पटना साहिब: 1991 में जब ना यशवंत सिन्हा जीते और ना आईके गुजराल
नई दिल्ली। शत्रुघ्न सिन्हा ने पटना साहिब लोकसभा सीट को सुर्खियों में ला दिया है। आलोचना हो या प्रशंसा, इसकी चर्चा हर जगह हो रही है। 29 साल पहले भी यह लोकसभा क्षेत्र पूरे देश में चर्चित हुआ था। पहले इसकी चर्चा दो दिग्गज पहलवानों के अखाड़े में उतरने से हुई। इसके बाद जो चुनाव हुआ उसमें बूथ कैपचरिंग ने सारे रिकॉर्ड तोड़ दिये। मतदान में ऐसी धांधली हुई थी कि चुनाव को रद्द करना पड़ा था। उस समय बिहार में लालू यादव का सिक्का चलता था।
दो दिग्गज नेता उतरे थे चुनाव में
1991 में पटना लोकसभा सीट पर इंद्र कुमार गुजराल जनता दल के टिकट पर चुनाव लड़ रहे थे। वे पंजाब के रहने वाले थे और कभी कांग्रेस के दिग्गज नेता गिने जाते थे। वे इंदिरा गांधी की सरकार में मंत्री भी रहे थे। बाद में वे जनता दल में आ गये। गुजराल का मुकाबला उस समय के मौजूदा वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा से था। कांग्रेस ने चंद्रशेखर की सरकार गिरा दी थी इसलिए 1991 में चुनाव की नौबत आयी थी। पूर्व आइएएस अधिकारी यशवंत सिन्हा तब चंद्रशेखर सरकार में वित्त मंत्री थे। इतने बड़े दो नेताओं के मैदान में कूदने से देश और विदेश की मीडिया का ध्यान पटना पर केन्द्रित हो गया। इंद्र कुमार गुजराल और यशवंत सिन्हा की चुनावी लड़ाई में सब दिलचस्पी लेने लगे।
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लालू का अजीबोगरीब अंदाज
यशवंत सिन्हा का पटना से पुराना सरोकार था। वे पटना कॉलेज में पढ़े थे। पढ़ाई के बाद पटना कॉलेज में ही लेक्चरर बने थे। जब वे पटना कॉलेज में पढ़ाते थे उसी समय आइएएस के लिए चुने गये थे। वे देश के मौजूदा वित्त मंत्री थे और चंद्रशेखर की समाजवादी जनता पार्टी के उम्मीदवार थे। यशवंत सिन्हा अपने को स्थानीय और इंद्र कुमार गुजराल को बाहरी बता कर चुनाव प्रचार कर रहे थे। गुजराल के चुनाव प्रचार की कमान लालू यादव के हाथ में थी। यशवंत सिन्हा की काट में लालू यादव ने नायाब फार्मूला इजाद किया। चुनावी सभाओं में लालू यादव इंद्र कुमार गुजराल का परिचय कुछ इस तरह देने लगे- वे भोजपुरी में कहते, गुजराल जी गुज्जर हुईं। पंजाब में गुज्जर लोग यादव जइसन ही जात हवें। ई बाहरी ना हवें, अपने आदमी हवें(यादव)। यादव लोगन के तरह इहों के गांव , किसान गरीब के भलाई करब। ईहां के अधिका से अधिका वोट देके जितावे के बा। गुजराल के इस नये परिचय से विरोधी हैरान थे। कुछ लोग हंस भी रहे थे। लेकिन लालू यादव को इससे कोई मतलब नहीं था कि लोग क्या कह रहे हैं। वे तो अपने वोटरों को समझा चुके थे कि गुजराल जी भी यादव ही हैं।
चुनाव में जम कर हुई थी धांधली
लालू यादव मुख्यमंत्री थे। वे ही गुजराल को चुनाव लड़ने के लिए पटना लाये थे। उस समय लालू यादव का रुतबा बुलंद था। गुजराल जी की जीत उनके लिए प्रतिष्ठा का सवाल बन गयी थी। लेकिन दूसरी तरफ यशवंत सिन्हा भी जोरदार मुकाबला दे रहे थे। पटना लोकसभा क्षेत्र में कायस्थ मतदाताओं की बहुत बड़ी संख्या थी। लालू यादव ने गुजराल को यादव बताकर अपने समर्थकों में जोश भर दिया था। लेकिन वे यशवंत सिन्हा की गंभीर चुनौती से थोड़े परेशान थे। चुनाव के दिन नजारा बदल गया। दबंगों और बाहुबलियों की जमात बूथ लूटती रही, चुनाव में लगे कर्मचारी और पुलिस वाले तमाशा देखते रहे। बोगस वोटिंग भी खूब हुई। प्रशासन की ढील के कारण पटना का चुनाव मजाक बन कर रहा गया। चुनाव आयोग में इस धांधली की शिकायत पहुंची। जांच में गड़बड़ी पाने के बाद चुनाव आयोग ने पटना का इलेक्शन रद्द कर दिया। चुनाव रद्द करने के फैसले को चुनौती दी गयी। आखिरकार चुनाव आयोग ने 1993 में फिर यहां चुनाव कराया। दो साल बाद जब पटना में फिर चुनाव हुआ तो उसमें न गुजराल थे न यशवंत सिन्हा। लालू यादव ने रामकृपाल यादव को जनता दल का उम्मीदवार बनाया। उस समय रामकृपाल यादव एमएलसी थे। इसी चुनाव को जीत कर रामकृपाल यादव पहली बार सांसद बने थे। वे अब वे नरेन्द्र मोदी के मंत्री है।
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