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कितनी दूर तक जा सकती है मायावती की कांग्रेस से दूरी बनाने की कोशिश

By आर एस शुक्ल
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नई दिल्ली। आम चुनावों के सातों चरण समाप्त हो चुके हैं। एग्जिट पोल के अनुमान भी सामने आ चुके हैं। 23 मई को परिणामों की घोषणा भी हो जाएगी। दोनों ही गठबंधन चुनाव और परिणामों के बाद की रणनीति बनाने में जुटे हुए हैं। यूपीए की चेयरपर्सन सोनिया गांधी ने विपक्षी दलों की बैठक बुलाई है तो ऐसी खबरें भी हैं कि भाजपा अध्यक्ष अमित शाह अपने गठबंधन के नेताओं को रात्रि भोज पर बुलाने वाले हैं। इस सब के बीच तेलंगाना के मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव फेडरल फ्रंट और आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू व्यापक विपक्षी एकता की मुहिम में जुटे हुए हैं। लेकिन जो अपनी गति से चल रहा है वह है मायावती का कांग्रेस विरोध जो पहले की तरह ही लगता है अभी भी कायम है और जिसे वह अनवरत जारी रखना चाहती हैं। तभी तो उनकी पार्टी बसपा की ओर से यह कह दिया गया है कि वह सोनिया गांधी की ओर से बुलाई गई बैठक में हिस्सा नहीं लेने जा रही हैं। यह अलग बात है कि उक्त बैठक कांग्रेस की नहीं बल्कि कांग्रेस की ओर से बुलाई गई है और जिसमें माना जा रहा है कि चुनाव परिणामों के बाद की स्थिति पर विचार-विमर्श किया जा सकता है।

मायावती का कांग्रेस विरोध पहले की तरह कायम

मायावती का कांग्रेस विरोध पहले की तरह कायम

हालांकि जब तक चुनाव परिणामों की घोषणा नहीं हो जाती, तब तक कुछ भी निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता। यद्यपि एग्जिट पोल यह बता रहे हैं कि एक बार फिर एनडीए की सरकार केंद्र में बनने जा रही है। एग्जिट पोल और उनके निष्कर्षों के बारे में भी सभी की अपनी-अपनी राय है। कुछ लोग इसे अविश्वसनीय बता रहे हैं, तो कई लोग यह भी बता रहे हैं कि वे अक्सर झूठे साबित हुए हैं। लेकिन यह भी सच्चाई है कि कई बार कुछ सही भी साबित हुए हैं अथवा सही के करीब रहे हैं। इस बार भी यह हो सकता है कि एक्जिट पोल सही साबित हो जाएं। अगर इसके आधार पर बसपा प्रमुख का यह फैसला आया है, तो कहा जा सकता है कि वाकई उन्हें इस बैठक की कोई जरूरत नहीं समझ में आ रही होगी। लेकिन बात केवल इतनी नहीं लगती। यह उनकी पुरानी राजनीति की तरह ज्यादा लगता है जिसमें वह अंतिम समय में अपने तरीके से फैसले लेती हैं जिसके बारे में पहले से कोई स्पष्ट नहीं हो सकता, अंदाजा भले लगाया जा सकता है। इसीलिए इस पर अभी केवल अनुमान ही लगाया जा सकता है कि आखिर मायावती इस बैठक में क्यों शामिल नहीं हो रही हैं। लेकिन इससे अंतिम अर्थ नहीं निकाला जा सकता कि वह पूरी तौर पर कांग्रेस से दूरी बनाकर ही चलेंगी।

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सोनिया गांधी की ओर से बुलाई गई बैठक में मायावती नहीं लेंगी हिस्सा

सोनिया गांधी की ओर से बुलाई गई बैठक में मायावती नहीं लेंगी हिस्सा

अभी के राजनीतिक हालात यह संकेत अवश्य करते हैं कि वे संभवतः कांग्रेस से दूरी बनाकर चलना चाहती हैं। इसके पीछे तात्कालिक कारण क्या हो सकते हैं, इसको लेकर गणित लगाई जा सकती है। लेकिन यह बहुत स्पष्ट रहा है कि बसपा का कांग्रेस के साथ बहुत पुराना विरोध का इतिहास रहा है। कांग्रेस से लड़कर ही उनकी पार्टी न केवल अस्तित्व में आई थी बल्कि उत्तर प्रदेश में सत्ता तक पहुंची थी। बसपा और मायावती का आधार मतदाता दलित भी कभी कांग्रेस का ही रहा है। अब राजनीतिक हालात भले ही काफी बदल चुके हों और कांग्रेस न केवल केंद्र की सत्ता से बाहर हो बल्कि पिछले लोकसभा चुनाव में जिसकी संख्या सिमट कर दहाई में पहुंच चुकी हो। लेकिन यह अब से पांच साल पहले एक दशक तक केंद्र में सत्ता में रही है। अभी बीते कुछ सालों में भी कई राज्यों में वह चुनाव जीतकर सत्ता में आ चुकी है। केंद्र में भी भले ही इस चुनाव में वह सत्ता के करीब न आती न दिख रही हो, लेकिन यह संभावना भी जताई जा रही है कि इस बार वह अच्छा प्रदर्शन कर सकती है और उसकी संख्या बढ़ सकती है। उत्तर प्रदेश के विशेष संदर्भ में भी यह याद रखने की जरूरत है कि वह खुद को नए सिरे से खड़ा करने की कोशिश में लगी हुई है। इस चुनाव के दौरान ही प्रियंका गांधी को महासचिव बनाकर पूर्वी उत्तर प्रदेश का जिम्मा दिए जाने को इसी रूप में लिया गया है। इससे यह संकेत देने की कोशिश भी की गई है कि आगामी विधानसभा चुनाव में जीत हासिल करना कांग्रेस का लक्ष्य है। यह सब कुछ भी मायावती के लिए कांग्रेस से दूरी बनाने के कारणों में लिया जा सकता है।

