विधानसभा चुनाव के बाद कितनी बदली गुजरात की सियासी तस्वीर, जानिए 26 सीटों का लेखा-जोखा
नई दिल्ली- गुजरात में मंगलवार को तीसरे चरण में ही राज्य की सभी लोकसभा सीटों पर एक ही साथ चुनाव कराए जा रहे हैं। यह राज्य 1995 से ही बीजेपी का स्ट्रॉन्गहोल्ड रहा है और 21वीं सदी में नरेंद्र मोदी वहां के सबसे बड़े नेता हैं। 2014 में गुजरात के मतदाताओं ने मोदी को प्रधानमंत्री बनाने के लिए वहां की सभी 26 सीटें बीजेपी को दिया था। इसबार बीजेपी ने मोदी को दोबारा प्रधानमंत्री बनाने के लिए राज्य के लोगों से फिर सभी 26 सीटें मांगी हैं। लेकिन, 2014 और 2019 के बीच से 2017 भी गुजरा है, जो वहां की चुनावी तस्वीर को बदल रहा है। ऐसे में सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या बीजेपी इसबार 'मिशन 26' का लक्ष्य भेद पाएगी या कांग्रेस अपने हाथ में भी कुछ सीटें बटोर पाएगी? बीजेपी के टारगेट का पूरा दारोमदार खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अपनी इमेज पर टिका हुआ है।
शहरी सीटों पर बीजेपी आगे
गुजरात के लिए बीजेपी के एजेंडे में चुनाव प्रचार के दौरान नरेंद्र मोदी, पुलवामा और बालाकोट का हमला छाया रहा है। शहरी लोकसभा सीटों पर ये सारे मुद्दे पूरी तरह से हावी रहे हैं। ग्रामीण इलाकों में भी यह मुद्दे मौजूद हैं, लेकिन वहां कम से कम पुलवामा और बालाकोट निर्णायक मुद्दे तो नहीं ही लग रहे हैं। बीजेपी गांधीनगर, अहमदाबाद, सूरत, वडोदरा और राज्यकोट जैसी शहरी लोकसभा क्षेत्रों में काफी मजबूत स्थिति में है, जहां कांग्रेस उसके मुकाबले में कहीं खड़ी नहीं दिख पा रही है।
यहां मिल रही है बीजेपी को चुनौती
ग्रामीण गुजरात की तस्वीर शहरी इलाकों से थोड़ी अलग है। मोदी यहां भी मुद्दा हैं, लेकिन भाजपा के सामने कांग्रेस भी मुकाबले में खड़ी दिख रही है। खासकर 2017 में उसका प्रदर्शन बीजेपी के लिए ज्यादा चुनौती पेश कर रहा है। कांग्रेस को सौराष्ट्र, उत्तर गुजरात और आदिवासी बेल्ट में अच्छा करने का भरोसा है। पार्टी राज्य में कुल मिलाकर 5 से 7 सीटों पर जीत की उम्मीद लेकर चल रही है। उत्तर गुजरात में वह बनासकांठा, पाटन और साबरकांठा में जोर लगा रही है, तो मेहसाणा में भी वह बीजेपी को कड़ी टक्कर दे रही है। दक्षिण गुजरात के आणंद में भी पार्टी के उम्मीदवार भरत सिंह सोलंकी मजबूत स्थिति में बताए जा रहे हैं। इसी तरह सौराष्ट्र के अमरेली में पार्टी उम्मीदवार की स्थिति अच्छी बताई जा रही है, तो जूनागढ़ में नजदीकी मुकाबला कहा जा रहा है। इसके अलावा जिन इलाकों में किसान पानी और खाद की समस्या झेल रहे हैं, वहां भी बीजेपी को मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है। गुजरात में आदिवासी वोट में हमेशा से बिखराव देखा गया है और इसबार भी इसकी संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। छोटा उदयपुर, पंच महाल और डांग इलाके के लोगों के सामने खेती के लिए पानी की कमी का मुद्दा बड़ा है।
जातीय समीकरणों का खेल
