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कीर्ति आजाद को धनबाद से उतारकर कांग्रेस ने खेला बड़ा दांव

By यशोनाथ झा
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रांची। झारखंड का बिहार कहे जानेवाले कोयलांचल की राजधानी धनबाद में इस बार लोकसभा चुनाव की जंग बेहद दिलचस्प मोड़ पर पहुंच गयी है। धनबाद से दो बार के भाजपा सांसद पशुपति नाथ सिंह को हैट्रिक लगाने से रोकने के लिए कांग्रेस ने एक ऐसे प्रत्याशी को मैदान में उतारा है, जिसका कोयलांचल से दूर-दूर तक संबंध नहीं है। इतना ही नहीं, यह प्रत्याशी पिछले दो चुनावों में भाजपा के टिकट पर दरभंगा (बिहार) से सांसद रहा और हाल ही में कांग्रेस में शामिल हुआ। इस प्रत्याशी का नाम है कीर्ति आजाद।

आजाद का धनबाद में विरोध भी

आजाद का धनबाद में विरोध भी

कभी भारतीय क्रिकेट टीम के सदस्य रहे कीर्ति आजाद बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री भागवत झा आजाद के पुत्र हैं। कांग्रेस के श्रमिक संगठन के कद्दावर नेता रह चुके भागवत झा आजाद को उनकी विद्वता और सख्त प्रशासनिक रवैये के लिए जाना जाता है। उनके पुत्र कीर्ति आजाद ने अपना राजनीतिक कैरियर भाजपा से शुरू किया और अपनी ससुराल दरभंगा से दो बार सांसद भी चुने गये।

कीर्ति आजाद को प्रत्याशी घोषित किये जाने के साथ ही धनबाद के कांग्रेसियों ने इसका विरोध शुरू कर दिया है। दिग्गज श्रमिक नेता राजेंद्र प्रसाद सिंह, चंद्रशेखर दुबे उर्फ ददई दुबे, मन्नान मल्लिक और अजय दुबे के मुकाबले कीर्ति आजाद ‘झारखंड के बिहार' कहे जानेवाले इस कोयला नगरी में कैसे कांग्रेसियों को अपने साथ ले पाते हैं, यह देखना वाकई दिलचस्प होगा। धनबाद लोकसभा क्षेत्र दो जिलों, धनबाद और बोकारो में फैला हुआ है। इसमें छह विधानसभा सीटें आती हैं। धनबाद संसदीय क्षेत्र भले ही आर्थिक रूप से पिछड़ा हो, लेकिन यह अपने औद्योगिक क्षेत्रों के लिए जाना जाता है। सेल का बोकारो स्टील प्लांट और कोल इंडिया की सबसे बड़ी अनुषंगी भारत कोकिंग कोल लिमिटेड के अलावा कई बड़े उद्योग स्थापित हैं।

दिलचस्प है धनबाद सीट का इतिहास

दिलचस्प है धनबाद सीट का इतिहास

धनबाद लोकसभा सीट पर हमेशा सीधा मुकाबला होता रहा है। 1951 और 1957 का चुनाव यहां से कांग्रेस के पीसी बोस ने जीता। 1962 में इस सीट से कांग्रेस के पीआर चक्रवर्ती जीतने में कामयाब हुए। 1967 में निर्दलीय प्रत्याशी रानी ललिता राज्यलक्ष्मी जीतीं। 1971 में फिर इस सीट पर कांग्रेस ने वापसी की और उसके टिकट पर राम नारायण शर्मा जीते। 1977 में इस सीट से मासस का कब्जा हो गया और उसके टिकट पर एके राय जीते। 1980 के चुनाव में भी एके राय जीतने में कामयाब हुए। 1984 में कांग्रेस ने फिर वापसी की और उसके टिकट पर शंकर दयाल सिंह जीते।1989 का चुनाव फिर एके राय जीते। 1991 में इस सीट पर पर पहली बार भाजपा का खाता खुला और उसके टिकट पर रीता वर्मा जीतीं। वह लगातार चार बार यहां से जीतीं। 2004 में इस सीट से कांग्रेस के चंद्रशेखर दुबे जीते, लेकिन 2009 में भाजपा ने फिर वापसी की और उसके टिकट पर पशुपति नाथ सिंह जीते। 2014 में वह अपनी सीट बचाने में कामयाब हुए।

