लोकसभा चुनाव 2019: क्या किसानों का क़र्ज़ पूरी तरह माफ़ हो गया?
कुछ किसान समूह और लॉबिंग करने वालों का तर्क है कि सभी किसानों का हर तरह का क़र्ज़ माफ़ होना चाहिए. इसके बाद कृषि आधारित अर्थव्यवस्था की मदद के लिए सबसे बेहतर तरीक़े पर विचार विमर्श करना चाहिए.
भारत के अधिकांश किसान भारी क़र्ज़ में हैं लेकिन क्या क़र्ज़ माफ़ी की घोषणाओं में उनका क़र्ज़ पूरी तरह माफ़ हो जाता है?
यह वह सवाल है जिसे देश के राजनेता के अलावा दूसरे लोग भी पूछ रहे हैं. माना जा रहा है कि इस आम चुनाव में यह एक देशव्यापी मुद्दा रहेगा.
दावा: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मुताबिक़ समय-समय पर क़र्ज़ माफ़ी की घोषणाएं समस्या का वास्तविक समाधान नहीं हैं. इसकी तुलना वे चुनाव के समय में लॉलीपॉप से करते हैं.
सच्चाई: अतीत में की गई क़र्ज़ माफ़ी की घोषणाओं की पड़ताल से पता चलता है कि यह किसानों की समस्या का हल नहीं है.
2014 से 2018 के बीच 11 राज्यों की सरकारों ने अपने यहां किसानों के क़र्ज़ माफ़ी की घोषणा की. इनमें बीजेपी और कांग्रेस दोनों की सरकारें शामिल हैं. क़र्ज़ माफ़ी की इन घोषणाओं में सरकार की लागत 1.5 लाख करोड़ रुपए से ज़्यादा रही है.
क्या हैकिसानों की मुश्किल
भारत के कुल मानव संसाधन का 40 फ़ीसदी से ज़्यादा हिस्सा खेती-किसानी से जुड़ा हुआ है.
किसानों को कुछ मौक़ों पर बीज, उपकरण और दूसरे अहम कामों के लिए क़र्ज़ लेना पड़ता है और इसके बाद वे उसे चुकाने के लिए संघर्ष करते हैं.
ख़राब मौसम के चलते कई बार फसल का नुक़सान हो जाता है और इससे किसानों की वित्तीय मुश्किलें काफ़ी बढ़ जाती हैं, कई बार तो किसान आत्महत्या तक कर लेते हैं.
पिछले साल की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ मौजूदा दशक में ग्रामीण इलाक़ों में जो परिवार खेती-किसानी पर आश्रित हैं, उनके क़र्ज़ लेने के मामले बढ़े हैं.
{image-ग्रामीण भारत पर बढ़ता कर्ज़. कर्ज़दार परिवार (प्रतिशत में). . hindi.oneindia.com}
हाल के सालों में, किसानों की आमदनी कम हुई है क्योंकि वास्तविक मज़दूरी में मामूली बढ़ोत्तरी हुई है जबकि फसलों के दाम या तो कम हुए हैं या स्थिर रहे हैं.
क़र्ज़ माफ़ी से कम होती है मुश्किल?
हालांकि, अब तक ये स्पष्ट नहीं है कि क़र्ज़माफ़ी की राहत किसानों के लिए कितनी प्रभावी मदद है.
एक और बात ये है कि किसानों के क़र्ज़ में होने का सीधा संबंध किसानों की आत्महत्याओं से भी नहीं दिखता.
ज़्यादातर आत्महत्याएं संपन्न राज्यों में होती हैं, इन राज्यों में वो किसान हैं जो सबसे ग़रीब और क़र्ज़ में डूबे किसानों की तुलना में थोड़े संपन्न हैं.
सूचना के अधिकार क़ानून के तहत मांगी गई जानकारी के मुताबिक़ महाराष्ट्र में 2014 से 2018 के बीच हुई 14,034 आत्महत्याओं में 30 फ़ीसदी से ज़्यादा आत्महत्याएं राज्य में 2017 में क़र्ज़माफ़ी के एलान के बाद हुई थी.
