लोकसभा चुनाव 2019: हरियाणा के वंशवाद और राजनीतिक समीकरण का पूरा गुणा-गणित
नई दिल्ली- हरियाणा की सभी 10 लोकसभा सीटों पर छठे चरण में एक साथ ही वोट डाले जाएंगे। हर बार की तरह इस बार भी राज्य में जातीय एवं वंशवाद की राजनीति का पूरा दबदबा है। लेकिन, इसी कड़ी में कई नए राजनीतिक समीकरण भी बनाए और तोड़े गए हैं। प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस जैसे बड़े सियासी दलों के अलावा कई छोटे-छोटे दलों के अलावा बहुजन समाज पार्टी भी मैदान में है। तरह-तरह के राजनीतिक गठबंधन की वजह से चुनावी ताने-बाने काफी उलझे हुए नजर आ रहे हैं। इसके कारण कम ही सीटों पर सीधे या त्रिकोणीय मुकाबले की संभावना दिख रही है। बीजेपी इस चुनाव में राज्य की सभी 10 सीटें जीतने के मनोबल के साथ मैदान में उतरी है, वहीं कांग्रेस भी अपना किला फिर से वापस पाने के लिए पूरी ताकत झोंक चुकी है। बाकी क्षेत्रीय पार्टियों और उनके गठबंधनों ने भी हर हाल में बीजेपी के मंसूबों पर पानी फेरने के लिए कमर कसा हुआ है।
हरियाणा में गठबंधनों का क्या होगा असर?
हरियाणा में इस बार लगभग हर सीट पर बहुकोणीय मुकाबले की संभावना नजर आ रही है। क्योंकि, राज्य में कई ऐसे नए चुनावी समीकरण बने हैं, जिसने यहां हर सीट पर मुकाबले को रोचक बना दिया है। पंजाब, उत्तराखंड एवं दिल्ली के बाद शिरोमणि अकाली दल (SAD) ने हरियाणा में भी भाजपा को बिना शर्त समर्थन दिया है। वहीं पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा का साथ देने वाली हरियाणा जनहित कांग्रेस का पहले ही कांग्रेस में विलय हो चुका है। जबकि, जननायक जनता पार्टी (JJP) ने आम आदमी पार्टी (AAP) के साथ गठबंधन करके चुनावी ताने-बाने को और भी रोचक बना दिया है। बहुजन समाज पार्टी (BSP) एवं राजकुमार सैनी की लोकतंत्र सुरक्षा पार्टी (LSP) का गठबंधन भी चुनावी फिजा को नया रंग देने की कोशिश में जुटी है। 8 सीटों पर बसपा और 2 सीटों पर लोकतंत्र सुरक्षा पार्टी (LSP) के उम्मीदवार अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। इससे पहले बीएसपी (BSP) का आईएनएलडी (INLD) के साथ गठबंधन हुआ था, लेकिन जींद उपचुनाव की हार के कारण गठबंधन टूट गया। इसलिए, इसबार आईएनएलडी (INLD) सभी सीटों पर अकेले ताल ठोक चुकी है।
कुछ सीटों पर रोचक समीकरण
भारतीय जनता पार्टी इस बार हर हाल में बांगर-जाट बेल्ट में कमल खिलाना चाहती है। यह इलाका राजस्थान, पंजाब और एनसीआर से सटे इलाके में आता है। बांगर-जाट बेल्ट में हिसार, रोहतक, भिवानी-महेंद्रगढ़ और सिरसा लोकसभा क्षेत्र आते हैं। अगर हरियाणा के राजनीतिक मिजाज को देखें तो इन सीटों को राज्य की धड़कन के तौर पर देखा जाता है। भिवानी-महेंद्रगढ़ को छोड़कर मोदी लहर में भी भाजपा यहां की सभी सीटों पर पिछड़ गई थी और तीनों सीटों यानी हिसार, सिरसा और रोहतक पर अभी आईएनएलडी (INLD),जननायक जनता पार्टी (JJP) और कांग्रेस का कब्जा है।
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जातीय समीकरण का अहम रोल
बांगर-जाट बेल्ट में इस बार भी कोई राजनीतिक मुद्दा हावी नहीं दिख रहा और उम्मीदवारों की अपनी छवी और जातीय समीकरण ही जीत-हार का फैसला करने वाले हैं। भिवानी में कांग्रेस ने पूर्व सांसद श्रुति चौधरी को टिकट दिया है, तो भाजपा ने मौजूदा सांसद धर्मबीर पर ही दांव लगाया है। इन दोनों ही उम्मीदवारों में राजनीतिक टकराव जगजाहिर है। जबकि आईएनएलडी (INLD) से अलग होकर जननायक जनता पार्टी (JJP) और 'आप' गठबंधन ने यहां नए चेहरे स्वाति यादव को टिकट दिया है। जबकि, आईएनएलडी (INLD) ने स्वाति को हराने के लिए बलवान फौजी को उतार दिया है। इन उम्मीदवारों में श्रुति और धर्मबीर