धनबाद लोकसभा सीट एकमात्र ऐसी सीट है, जहां पर शहरी मतदाताओं का दबदबा है। इस सीट पर करीब 62 फीसदी शहरी मतदाता और 38 फीसदी ग्रामीण मतदाता है। इस सीट पर अनुसूचित जाति के मतदाताओं की तादाद 16 फीसदी और अनुसूचित जनजाति की तादाद आठ फीसदी है। इसके अलावा यहां उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल के लोगों की अच्छी तादाद है। जहां तक कांग्रेस के टिकट की दावेदारी का सवाल है, तो धनबाद लोकसभा क्षेत्र से कांग्रेस के टिकट के लिए 18 दावेदार थे। इनमें पूर्व मंत्री चंद्रशेखर दुबे उर्फ ददई दुबे, राजेंद्र सिंह और मन्नान मल्लिक से लेकर मयूर शेखर झा तक के नाम शामिल थे। इन सभी ने अपने-अपने आवदेन भी जमा किये थे। इन नेताओं का इस क्षेत्र में प्रभाव भी है और ये चर्चित भी हैं।

क्लिक कर पढ़ें धनबाद लोकसभा सीट का चुनावी हतिहास

कीर्ति आजाद के जिले भागलपुर से सटा है धनबाद

कीर्ति आजाद के जिले भागलपुर से सटा है धनबाद

कीर्ति आजाद मूल रूप से भागलपुर के रहनेवाले हैं, जो धनबाद से सटा हुआ है। उन्हें प्रत्याशी बना कर कांग्रेस ने बड़ा दांव खेला है। कीर्ति आजाद की मुश्किल राह की प्रमुख वजह अपनों का बगावती तेवर है। यह सच है कि वरिष्ठ कांग्रेसी नेता राजेंद्र सिंह पार्टी लाइन से बाहर जाकर काम नहीं करेंगे, पर ददई दुबे और मन्नान मल्लिक शांत बैठेंगे, इस पर संशय है। ददई दुबे तो पिछले चुनाव में ही टिकट नहीं मिलने पर बगावत कर चुके थे। उन्होंने कांग्रेस से टिकट नहीं मिलने पर टीएमसी के टिकट पर चुनाव लड़ा था। इधर महागठबंधन में भी कीर्ति आजाद का विरोध शुरू हो गया है। दो दिन पहले ही धनबाद राजद के अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ ने खुल कर उनका विरोध किया था और यहां तक कहा था कि भागलपुर दंगा में जिसके पिता का हाथ हो, उसके बेटे को समर्थन नहीं देंगे। सवाल यह भी उठ रहा है कि महागठबंधन का प्रमुख घटक दल झामुमो हमेशा बाहरी-भीतरी की राजनीति को बढ़ावा देता है। क्या कांग्रेस के बिहार से थोपे गये प्रत्याशी को उसके कार्यकर्ता पचा सकेंगे। लोग तो यह भी कह रहे हैं कि चूंकि कांग्रेस आलाकमान को कीर्ति आजाद को उम्मीदवार बनाना था और दरभंगा सीट उसके कोटे में नहीं आयी, इसलिए उसने उन्हें धनबाद पर थोप दिया। टिकट मिलने के बाद हालांकि कीर्ति आजाद ने कहा कि झारखंड और धनबाद उनके लिए नया नहीं है। झारखंड उनकी जन्मभूमि है।

आजाद का मुकाबला जहां दिग्गज पीएन सिंह से होगा, वहीं रघुकुल के छोटे युवराज सिद्धार्थ गौतम और पिछले चुनाव में तीसरे स्थान पर रहे मासस के आनंद महतो की चुनौती का सामना भी उन्हें करना होगा। पीएन सिंह चार दशक से धनबाद में राजनीति कर रहे हैं। वार्ड पार्षद से लेकर विधायक और सांसद रहे हैं। धनबाद का चप्पा-चप्पा इनका नापा हुआ है। झारखंड अलग राज्य बनने के बाद बाबूलाल मरांडी की सरकार में उद्योग मंत्री और अर्जुन मुंडा की सरकार में शिक्षा मंत्री का दायित्व वह निभा चुके हैं। झारखंड भाजपा के अध्यक्ष भी रहे हैं। हालांकि सांसद के रूप में उनके कार्यकाल की भाजपा का एक वर्ग आलोचना कर रहा है, लेकिन पार्टी का वोट बैंक वह सुरक्षित रख सकेंगे, इसकी उम्मीद सभी को है। ऐसे में कीर्ति आजाद के सहारे कांग्रेस धनबाद के मतदाताओं को कितना साध पाती है, यह तो समय के गर्भ में है, लेकिन इतना तय है कि आजाद को प्रत्याशी बना कर कांग्रेस ने बड़ा दांव खेला है।

भाजपा के घोषणा पत्र में सुब्रमण्यम स्वामी ने निकाली दो बड़ी गलतीभाजपा के घोषणा पत्र में सुब्रमण्यम स्वामी ने निकाली दो बड़ी गलती

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English summary
lok sabha elections 2019 Congress fields Kirti Azad from Dhanbad seat Jharkhand
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