बेगूसराय में JNU बनाम JNU, कन्हैया के खिलाफ अल्पसंख्यक और जाति का कार्ड
पटना। बेगूसराय, राजनीति की नयी प्रयोगशाला बन चुका है। लोकसभा चुनाव के दौरान यहां राजनीति का नया चेहरा तैयार हो रहा है। 2016 में 'टुकड़े कांड' के समय जेएनयू में वामपंथी राजनीति और अल्पसंख्यक राजनीति दिलोजान से एक दूसरे पर फिदा थीं। लेकिन 2019 में स्थिति कुछ यूं बदली कि अब अल्पसंख्यक छात्र नेता कन्हैया के वामपंथ को ढकोसला बता रहे हैं। उस समय जेएनयू के छात्रों की एकता एक ताकत के रूप में उभरी थी लेकिन अब उस पर भी जाति और सम्प्रदाय का रंग चढ़ चुका है। जेएनयू के जिस छात्र नेता जयंत जिज्ञाषु ने कन्हैया पर जातिवाद करने का आरोप लगाया था वही अब बेगूसराय में राजद के उम्मीदवार तनवीर हसन के लिए प्रचार कर रहे हैं। तनवीर हसन के लिए अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय, दिल्ली के जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्य़ालय के छात्र नेता भी प्रचार कर रहे हैं। अब राजद ने कन्हैया कुमार के खिलाफ अल्पसंख्यक कार्ड खेल दिया है। कन्हैया को उन्हीं के हथियार से मात देने की पूरी तैयारी है।
बेगूसराय में JNU बनाम JNU
छात्र नेता जयंत जिज्ञाषु बिहार के रहने वाले हैं। उन्होंने 2018 में छात्र राजद के उम्मीदवार के रूप में जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ा था। उनके चुनाव के समय तेजस्वी यादव ने बजाप्ता दिल्ली में कैंप किया था। दिल्ली विश्वविद्यालय के शिक्षक और राजद सांसद मनोज झा ने जयंत के चुनाव का खाका तैयार किया था। उस समय तेजस्वी पर जेएनयू में जातिवादी राजनीति की शुरुआत करने का आरोप लगा था। जेएनयू छात्र संघ अध्यक्ष पद के चुनाव में जयंत जिज्ञाषु को 548 वोट मिले थे और वे चौथे स्थान पर रहे थे। इसके पहले जयंत कन्हैया के सहयोगी रहे थे। जयंत जिज्ञाषु पिछड़ी जाति से आते हैं। एक बार उन्होंने भूमिहार जाति से आने वाले कन्हैया पर जातिवाद का आरोप भी लगाया था। तब उनका ये बयान सुर्खियों में रहा था। अब राजद ने जयंत जिज्ञाषु को कन्हैया के खिलाफ प्रचार करने के लिए खास तौर पर बेगूसराय बुलाया है। जयंत, कन्हैया की पोल खोल कर राजद के तनवीर हसन के लिए वोट मांग रहे हैं। इस लिए अब बेगूसराय में जेएनयू बनाम जेएनयू की लड़ाई शुरू हो गय़ी है। राष्ट्रीय राजनीति में यह पहली बार हो रहा है।
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कन्हैया के खिलाफ अल्पसंख्यक कार्ड
कन्हैया कुमार अपनी जीत के लिए हर तरह की भावनात्मक प्रतीकों का सहारा ले रहे हैं। जेएनयू छात्र संघ की पूर्व उपाध्यक्ष शेहला रशीद कन्हैया के लिए घर -घर जाकर प्रचार कर रही हैं। यह प्रचार बिल्कुल जेएनयू छात्र संघ चुनाव के पैटर्न पर हो रहा है। डफली की धुन पर गीत संगीत के साथ। जेएनयू के गायब छात्र नजीब की मां फातिमा नफीस कन्हैया को अपना दूसरा बेटा कहती हैं। उन्होंने नामांकन के दिन कन्हैया को दही खिला कर विदा किया था। फातिमा नफीस और शेहला रशीद अल्प संख्यक वोटरों को भावनात्मक रूप से प्रभावित कर रही हैं। इसकी काट में ही राजद ने कन्हैया के खिलाफ अल्पसंख्यक कार्ड खेला है। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय अल्पसंख्यक छात्र राजनीति का सबसे मजबूत अड्डा है। दिल्ली के जामिया मिलिया विश्वविद्यालय की भी ऐसी ही पहचान है। अब इन दोनों विश्वविद्यालयों के छात्र नेता कन्हैया के खिलाफ राजद के लिए वोट मांग रहे हैं। वे तनवीर हसन के लिए अल्पसंख्यक वोटों को गोलबंद करने की कोशिश कर रहे हैं। इतना ही नहीं दिल्ली विश्वविद्यालय की कांग्रेस छात्र इकाई (एनएसयूआइ) भी राजद के लिए वोट मांग रही है।
पिछले चुनाव में दूसरे स्थान पर था राजद
2014 के लोकसभा चुनाव में राजद ते तनवीर हसन दूसरे स्थान पर थे। वे भाजपा के भोला सिंह से करीब 58 हजार मतों के अंतर से ही हारे थे। जब से अल्पसंख्यक छात्र नेता तनवीर हसन के लिए चुनाव प्रचार रह रहे हैं तब से उनका उत्साह बढ़ा हुआ है। तनवीर हसन का कहना है कि उनका मुकाबला कन्हैया से नहीं भाजपा से है। राजद कार्यकर्ताओं का कहना है कि लोकसभा का चुनाव , छात्र संघ के चुनाव से बहुत अलग है। जेएनयू की डफली यहां काम नहीं आने वाली। कन्हैया कुमार भूमिहार जाति से आते हैं। भाजपा के गिरिराज सिंह भी इसी जाति से हैं। कन्हैया को कितने भूमिहार वोट मिलेंगे, कहना मुश्किल है। बेगूसराय में वामपंथ तो कब का उखड़ चुका है। बाहरी नेताओं और उनकी मित्र मंडली के आने से कुछ बदलने वाला नहीं।