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अगर लालू ने पासवान की बात मान ली होती तो नीतीश नहीं बनते सीएम

By अशोक कुमार शर्मा
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नई दिल्ली। आज लालू यादव, सीएम नीतीश कुमार को पानी पी-पी कर कोस रहे हैं। लालू अपनी बर्बादी के लिए नीतीश को ही जिम्मेवार मानते हैं। लेकिन अगर उन्होंने राम विलास पासवान की बात मान ली होती तो शायद नीतीश कुमार मुख्यमंत्री न बन पाते। जब नीतीश कुमार सीएम ही नहीं बन पाते तो आज लालू यादव को ये दिन नहीं देखने पड़ते। लालू यादव बदलते वक्त को नहीं पहचान पाये थे। वे अपनी ताकत की रौ में मगन रहे। लेकिन राम विलास पासवान ने लालू की बाजी पलट दी। इस शह-मात के खेल की जमीन 2004 में तैयार हुई थी।

लालू के विरोध से पासवान नहीं बन पाये थे रेलमंत्री

लालू के विरोध से पासवान नहीं बन पाये थे रेलमंत्री

2004 में जब यूपीए की सरकार बनी तो पहले रामविलास पासवान को ही रेल मंत्री बनाने की बात चली थी। उनको पहले भी रेल मंत्रालय की जिम्मेवारी संभालने का अनुभव था। लेकिन लालू प्रसाद उस समय मजबूत स्थिति में थे। उन्होंने मनमोहन सिंह के सामने खुद रेल मंत्री बनने की शर्त रख दी। लालू के विरोध के कारण पासवान रेल मंत्री नहीं बन पाये। लालू प्रसाद को यह जिम्मेवारी मिली। कहा जाता है कि अगर उस समय लालू ने पासवान को रेल मंत्री बनने दिया होता तो आज वे रेलवे टेंडर घोटला के मामले में फंसे नहीं होते। लालू के इस विरोध को पासवान ने दिल पर ले लिया। रामविलास पासवान ने इसकी खुन्नस फरवरी 2005 के विधानसभा चुनाव में निकाली। पासवान के अलग चुनाव लड़ने से लालू का किला ढह गया।

 फरवरी 2005 का विधानसभा चुनाव

फरवरी 2005 का विधानसभा चुनाव

फरवरी में जब बिहार बिहार विधानसभा का समय आया तो रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी ने अकेले चुनाव लड़ने का एलान कर दिया। उस समय राबड़ी देवी की सरकार कांग्रेस के सहयोग से चल रही थी। लालू राबड़ी का 15 साल से बिहार में शासन चल रहा था। लालू यादव ने पासवान की चुनौती को हल्के में ले लिया। इसकी कीमत भी उन्हें चुकानी पड़ी। लालू की पार्टी 75 सीटों पर सिमट गयी। जदयू को 55 और भाजपा को 37 सीटें मिली। किसी दल या गठबंधन को पूर्ण बहुमत नहीं मिला। लेकिन इस चुनाव में रामविलास पासवान ने अपने दल को सबसे बड़ी जीत दिलायी। लोजपा के 29 विधायक चुने गये थे जो कि पार्टी के लिए रिक़ॉर्ड था। त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति में पासवान किंग मेकर की भूमिका में आ गये। पासवान जिसको समर्थन देते सरकार उसकी ही बनती। रामविलास पासवान ने नीतीश और लालू को समर्थन के लिए एक शर्त रख दी।

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लालू, नीतीश को मुसलमान सीएम मंजूर नहीं

लालू, नीतीश को मुसलमान सीएम मंजूर नहीं

रामविलास पासवान ने शर्त रख दी कि जो दल या गठबंधन मुस्लिम नेता को मुख्यमंत्री बनाएंगे उसी को समर्थन देंगे। लालू इसके लिए तैयार नहीं थे। वे अपनी पत्नी राबड़ी देवी को सीएम बनाये रखना चाहते थे। दूसरी तरफ नीतीश खुद सीएम बनना चाहते थे। लालू और नीतीश दोनों मुस्लिम सीएम के पक्ष में नहीं थे। बहुत दिनों तक तोल मोल चलते रहा लेकिन गतिरोध नहीं टूटा। पासवान भी अपनी जिद पर अड़े थे। सरकार के गठन पर बात नहीं बनी। लालू यादव उस समय रेल मंत्री थे। केन्द्र में उनके समर्थन से सरकार चल रही थी। लालू यादव पर ये गंभीर आरोप है कि उन्होंने राजनीति फायदे के लिए विधानसभा भंग करा दी। इससे ये साबित हो गया कि लालू और नीतीश को सिर्फ मुसलमानों का वोट ही चाहिए, उन्हें मुस्लिम सीएम मंजूर नहीं। कितनी हैरानी की बात है कि आज ये दोनों नेता खुद को मुसलमानों का सच्चा हमदर्द बताते हैं, और उन्हें अल्पसंख्यक वोट मिलते भी हैं।

पासवान की शर्त मान ली जाती तो नीतीश नहीं बनते सीएम

पासवान की शर्त मान ली जाती तो नीतीश नहीं बनते सीएम

2000 के विधानसभा चुनाव में लालू यादव को पूर्ण बहुमत नहीं मिला था। उन्होंने कांग्रेस के सहयोग से पांच साल तक सरकार चलायी। नीतीश कुमार केवल सात दिन के सीएम बन कर रह गये थे। फऱवरी 2005 में नीतीश राजनीति के दोराहे पर खड़े थे। 2004 में वाजपेयी सरकार की हार हो चुकी थे। नीतीश केन्द्रीय मंत्री के पद से हट चुके थे। अब तक नीतीश राष्ट्रीय राजनीति में ही सक्रिय थे। उनके लिए दिल्ली की राजनीति में जगह नहीं थी इस लिए वे बिहार में पांव जमाने की कोशिश कर रहे थे। अगर फरवरी 2005 के चुनाव के बाद पासवान और लालू के मेल से सरकार बन जाती तो अक्टूबर 2005 में फिर चुनाव कराने की नौबत नहीं आती। अगर ये सरकार बन जाती तो नीतीश के लिए न दिल्ली में और नही पटना में बहुत संभावनाएं बचती। इन पांच सालों में नीतीश की राजनीति किस मोड़ पर रहती, ये अनिश्चित था। लेकिन लालू ने पासवान की बात को ठुकरा कर सत्ता का सिंहासन नीतीश के नाम कर दिया। मध्यावधि चुनाव में नीतीश ने जनता में लालू की सत्ता लोलुपता को खूब प्रचारित किया। जंगलराज को मुद्दा बनाया। नवम्बर 2005 में नीतीश को सत्ता मिली और लालू बेदखल हो गये। फिर तो नीतीश बिहार में अंगद के पांव की तरह जम गये। आज लालू यादव को अपने इस फैसले पर बेहद अफसोस होता होगा।

बिहार की सभी सीटों से जुड़ी लोकसभा चुनाव 2019 की विस्तृत कवरेज

English summary
lok Sabha Elections 2019 bihar lalu yadav nitish kumar ramvilas paswan
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