एक साध्वी की वजह से दिग्गी ने लिया था से चुनावी संन्यास, अब दूसरी बनेंगी वापसी में रोड़ा?
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नई दिल्ली- कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह के सामने 16 साल पुराना इतिहास फिर से घूमकर सामने आ चुका है। 16 साल पहले एक साध्वी ने उन्हें 10 साल के लिए चुनावी राजनीति से संन्यास लेने के लिए मजबूर कर दिया था। 16 साल बाद फिर से एक साध्वी उनके सामने चुनावी मुकाबले में आ खड़ी हुई है। 2003 में उस साध्वी ने दिग्गी राजा से 10 साल पुरानी मध्य प्रदेश की सत्ता छीन ली थी, 2019 में एक साध्वी उन्हें भोपाल लोकसभा क्षेत्र में चुनौती देने पहुंच गई हैं। दिग्विजय सिंह के लिए 2003 की हार इतनी बड़ी थी, कि उन्हें 16 साल के लिए चुनावी राजनीति से दूर रहने को मजबूर कर दिया। सिर्फ उनके लिए ही नहीं, उनकी पार्टी के लिए भी वह इतनी करारी हार थी कि पार्टी को प्रदेश में 15 साल तक सत्ता से दूर रहना पड़ा। इतने वर्षों बाद उन्होंने फिर से एकबार चुनावी राजनीति में कूदने की हिम्मत दिखाई है, तो उनके सामने वैसी ही परिस्थितियां फिर से आ खड़ी हुई है। अब यह 23 मई को पता चलेगा कि इसबार दिग्विजय सिंह इतिहास को पलट देंगे या इतिहास यहां अपने आपको एकबार फिर से दोहराएगा।
जब दिग्गी को 10 साल का चुनावी संन्यास लेना पड़ा
20 साल पहले की बात है कि मौजूदा केंद्रीय मंत्री साध्वी उमा भारती को भाजपा ने भोपाल से टिकट दिया था। 1999 में यहां उनका मुकाबला कांग्रेस के दिग्गज सुरेश पचौरी से हुआ। साध्वी ने पचौरी को भारी अंतर से हरा दिया। 4 साल बाद यानी 2003 के मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने उमा भारत को राज्य के अगले मुख्यमंत्री उम्मीदवार के रूप में प्रोजेक्ट किया। उस समय दिग्विजय सिंह प्रदेश के मुख्यमंत्री के तौर पर दूसरा कार्यकाल पूरा कर रहे थे। उमा ने उन्हें विधानसभा चुनावों में हराने का चैलेंज दिया। पूरे चुनाव के दौरान दोनों के बीच भारी वाकयुद्ध चलता रहा। आखिरकार साध्वी ने राघोगढ़ के राजा को करारी शिकस्त दी। भाजपा ने 230 सीटों वाली विधानसभा में 173 सीटें जीतकर तीन-चौथाई बहुत हासिल कर ली। इस अपमानजनक चुनाव परिणाम के बाद दिग्विजय सिंह ने चुनावी राजनीति से 10 साल के संन्यास की घोषणा कर दी। 2014 में वे तब राज्यसभा के जरिए संसद में घुसे जब उनके चुनावी संन्यास का समय पूरा हुआ। दिग्विजय सिंह पिछली बार 2003 में राघोगढ़ से विधानसभा का चुनाव लड़े थे। जबकि, उन्होंने 26 साल पहले 1993 में एमपी की राजगढ़ सीट से लोकसभा का चुनाव लड़ा था।
साध्वी प्रज्ञा, साध्वी उमा का इतिहास दोहराएंगी?
जब कांग्रेस ने भोपाल सीट से राज्य के पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह को टिकट देने का ऐलान किया था, तभी से तय हो चुका था कि बीजेपी उनके मुकाबले कोई ऐसा चेहरा उतारेगी, जो उनकी लड़ाई को बेहद मुश्किल बना दे। जिस दिन से दिग्विजय के नाम का ऐलान हुआ, उसी दिन से खुद वो और उनकी पार्टी के लोग भी मानते हैं, कि भोपाल सीट उनके लिए आसान नहीं रहने वाला है। साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर का नाम सामने आने के बाद यह पूरी तरह निश्चित हो चुका है कि भोपाल की चुनावी लड़ाई बहुत ही रोचक होने वाली है। एक तरफ दिग्विजय सिंह हैं, जिन्हें भाजपा और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (RSS) के लोग 'भगवा आतंकवाद' जैसे शब्द गढ़ने का जिम्मेदार मानते हैं। दूसरी तरफ वह तेज-तर्रार साध्वी प्रज्ञा ठाकुर हैं, जिनपर लगे आरोपों की वजह से ही ऐसा विवाद शुरू होने का मौका मिला। साध्वी तो एक जरिया हैं, दरअसल संघ की विचारधारा और दिग्गी राजा की विचारधारा में ही छत्तीस का आंकड़ा रहा है। बहरहाल, प्रज्ञा सिंह ठाकुर 2008 के मालेगांव ब्लास्ट की आरोपी हैं। लेकिन, दो साल पहले नेशनल इंवेस्टिगेशन एजेंसी (NIA) से क्लीन चिट मिलने के बाद से वो जमानत पर हैं।
बीजेपी के गढ़ में हो रही है टक्कर
भोपाल वैसे ही बीजेपी का गढ़ माना जाता है, उसमें साध्वी प्रज्ञा को उतारकर बीजेपी ने ध्रुवीकरण का ऐसा कार्ड चला है, जिसे संभालना कांग्रेस के लिए आसान नहीं रहने वाला। यहां के दोनों प्रत्याशियों में समानता ये है कि दोनों मध्य प्रदेश के हैं और दोनों राजपूत भी हैं। वैसे भोपाल के राजनीतिक बैकग्राउंड को देखते हुए प्रज्ञा की उम्मीदवारी का स्वागत करके दिग्विजय ने माहौल को हल्का बनाने की कोशिश जरूर की है। वैसे भी जब से वे मैदान में आए हैं, उन्होंने संघ के खिलाफ कोई सख्त टिप्पणी करने से परहेज किया है, जहां तक उनकी कोशिश रही है, वो कोई नया विवाद पैदा करने से बचते दिखाई पड़ रहे हैं। पिछले महीने उन्होंने खुद को एक निष्ठावान हिंदू और आरएसएस (RSS) को एक हिंदू संगठन बताया था। उन्होंने पूछा था कि उनके खिलाफ आरएसएस को दुर्भावना क्यों है।
लगातार 8 बार से जीत रही है बीजेपी
भोपाल लोकसभा क्षेत्र में भाजपा 1989 के बाद से कोई चुनाव नहीं हारी है। पार्टी लगातार 8 बार से वहां भारी मतों के अंतर से जीतती रही है। पार्टी के दिग्गज कैलाश जोशी, उमा भारती और सुशील चंद्र वर्मा जैसे लोग यहां का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। 2014 में भाजपा प्रत्याशी आलोक संजर ने भोपाल लोकसभा क्षेत्र से कांग्रेस के पीसी शर्मा को 3,70,696 वोटों से हराया था। यहां बीजेपी को कुल डाले गए वोट में 63.19% मत मिले थे, जबकि कांग्रेस का उम्मीदवार महज 30.39% वोट ही हासिल कर पाया था। 1989 से पहले 1967 में भी इस सीट पर भारतीय जनसंघ के उम्मीदवार जीत चुके हैं।
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