उज्जैन में विधानसभा के दो पुराने प्रतिद्वंदी अब लोकसभा के लिए भी आमने-सामने
भोपाल। मध्यप्रदेश की उज्जैन लोकसभा सीट पर भारतीय जनता पार्टी ने 2014 में चिंतामणि मालवीय को टिकट दिया था। मालवीय ने कांग्रेस के दिग्गज नेता प्रेमचंद गुड्डू को हराया था, लेकिन इस लोकसभा चुनाव में भाजपा ने मालवीय को टिकट नहीं दिया और अनिल फिरोजिया को मैदान में उतार दिया, जो तराना विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर चुके है। अभी उज्जैन लोकसभा क्षेत्र में विधानसभा की आठ सीटें है, जिनमें से 4 पर कांग्रेस का कब्जा है। ऐसे में भाजपा के लिए उज्जैन से बड़ी चुनौती है। सत्यनारायण जटिया भी उज्जैन से सांसद रह चुके हैं। 2014 में भाजपा ने उन्हें भी टिकट नहीं दिया था। हर बार नए नेता को टिकट देने को भाजपा ने परंपरा बना लिया। भाजपा को पिछले चुनाव में यहां से सवा तीन लाख से भी ज्यादा वोटों से जीत हासिल हुई थी। भाजपा को डर है कि कही इस चुनाव में उसे भितरघात का सामना न करना पड़े।
उज्जैन में भाजपा ने अनिल फिरोजिया को दिया टिकट
उज्जैन लोकसभा क्षेत्र में 8 विधानसभा सीटें हैं - उज्जैन उत्तर और उज्जैन दक्षिण, आलोट, तराना, महिदपुर, बड़नगर, घटिया और खाचरौद। कांग्रेस ने उज्जैन लोकसभा सीट से इस बार बाबूलाल मालवीय को उम्मीदवार बनाया है, जो गत विधानसभा चुनाव में अनिल फिरोजिया से चुनाव हार गए थे। इस तरह विधानसभा चुनाव के ही दो प्रत्याशी लोकसभा में अपनी किस्मत आजमा रहे है। बाबूलाल मालवीय तराना से एक बार विधानसभा चुनाव जीत चुके है, लेकिन 2003 और 2008 में वे विधानसभा का चुनाव हार गए थे, इस तरह चुनाव लड़ने का अनुभव उन्हें अच्छा खासा है, लेकिन गुटबाजी से पार पाने का उनका अनुभव नहीं है।
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कांग्रेस ने बाबूलाल मालवीय को चुनाव मैदान में उतारा
कांग्रेस के सामने इस चुनाव में सबसे बड़ी चुनौती पार्टी के अंदरूनी गुटों के लड़ाई है। कहा जाता है कि यहां कमलनाथ समर्थकों के ही 6 गुट है। इसके अलावा ज्योतिरादित्य सिंधिया और दिग्विजय सिंह समर्थकों के भी अलग-अलग गुट है। ये सभी गुट विधानसभा चुनाव में एक होकर लड़ रहे थे, इसलिए कांग्रेस को बुरी स्थिति का सामना नहीं करना पड़ा और टक्कर बराबरी की थी, लेकिन इस बार आपसी लड़ाई का खौफ कांग्रेस उम्मीदवार के मन में बुरी तरह है ही। बाबूलाल मालवीय से कांग्रेस के ही कई खेमों की नाराजगी है। सोशल मीडिया पर ये खेमे लगातार संदेश देते रहते है। यहां तक की कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को भी इसकी शिकायत की जा चुकी है। अनेक लोगों ने टिकट मिलने के बाद यह मांग की थी कि उज्जैन संसदीय क्षेत्र से किसी युवा प्रत्याशी को मौका दिया जाए।
विधानसभा चुनाव के ही दो प्रत्याशी लोकसभा में
भारतीय जनता पार्टी के गुटों में भी लड़ाई कम नहीं है। भाजपा ने अपने ही जीते हुए सांसद का टिकट काटा है। वह भी तब जब उनकी जीत काफी शानदार हुई थी। चिंतामणि मालवीय ने मांग की थी कि अगर उन्हें उज्जैन से टिकट न मिले, तो कोई बात नहीं, उन्हें पास के ही देवास संसदीय क्षेत्र से टिकट दिया जाए, लेकिन पार्टी ने उनकी बात नहीं मानी। देवास-शाजापुर संसदीय क्षेत्र पर भाजपा के पुराने दिग्गज नेता थावरचंद गेहलोत भी दावा कर रहे थे, लेकिन उन्हें भी टिकट नहीं मिला। थावरचंद गेहलोत केन्द्रीय मंत्री रहते हुए देवास, शाजापुर, उज्जैन और रतलाम जिलों में काफी सक्रिय रहे। उनके नाम की चर्चा गत राष्ट्रपति चुनाव में भाजपा प्रत्याशी के रूप में भी हुई थी, लेकिन भाजपा ने उन्हें राष्ट्रपति पद का प्रत्याशी बनाना तो दूर, लोकसभा चुनाव के लायक भी नहीं समझा। इससे थावरचंद गेहलोत पार्टी के प्रति मन ही मन कटे से रहने लगे। जब देवास से प्रत्याशी चुनने की बात आई, तब थावरचंद गेहलोत की भूमिका महत्वपूर्ण रही। उनके खेमे ने ऐसे दो नामों को आगे कर दिया, जिनमें से किसी को टिकट नहीं दिया गया। अंतत: फैसला मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के जिम्मे रहा। उन्होंने महेंद्र सोलंकी का नाम देवास से आगे कर दिया। गेहलोत की शिकायत यह रही कि पार्टी ने न तो उन्हें टिकट दिया और न ही उनके समर्थित किसी प्रत्याशी को। जबकि इंदौर में भाजपा ने स्पीकर सुमित्रा महाजन के आगे बढ़ाए हुए शंकर लालवानी को ही टिकट देना तय किया।
क्या 2014 की तरह फिर बीजेपी करेगी कमाल?
भाजपा के लिए इस बार उज्जैन की सीट 2014 की तरह आसान नहीं है। सवा तीन लाख से अधिक वोटों से जीत का अंतर तो दूर इस बार पार्टी को चुनाव लड़ने के लिए भी परिश्रम करना पड़ रहा है। क्षेत्र के मतदाताओं को चिंतामणि मालवीय से बहुत शिकायतें हैं। उनका कहना है कि चिंतामणि ने मतदाताओं की अपेक्षा का ख्याल नहीं रखा और केवल दिल्ली की राजनीति ही करते रहे। भारी भरकम बजट के बाद भी उज्जैन का विकास उतना नहीं हो पाया, जितने दावे किए गए थे। अब मोदी के नाम पर भाजपा प्रत्याशी वोट मांग रहे है, जिसमें उनकी कामयाबी की कोई गारंटी नहीं है।