बिहार में दूसरे चरण के पांच मैचों की पिच रिपोर्ट, एनडीए की पारी जदयू की बैटिंग पर निर्भर
बिहार में दूसरे चरण की पिच रिपोर्ट, एनडीए की पारी जदयू की बैटिंग पर निर्भर
नई दिल्ली। बिहार में पारा 41 डिग्री सेल्सियस को पार कर गया है। अब यहां का सियासी मौसम भी गर्म हो चला है। इंडियन प़लिटिकल लीग अब दूसरे चरण में दाखिल हो गयी है। 18 अप्रैल को जिन पांच मैदानों पर सियासी मैच होने हैं वहां के पिच के मिजाज को लेकर पोलिटिकल पंड़ित असमंजस में हैं। मैदान के हालात और खिलाड़ियों के टीम बदलने से कोच भी कुछ यकीन के साथ नहीं कह पा रहे हैं। यानी मैच के दिन जो टीम मैदान पर परफॉर्म करेगी, जीत उसी को मिलेगी। बिहार में लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण के तहत पांच सीटों पर 18 अप्रैल को मतदान होगा। ये सीटें हैं किशनगंज, पूर्णिया, कटिहार, भागलपुर और बांका। इस फेज में एनडीए की लड़ाई की कमान जदयू के हाथ में है। इन पांच सीटों में किसी पर भाजपा का उम्मीदवार नहीं है। दूसरी तरफ भागलपुर और बांका में राजद को अपनी सीट बचाने की चुनौती है। कांग्रेस पर किशनगंज और कटिहार में जीत को दोहराने की बड़ी जिम्मेवारी है। कटिहार सीट पर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के तारिक अनवर जीते थे जो अब कांग्रेस के टिकट पर यहां से चुनाव लड़ रहे हैं।
किशनगंज
2014 में इस सीट पर कांग्रेस के मौलाना असरारुल हक जीते थे। वे अब इस दुनिया में नहीं हैं। कांग्रेस ने इस सीट पर विधायक डॉ. जावेद को खड़ा किया है। जावेद, मौलाना की तरह मशहूर और तजुर्बेकार नहीं हैं। उन पर इस सीट को बचाये रखने की जवाबदेही है। 2014 में जदयू ने अकेले यहां लड़ाई लड़ी थी। उसकी करारी हार हुई थी। इस बार जदयू, भाजपा और लोजपा के साथ मिल कर मैदान में है। किशनगंज लोकसभा क्षेत्र में जदयू के दो विधायक हैं। जदयू मुसलमानों में स्वीकार्य है। इस बार जदयू की चुनौती को गंभीर माना जा रहा है। लेकिन 2019 में किशनगंज की चुनावी तस्वीर में एक बड़ा बदलाव आया है। इस बार असदुद्दीन औवेसी की पार्टी एआइएमआइएम ने मुस्लिम वोटों के लिए जबर्दस्त गोलबंदी की है। औवेसी को धार्मिक कार्ड खेलने से कोई गुरेज नहीं है। वे किशनगंज के मुसलमानों को स्वायत्त परिषद का ख्वाब दिखा रहे हैं। यानी किशनगंज में स्वायत्त परिषद बना कर मुसलमानों का भला करेंगे। हालांकि ये दूर की कोड़ी है। इसके लिए कई कानूनी प्रकिया से गुजरना होगा। और औवैसी कोई बहुत बड़ी राजनीतिक ताकत तो हैं नहीं कि वे ये सब हासिल कर लेंगे। लेकिन वे मुसलमानों में स्वशासन की उम्मीदों को हवा दे रहे हैं। यहां तीन तरफ मुकबला होता दिख रहा है। अगर मुस्लिम वोट सूरजापुरी और पछिमा में विभाजित होता है तो औवैसी का ख्वाब पूरा नहीं होगा। जदयू को मुस्लिम वोटों पर भरोसा है। अगर भाजपा के सहयोग से उसने करीब 30 फीसदी हिन्दू वोटों को अपने पाले में कर लिया तो उसकी स्थिति सबसे मजबूत हो जाएगी। इस बिना पर जदयू किशनगंज में खाता खोलने के लिए बेकरार है।
पूर्णिया