इसके अलावा क़र्ज़माफ़ी की घोषणाओं के कारगर होने पर और भी सवाल हैं.
एक रिपोर्ट के मुताबिक़, 1990 में देशभर में किसानों की क़र्ज़माफ़ी के बाद, वित्तीय संस्थानों में लोन रिकवरी की दर में गिरावट के संकेत मिले हैं.
ये कहा जाता है कि क़र्ज़माफ़ी के चलते क़र्ज़ लेने वालों को उम्मीद रहती है कि आने वाले दिनों में ये क़र्ज़ भी माफ़ होगा लिहाज़ा वे क़र्ज़ लौटाने में कम ही दिलचस्पी दिखाते है.
एक राज्य में क़र्ज़माफ़ी की घोषणा के बाद लोन रिकवरी की दर 75% से गिरकर 40% के पास पहुंच गई.
इसके बाद 2008 में देश भर में किसानों की क़र्ज़ माफ़ी के लिए 52,516 करोड़ रूपये दिए गए. इसके एक साल बाद ही देश भर में चुनाव होने थे.
बाद में सरकार के लेखाकारों ने यह भी देखा कि योजना को लागू करने के दौरान, जितने मामले देखे गए उनमें 22% से ज़्यादा मामलों में गड़बड़ी हुई थी.
इसमें यह भी स्पष्ट हुआ कि उन किसानों को पैसे मिले जो इसकी पात्रता नहीं रखते थे. कुछ ऐसे भी किसान थे, जो माफ़ी के हक़दार थे लेकिन उन्हें कुछ नहीं मिला.
इसके अलावा एक और पहलू अहम है, इन योजनाओं के तहत केवल वह क़र्ज़ माफ़ होती है जो किसानों ने बैंक या क्रेडिट देने वाली आधिकारिक संस्थानों से ली थी.
इस प्रावधान के चलते घर-परिवार, दोस्त और साहूकारों से ऋण लेने वाले किसानों को कोई मदद नहीं मिल पाती.
ग्रामीण अर्थव्यवस्था की मदद
कुछ किसान समूह और लॉबिंग करने वालों का तर्क है कि सभी किसानों का हर तरह का क़र्ज़ माफ़ होना चाहिए. इसके बाद कृषि आधारित अर्थव्यवस्था की मदद के लिए सबसे बेहतर तरीक़े पर विचार विमर्श करना चाहिए.
लेकिन, सभी तरह की क़र्ज़ माफ़ी काफ़ी ख़र्चीला सौदा है.
पूर्व कृषि सचिव सिराज हुसैन के आकलन के मुताबिक़ देश भर में क़र्ज़ माफ़ी की रियायत देने के लिए सरकार को कम से कम तीन लाख करोड़ रुपये ख़र्च करने होंगे.
उन्होंने बीबीसी को बताया, ''इतनी बड़ी रक़म तभी ख़र्च की जा सकती है जब दूसरी सभी जनकल्याण योजनाओं को बंद कर दिया जाए.''
यही वजह है कि अब दूसरी तरह के उपाय भी देखने को मिल रहे हैं.
विशेषज्ञों की राय में तेलंगाना में शुरू हुई किसान योजना ऐसा ही उदाहरण है, जिसमें एक एकड़ खेत वाले किसान को प्रत्येक फसल के दौरान 4000 रूपये की गारंटी आय मुहैया कराई जाती है.
भारत में किसानों के लिए फसल के दो सत्र होते हैं, ऐसे में किसानों को दो बार आय मिलेगी. इसके अलावा फसल से होने वाली आमदनी भी उनकी अपनी ही होगी.
ओडिशा और झारखंड जैसे राज्यों में भी ऐसी योजना है.
फ़रवरी, 2019 के अंतरिम बजट में, केंद्र सरकार ने छोटे और सीमांत किसानों की मदद के लिए हर साल छह हज़ार रूपये की मदद देने का प्रावधान किया और अन्य दूसरी मदद देने की घोषणा की. करोड़ों किसानों को इस योजना की पहली क़िस्त का भुगतान हो चुका है.