भाजपा और कांग्रेस दोनों ने इसबार अपने कुछ विधायकों को भी टिकट दिया है। हालांकि, कांग्रेस के नेता मानते हैं कि अगर टिकट बांटने में थोड़ी सी सावधानी बरती गई होती, तो स्थिति अभी से ज्यादा अच्छी हो सकती थी। लेकिन, आंतरिक गुटबाजी के चलते यह मुमकिन नहीं हो पाया। भरूच, खेड़ा और राजकोट ऐसी ही सीटें बताई जा रही हैं। कई सीटों पर कांग्रेस और बीजेपी ने एक ही जाति के उम्मीदवारों को टिकट दे दिए हैं, जिससे उन जातियों का वोट बंटना भी तय लग रहा है। खासकर इस चुनाव में जब यहां ध्रुवीकरण जैसा कोई मामला नहीं दिख रहा है। विधानसभा चुनावों में भाजपा को कुछ इलाकों में पाटीदार वोट मिलने में संकटों का सामना करना पड़ा था, लेकिन इसबार उस स्थिति में थोड़ा बदलाव जरूर महसूस किया जा रहा है। इसके अलावा अल्पेश ठाकोर का कांग्रेस का हाथ झटकना भी बीजेपी के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है।
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दिग्गजों पर दांव
मंगलवार को हो रहे चुनाव में गुजरात के जिन दिग्गजों के सियासी भाग्य का फैसला होना है, उसमें नॉर्थ गुजरात की गांधीनगर से बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह भी शामिल हैं। पार्टी ने देश की इस हाईप्रोफाइल सीट पर इसबार लालकृष्ण आडवाणी के बदले शाह को उतारा है। वैसे गांधीनगर की सीट शाह के लिए पूरी तरह से सेफ सीट मानी जा रही है और चर्चा ये हो रही है कि उनकी जीत का मार्जिन क्या रहने वाला है। इसके अलावा अहमदाबाद ईस्ट और अहमदाबाद वेस्ट भी बीजेपी के लिए सुरक्षित मानी जा रही है। अहमदाबाद ईस्ट से कांग्रेस की गीता पटेल मैदान में हैं। सौराष्ट्र की अमरेली सीट पर कांग्रेस ने विधानसभा में नेता विपक्ष परेश धनानी पर भरोसा किया है। 2017 में इस इलाके में बीजेपी को बहुत कठिन चुनौती मिली थी। यहां इनका मुकाबला बीजेपी के मौजूदा सांसद नारन कछाड़िया से हो रहा है और दोनों ही पाटीदार समुदाय से आते हैं। हालांकि कछाड़िया को एंटी इनकंबेंसी का भी सामना करना पड़ रहा है।
पिछले दो चुनावों में क्या हुआ?
पिछले चुनावों की बात करें तो बीजेपी ने 2014 में यहां की सभी 26 सीटे जीती थीं और उसे 60.1% वोट शेयर मिले थे। जबकि, कांग्रेस केवल 33.5% वोट शेयर ही हासिल कर पाई थी। लेकिन, 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी का वोट शेयर 10 फीसदी से भी ज्यादा कम होकर केवल 49.1% रह गया और उसे विधानसभा की कुल 182 सीटों में सिर्फ 99 सीटें ही मिल पाईं। वहीं कांग्रेस को 77 सीटें मिलीं और उसने अपना वोट शेयर बढ़ाकर 41.4% कर लिया था।
बीजेपी कितनी मजबूत?
गुजरात में बीजेपी कितनी मजबूत है इसका अंदाजा आंकड़ों से लगाया जा सकता है। मसलन 1998 में बीजेपी को वहां 26 में से 19 सीटें मिली थीं, तो 1999 में उसने 20 सीटें जीत ली थी। लेकिन, 2004 में भाजपा महज 14 सीटें ही जीत पाई और कांग्रेस 12 सीटें हासिल करने में कामयाब रही। 2009 में भी उसे ज्यादा सफलता नहीं मिला और उसने अपने अंक में सिर्फ 1 सीट का इजाफा किया और 15 सीट पर जीत दर्ज कर सकी। लेकिन, उसी गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए जब 2014 में मोदी प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार बने, तो पूरे गुजरात ने अपनी सीटें उनकी झोली में डाल दिए। इसबार भी गुजरात के लिए यह मोदी का ही चुनाव हो रहा है, जिसमें कांग्रेस क्या कर पाती है, इसपर सबकी नजरें टिकी हुई हैं।
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