मैदान वही है। खिलाड़ी भी वहीं हैं। लेकिन टीम और जर्सी बदल गयी है। पिछले चुनाव में जदयू के संतोष कुशवाहा इस सीट पर जीते थे। इस बार वे एनडीए की टीम से खेल रहे हैं। उनकी जर्सी में भाजपा लोजपा और जदयू के रंग हैं। 2014 में दूसरे स्थान पर रहने वाले उदय सिंह भाजपा में थे। इस बार वे कांग्रेस के तीनरंगा जर्सी में हैं। यहां मुख्य मुकाबला इन्ही दोनों के बीच है। तेजस्वी का आरोप है कि पप्पू यादव पूर्णिया और किशनगंज में कांग्रेस के खिलाफ काम कर रहे हैं। पप्पू की पूर्णिया में अपनी अलग हैसियत है। अगर उन्होंने सचमुच महागठबंधन को नुकसान पहुंचाया तो जदयू के संतोष कुशवाहा की राह आसान हो जाएगी।
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कटिहार
कटिहार में मुख्य मुकाबला कांग्रेस के तारिक अनवर और जदयू के दुलालचंद गोस्वामी में है। तारिक अनवर टीम बदल कर मैच खेल रहे हैं। पिछले चुनाव में राकांपा से जीते थे इस बार राहुल गांधी के साथ हैं। तारिक अनवर के दोबारा जीत के लिए कांग्रेस पूरा जोर लगाये हुअ है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी खुद यहां सभा कर चुके हैं। तेजस्वी भी तारिक के पक्ष में चुनावी सभाएं कर चुके हैं। चूंकि जदयू ने यह सीट भाजपा से ली है। इस लिए उसने भी ताकत झोंक रखी है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने यहां छह से अधिक सभाएं की हैं। कटिहार बाढ़ और कटाव प्रभावित इलाका है। विस्थापन यहां की प्रमुख समस्या है। नेता जीत तो जाते हैं लेकिन समस्या जस की तस रहती है। इस बार वोटर खामोश हैं। चुनाव प्रचार के दौरान तारिक अनवर को कई सवालों का सामना करना पड़ा है। जदयू ने नीतीश के विकास नाम पर वोट मांगा है। अब देखना है कि जनता किसकी सुनती है और किसको चुनती है।
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भागलपुर
भागलपुर में राजद के उम्मीदवार और मौजूदा सांसद बुलो मंडल को इस बार गंभीर चुनौती झेलनी पड़ रही है। पिछली बार वे भाजपा में फूट और आंतरिक कलह की वजह से जीत गये थे। लेकिन इस बार जदयू के अजय मंडल ने तस्वीर बदल दी है। अजय भी बुलो मंडल के स्वजातीय हैं। दबंग छवि के हैं। विधायक हैं। पहले सीट छीने जाने से भाजपा में नाराजगी थी लेकिन बड़े नेताओं के हस्तक्षेप से मामला सुलझ गया है। अब भाजपा ने भी जदयू के पक्ष में खूब जोर लगाया है। दोनों की सम्मिलित ताकत महागठबंधन के लिए चुनौती बन गयी है। इस बार बुलो मंडल की राह मुश्किल लग रही है।
बांका
बांका में त्रिकोणीय संघर्ष की स्थिति है। यह राजद की सीट है। 2014 में राजद के जयप्रकाश नारायण यादव यहां जीते थे। जदयू के गिरधारी यादव उनको चुनौती दे रहे हैं। लेकिन भाजपा की बागी उम्मीदवार पुतुल कुमारी ने मुकाबले को त्रिकोणीय बना दिया है। भाजपा ने पुतुल कुमारी पर कार्रवाई की है लेकिन जदयू को जो नुकसान होना है, वह होगा। पुतुल पूर्व केन्द्रीय मंत्री और बांका के दिग्गज नेता रहे दिग्गविजय सिंह की पत्नी हैं। उनके निधन के बाद पुतुल कुमारी को बांका के लोग बहुत सम्मान देते हैं। उनके चुनाव लड़ने से एनडीए का वोट कटेगा। दूसरे चरण में बांका ही वह सीट है जहां एनडीए की स्थिति सबसे कमजोर मानी जा रही है। नीतीश कुमार यहां ताबड़तोड़ साभाएं की हैं। लेकिन पुतुल कुमारी जदयू की राह में रोड़ा बनी हुईं।