बिहार: फर्स्ट फेज की चार सीटों के लिए सज गया मैदान, एनडीए पर सीटों को बचाने की चुनौती
बिहार: फर्स्ट फेज में एनडीए पर सीटों को बचाने की चुनौती
नई दिल्ली। बिहार में पहले चरण के तहत 11 अप्रैल को गया, औरंगाबाद, नवादा और जमुई सीटों पर लोकसभा चुनाव होना है। नामांकन की तारीख खत्म होने के बाद इन सभी सीटों पर उम्मीदवारों की तस्वीर साफ हो चुकी है। ये चारों सीटों एनडीए की हैं। पिछले चुनाव में एनडीए के प्रत्याशी यहां से जीते थे। इस बार इन सीटों पर एनडीए का मुकाबला महागठबंधन से है।
औरंगाबाद सीट
इस सीट पर भाजपा ने अपने सीटिंग एमपी सुशील कुमार सिंह को मैदान में उतारा है। उनका मुकाबला हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा यानी हम के प्रत्याशी उपेन्द्र प्रसाद से है। उपेन्द्र प्रसाद हाल ही में जदयू से हम में आये हैं। हम के प्रमुख जीतम राम मांझी ने जोड़तोड़ से कांग्रेस की ये परम्परागत सीट अपने खाते में हासिल की है। ये राजपूत बहुल इलाका है। अब तक इस सीट पर जीतने वाला तो राजपूत होता ही है हारने वाला भी इसी जाति का होता रहा है। ऐसा पहली बार होगा कि पूर्व मुख्यमंत्री सत्येन्द्र नारायण सिंह के परिवार का कोई व्यक्ति यहां से चुनाव नहीं लड़ेगा। 2014 में सुशील सिंह ने सत्येन्द्र नारायण सिंह के पुत्र निखिल कुमार को हराया था। महागठबंधन में कांग्रेस की बजाय हम को ये सीट मिली है। हम के प्रत्याशी उपेन्द्र प्रसाद पिछड़े वर्ग से आते हैं। इस चुनाव क्षेत्र में राजपूत समुदाय के अलावा यादव और कोइरी जाति भी प्रभावशाली है। सुशील कुमार सिंह के सामने चुनौती है कि वे अपनी सीट को बचाएं। जब कि हम यहां जातीय समीकरण साध कर नया इतिहास बनाने की कोशिश में है। यहां बसपा से राम नरेश यादव भी चुनाव मैदान में हैं। कुल 16 प्रत्याशी यहां से चुनाव लड़ रहे हैं।
गया से पूर्व सीएम मांझी देंगे चुनौती
गया लोकसभा सीट पर एनडीए की तरफ से जदयू के विजय कुमार मांझी चुनाव लड़ रहे हैं। हम के अध्यक्ष और पूर्व सीएम जीतन राम मांझी यहां महागठबंधन के उम्मीदवार के रूप में उन्हें चुनौती देंगे। जदयू ने भाजपा की यह जीती हुई सीट अपने हिस्से में ली है। भाजपा के सांसद हरि मांझी को बेकिकट होना पड़ा है। इस चुनाव से ही जीतन राम मांझी का राजनीति भविष्य तय होना वाला है। बिहार में दलितों का सबसे बड़ा नेता बनने के लिए उनकी रामविलास पासवान से होड़ चल रही है। वैसे मांझी खुद को दलितों का बड़ा नेता मानते हैं। लेकिन 2015 के विधानसभा चुनाव ने उनके इस दावे की हवा निकाल दी थी। एनडीए के घटक दल के रूप में मांझी की पार्टी ने कुल 23 स्थानों पर चुनाव लड़ा था। लेकिन जीतन राम मांझी के अलावा सभी प्रत्याशी चुनाव हार गये थे। वो तो गनीमत थी कि जीतन राम मांझी ने दो सीटों पर चुनाव लड़ा था, वर्ना उनका विधायक बनना भी मुश्किल हो जाता। दो में एक सीट पर वे हार गये थे। गया सीट पर कुल 14 उम्मीदवार मैदान में हैं।
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चिराग पासवान की जमुई सीट
जमुई लोकसभा सीट पर मुख्य मुकाबला लोजपा के चिराग पासवान और रालोसपा के भूदेव चौधरी के बीच है। 2014 में चिराग पासवान ने राजद के सुधांशु शेखर भास्कर को हराया था। इस बार महागठबंधन में यह सीट रालोसपा के खाते में गयी है। लालू प्रसाद ने रालोसपा प्रमुख उपेन्द्र पासवान पर कुछ अधिक भरोसा किया है। उपेन्द्र कुशवाहा पर दवाब है कि वे अपनी राजनीतिक हैसियत को साबित करें। 2014 में उन्हें एनडीए ने तीन सीटें दी थीं और तीनों पर ही रालोसपा जीत हुई थी। रालोसपा के उम्मीदवार भूदेव चौधरी पहले नीतीश कुमार की पार्टी जदयू में थे। 2009 में वे जदयू के टिकट पर यहां से सांसद भी चुने गये थे। अब देखना है कि रालोसपा के टिकट पर वे क्या प्रदर्शन करते हैं। जमुई बिहार का सर्वाधिक नक्सल प्रभावित इलाका है।
नवादा सीट इस बार लोजपा के पास
माना जा रहा है कि केन्द्रीय मंत्री गिरिराज सिंह के बेगूसराय जाने से नवादा की लड़ाई ओपन गेम में बदल गयी है। यहां मुख्य मुकबला लोजपा के चंदन कुमार और राजद की विभा देवी के बीच है। चंदन कुमार लोजपा के बाहुबली नेता सूरजभान सिंह के छोटे भाई हैं। 2014 में सूरजभान की पत्नी वीणा देवी मुंगेर से सांसद चुनी गयी थीं। लोजपा को मुंगेर के बदले यह सीट मिली है। चंदन कुमार पहली बार चुनाव लड़ रहे हैं। दूसरी तरफ राजद ने जिस विभा देवी को मैदान में उतारा है वे पूर्व विधायक राजवल्लभ यादव की पत्नी हैं। राजवल्लभ नाबालिक रेप केस में सजायाफ्ता हैं। इस सजा के कारण उनकी विधायकी भी खत्म हो गयी। वे बिहार के पहले ऐसे विधायक हैं जिनको रेप केस में उम्र कैद की सजा मिली है। ऐसे विवादास्पद नेता की पत्नी को चुनाव मैदान में उतार कर राजद ने बड़ा जोखिम लिया है। एनडीए इस मामले को चुनाव में भुना सकता है। रेप के गुनहगार राजवल्लभ भले जेल में बंद हैं लेकिन उनका राजद में अभी भी रुतबा है। दरअसल नवादा की लड़ाई राजवल्लभ बनाम सूरजभान होने वाली है। इस सीट पर सबसे अधिक 18 प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं। पहले यह सीट रिजर्व थी। 2009 में यह सामान्य सीट हुई थी। 2009 और 2014 में इस सीट पर भाजपा की जीत हुई थी। अब लोजपा के सामने चुनौती है कि वह एनडीए की इस सीट को बचाए।
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