जाट हैं, तो स्वाति अहीर हैं। वहीं रोहतक में कांग्रेस ने दीपेंद्र हुड्डा और उनके पिता भूपेंद्र हुड्डा को सोनीपत से चुनाव मैदान में उतारा है। रोहतक में भाजपा ने तीन बार सांसद रहे गैर-जाट डॉ. अरविंद शर्मा (ब्राह्मण) को टिकट दिया है। हिसार में मुकाबला कांटे का लग रहा है। केंद्रीय मंत्री बीरेंद्र सिंह के बेटे बृजेंद्र सिंह, जेजेपी सांसद दुष्यंत चौटाला और कांग्रेस के गैर-जाट नेता कुलदीप बिश्नोई के बेटे भव्य बिश्नोई मैदान में हैं। सिरसा में हरियाणा कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष एवं पूर्व सांसद डॉ अशोक तंवर मैदान में हैं, तो भाजपा ने सुनीता दुग्गल पर दांव लगाया है। यहां आईएनएलडी (INLD) ने मौजूदा सांसद चरणजीत सिंह रोड़ी पर भरोसा किया है, तो जेजेपी-आम आदमी गठबंधन की ओर से निर्मल सिंह मलड़ी मैदान में हैं।
वंशवाद की राजनीति सब पर भारी
भारतीय राजनीति में वंशवादी एवं परिवारवादी राजनीति के प्रभाव को सबसे अच्छी तरह इस बार हरियाण के चुनाव में महसूस किया जा सकता है। यहां पूर्व मुख्यमंत्रियों के 8 पोते-पोतियां एवं परपोते और बेटे चुनाव में किस्मत आजमा रहे हैं। जिन चार मुख्यमंत्रियों के पोते मैदान में हैं, उनमें चौधरी देवीलाल, भजनलाल, बंसी लाल और ओम प्रकाश चौटाला शामिल हैं। हालांकि, इन उम्मीदवारों का दावा है कि वे अपने परिवार और वंश की लोकप्रियता के आधार पर चुनाव नहीं लड़ रहे है, बल्कि क्षेत्र में किए गए विकास के कार्यों के आधार पर वोट मांग रहे हैं। अगर हम जाट बहुल हरियाणा में राजनीतिक वर्चस्व रखने वाले परिवारों की बात करें तो इसमें मौजूदा चुनाव में चौटाला, बिश्नोई और हुड्डा वंशजों का दबदबा देखा जा सकता है। उदाहरण के लिए कांग्रेस ने बंसीलाल की ग्रैंडडाउटर श्रुति चौधरी को भिवानी महेंद्रगढ़ से टिकट दिया है, तो भजनलाल के पोते भव्य बिश्नोई को हिसार से उतारा है। इसी तरह से चौटाला परिवार के दुष्यंत चौटाला, दिग्विजय चौटाला, अर्जुन चौटाला, अभय चौटाला भी अलग-अलग पार्टियों और क्षेत्रों से चुनाव लड़ रहे हैं। बीजेपी ने भी केंद्रीय मंत्री बीरेंद्र सिंह के बेटे और पूर्व किसान नेता छोटू राम के पोते ब्रिजेंद्र सिंह को चुनाव में उतारा है। अलबत्ता बीरेंद्र सिंह चुनाव नहीं लड़ रहे हैं। इसी तरह गुड़गांव से भाजपा प्रत्याशी एवं केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह भी हरियाणा के एक पूर्व सीएम राव बीरेंद्र सिंह के बेटे हैं। जबकि, कांग्रेस ने हरियाणा के पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा और उनके बेटे दीपेंद्र सिंह हुड्डा को भी चुनाव में उतारा है।
युवा मतदाता देंगे किसका साथ?
हरियाणा के ये तमाम जातीय और पारिवारिक समीकरण काफी हद तक इस बात निर्भर करेंगे कि युवा मतदाताओं का नजरिया क्या रहता है? क्योंकि, छठे दौर में जब राज्य की सभी 10 सीटों पर मतदान कराए जाएंगे, तो राज्य के कुल 1.80 करोड़ वोटर्स में से करीब 42 लाख वोटर युवा होंगे। उनमें से 3 लाख की उम्र तो 18 से 19 वर्ष के बीच ही होगी। जबकि, बाकी युवाओं की उम्र 20 से 29 साल के बीच की होगी। इतनी बड़ी तादाद में युवा मतदाता भी क्या परंपरागत आधार पर जातीय और पारिवारिक समीकरणों में उलझ जाते हैं, हरियाणा के इस बार के रिजल्ट में यह देखना दिलचस्प होगा। राज्य में 12 मई को जिन 10 सीटों पर चुनाव होने हैं, वे हैं- रोहतक, सिरसा, सोनीपत, हिसार, गुड़गांव, फरीदाबाद, भिवानी-महेंद्रगढ़, कुरुक्षेत्र, करनाल एवं अंबाला। पिछली बार इनमें से 7 सीटों पर बीजेपी ने कब्जा कर लिया था। जबकि, कांग्रेस को सिर्फ 1 से ही संतोष करना पड़ा था।
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