागठबंधन बिखर गया है। राजद के तनवीर हसन भी यहां से चुनाव लड़ेंगे। यहां चौथे चरण के तहत 29 अप्रैल को चुनाव होनेवाला है।
कन्हैया ने मुकाबले को रोचक बनाया
कन्हैया कुमार जेएनयू कांड की वजह से 2016 में चर्चित हुए थे। तब देश भर के लोगों ने जाना कि जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष कन्हैया कुमार बिहार के बेगूसराय के रहने वाले हैं। कन्हैया ने जेएनयू कैंपस में देश विरोधी नारे लगाये या नहीं, ये सवाल जांच के दायरे में है। अदालत में इस मामले पर सुनवाई चल रही है। फैसला चाहे जो आये लेकिन इस विवाद ने कन्हैया को मशहूर कर दिया। 2016 में कन्हैया नाम के एक नये तूफान से राजनीति में हलचल मच गयी थी। भाजपा विरोधी दल उन्हें एंटी मोदी फेस के रूप में प्रोजेक्ट करने लगे। यहां तक कि वे राहुल गांधी, नीतीश कुमार और लालू प्रसाद के दुलारे बन गये। नीतीश 2016 में लालू के साथ थे। जेएनयू कांड के बाद नीतीश ने कन्हैया को राजकीय अतिथि बनाया था। लालबत्ती गाड़ी भेज कर स्टेट गेस्ट हाउस में खूब आवभगत की थी। लालू ने उस वक्त कन्हैया को देश का भविष्य बताया था। जिस तरह से कन्हैया को भाजपा विरोधी दलों ने हाथोंहाथ लिया था उसी वक्त ये तय हो गया था कि वे चुनावी उखाड़े में जरूर उतरेंगे। अब कन्हैया को सीपीआइ ने बेगूसराय से अपना उम्मीदवार बनाया है।
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शबाना आजमी और जावेद अख्तर आएंगे बेगूसराय
32 साल के कन्हैया कुमार माकपा की बड़ी उम्मीद बन कर उभरे हैं। साम्यवादी रुझान रखने वाले देश भर के बुद्धिजीवी और कलाकार उनको समर्थन दे रहे हैं। मशहूर शायर और फिल्म गीतकार जावेद अख्तर, उनकी पत्नी शबाना आजमी अप्रैल के तीसरे हफ्ते में बेगूसराय आ रहे हैं। शबाना आजमी भारत की सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्रियों में एक हैं। सर्वश्रेष्ठ अभिनय के लिए वे तीन बार राष्ट्रीय पुरस्कार जीत चुकी हैं। ऐसी मशहूर हस्तियों के प्रचार से कन्हैया को जरूर फायदा मिलेगा। जावेद अख्तर और शबाना आजमी साम्यवादी नाट्य संस्था इप्टा यानी इंडियन पीपुल्स थियेटर के सक्रिय सदस्य हैं। जाहिर है वे अपने राजनीतिक संगठन के उम्मीदवार की जीत के लिए खूब मेहनत करेंगे। वैसे भी साम्यवादी शक्तियां कन्हैया को मोदी विरोध का बड़ा प्रतीक बनाना चाहती हैं। यह तभी होगा जब कन्हैया कुमार चुनाव जीत कर अपनी ताकत दिखाएं।
साम्यवादी विरासत के आगे बढ़ाएंगे कन्हैया ?
कन्हैया कुमार बेगूसराय जिले के बिहट गांव के रहने वाले हैं। वे भूमिहार ब्राह्मण परिवार से ताल्लुक रखते हैं। बेगूसराय को पहले बिहार का लेनिनग्राद कहा जाता था। एक वक्त बेगूसराय लोकसभा सीट और इसके पांच विधान सभा क्षेत्रों पर कम्युनिस्ट पार्टी का कब्जा हुआ करता था। भूमिहार समुदाय के लोगों ने ही बेगूसराय में साम्यवाद का बीजारोपण किया था। चंद्रशेखर सिंह इसके अगुआ थे। चंद्रशेखर सिंह बिहट के ही रहने वाले थे। एक छात्र के रूप में कन्हैया अपने गांव के पुरोधा से प्रभावित थे। वे माकपा की छात्र इकाई एआइएसएफ से जुड़े। पटना विश्वविद्यालय में पढ़ाई के दौरान एआइएसएफ की राजनीति की। उच्चशिक्षा के लिए जेएनयू गये। जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष बने।
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कन्हैया की वजह से टूटा महागठबंधन
2019 में कन्हैया के लिए बिहार में सियासी हालात बदल गये। जिस कन्हैया को लालू और नीतीश ने सिर आंखों पर बैठाया था वे बेगाने हो गये। नीतीश और लालू को अपनी पड़ी थी। कन्हैया को भला कौन पूछता। नीतीश भाजपा के साथ हैं इस लिए गिरिराज के पक्ष में खड़े हैं। लालू के पास दरियादिली दिखाने का मौका जरूर था लेकिन खुदगर्जी ने ऐसा होने नहीं दिया। जिस कन्हैया को लालू भाजपा विरोध की बड़ी ताकत बता रहे थे, वक्त आया तो गौर भी नहीं किया। लालू ने माकपा और भाकपा को महागठबंधन से दरकिनार कर दिया। माकपा को उम्मीद थी कि लालू बेगूसराय सीट पर कन्हैया को समर्थन देंगे। लेकिन लालू ने दामन झटक लिया। अब इस सीट माकपा, राजद और भाजपा में तीनतरफा मुकाबला होगा।
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साम्यवाद की पुरानी जमीन है बेगूसराय
बेगूसराय लोकसभा सीट पर सीपीआइ ने पहली बार 1967 में कब्जा जमाया था। इसके बाद 1990 में इस जिले की पांच विधानसभा सीटों पर सम्यवादी दलों ने कब्जा जमाया था। बेगूसराय सीपीएम को, बरौनी, बछवाड़ा, बखरी और मटिहानी सीट पर सीपीआई को मिली थी। 1995 के विधानसभा चुनाव में यहां साम्यवादी दलों का ही दबदबा रहा। भाजपा के दिवगंत सांसद डॉ. भोला सिंह का सियासी सफर साम्यवादी दल से ही शुरू हुआ था। 1972 में वे सीपीआइ के टिकट पर बेगूसराय से विधायक चुने गये थे। कई दलों में जाने के बाद अंत में वे भाजपा में गये थे। साम्यवाद के विध्वंस पर ही आज भाजपा आज बेगूसराय में अपना परचम लहरा रही है। अगर कन्हैया की गिरिराज से आमने सामने टक्कर होती तो मुकाबला बहुत कांटे का होता। लेकिर राजद ने यहां प्रत्याशी दे कर भाजपा का काम आसान कर दिया है।