बसपा का कांग्रेस के साथ बहुत पुराना विरोध का इतिहास

बसपा का कांग्रेस के साथ बहुत पुराना विरोध का इतिहास

लोकसभा चुनावों में कांग्रेस के साथ गठबंधन न हो पाने के पीछे के कारणों में मायावती के कांग्रेस विरोध को भी बड़ा कारण माना गया था। इससे पहले तीन राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों में मायावती ने छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की बजाय जोगी कांग्रेस के साथ पहले ही गठबंधन कर लिया था। हालांकि चुनावों के बाद मायावती ने मध्यप्रदेश और राजस्थान में कांग्रेस की सरकार को समर्थन दिया था। अब से कुछ दिन पहले ही मायावती की ओर से मध्यप्रदेश सरकार को समर्थन वापसी के बारे में सोचने की भी बात की थी। राजस्थान में भी समर्थन को लेकर भी कोई सहजता नजर नहीं आती रही है। मतलब कुल मिलाकर ऐसा लगता है कि मायावती कांग्रेस के साथ लगातार दूरी बनाकर चल रही हैं। ऐसे में यह सवाल भी उठाए जाते रहे हैं कि क्या चुनाव के बाद विपक्ष के लिए अनुकूल माहौल के बावजूद मायावती का कांग्रेस को लेकर इसी तरह का रवैया रहेगा अथवा इसमें किसी तब्दीली की संभावना तलाशी जा सकती है। इस संभावना की तलाश इसलिए भी की जाती रही है कि मायावती और उनकी बसपा इस लोकसभा चुनाव में भाजपा विरोध के नाम पर मैदान में थी और इसी आधार पर सपा और रालोद के साथ गठबंधन भी हुआ था। यानी अगर ऐसे हालात बने तो वह विपक्ष के साथ खड़ी होंगी। बातें यहां तक की जा रही थीं कि वह प्रधानमंत्री पद की भी दावेदार हैं। तो क्या यह हो सकता है कि अगर ऐसी नौबत आई तो बिना कांग्रेस के समर्थन के क्या यह संभव हो सकेगा। मायावती के प्रधानमंत्री बनने की कोई संभावना तब भी नहीं हो सकती जब भाजपा का समर्थन उन्हें मिल जाए। यह एक तरह से असंभव ही ज्यादा लगता है। कांग्रेस तो एक बार कर्नाटक की तरह ऐसा कर भी सकती है।

नतीजों के बाद क्या होगा मायावती का रुख

नतीजों के बाद क्या होगा मायावती का रुख

यह बात तो समझ में आ सकती है कि मायावती को चुनाव परिणामों की घोषणा का इंतजार हो। यह स्वाभाविक भी कहा जा सकता है। यह भी हो सकता है कि उनके अपने गठबंधन में इस तरह की कोई राय बनी हो कि फिलहाल इस बैठक में नहीं जाना है। कारण कुछ भी हों, यह संदेश तो जा रहा है कि विपक्ष में एकता का अभाव है। यह इस आधार पर भी कहा जा रहा है कि कोई जरूरी नहीं कि सोनिया गांधी की ओर से बुलाई गई बैठक में सरकार बनाने के बारे ही बातचीत हो। वैसे भी चुनावों के दौरान हर विपक्षी नेता की ओर से यह कहा जाता रहा है कि चुनावों के बाद सब कुछ तय कर लिया जाएगा। प्रधानमंत्री के नाम पर भी कोई विवाद नहीं होगा। लेकिन जब यह अभी नहीं हो पा रहा है, तो चुनाव बाद क्या होगा इसका अनुमान लगाया जा सकता है। जहां तक मायावती के कांग्रेस विरोध की बात है, वह हो ही सकता है। लेकिन लगता नहीं कि इस समय यह कोई ऐसा मुद्दा है जिसे बहुत तूल देना कोई समझदारी माना जाए क्योंकि कांग्रेस अब खुद ही बहुत कमजोर हो चुकी है। फिलहाल तो किसी भी दल और नेता के लिए मात्र इसका चयन करना बाकी है कि वह इस तरह है या उस तरफ। देखना यह होगा कि मायावती और उनकी बसपा इस तरफ रहते हैं अथवा उस तरफ।

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English summary
Lok Sabha Elections 2019: How far can Mayawati BSP effort to distance the Congress rahul gandhi
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