बेगूसराय: मोदी की पतवार से मझधार पार कर लेंगे गिरिराज?
पटना। नरेन्द्र मोदी अब भी ब्रांड हैं। एंटी इंकम्बेंसी फैक्टर का कुछ असर है। कई बातों को लेकर लोग केन्द्र सरकार से नाराज भी हैं। लेकिन इसके बावजूद वे मोदी को एक और मौका देने के पक्ष में हैं। बेगूसराय बिहार के सबसे प्रबुद्ध जिलों में एक है। यह मौजूदा बिहार का सबसे पुराना औद्योगिक शहर है। इस लिए यहां के लोगों की सियासी समझबूझ गहरी है। पिछले तीन दिनों से बेगूसराय के लोगों के मन और मिजाज को नजदीक से समझने का मौका मिला।
गिरिराज नहीं मोदी के लिए वोट
स्थान-बेगूसराय। दिन-शनिवार। समय- दिन के ग्यारह बजे। एक अत्यंत प्रियजन की मौत से मन बहुत उदास है। बेगूसराय से मोहनपुर जाने के लिए बस में बैठता हूं। मेरी बाजू वाली सीट पर एक सज्जन बैठते हैं। उनके हाथ में दिन का अखबार है। मन तो उदास है लेकिन पत्रकार मन बरबस अखबार की तरफ चला जाता है। जैसे ही मेरी नजर अखबर की तरफ उठती है, वे पूछ बैठते हैं, पढ़बै की...। मेरे हां कहने पर वे अखबार दे देते हैं। फिर उनसे बातचीत होती है। उनका नाम रवीन्द्र कुमार है। वे पढ़े लिखे हैं। किसान हैं। वे बताते हैं कि पपिता और सब्जी की खेती से मोहनपुर, पहाड़पुपर जैसे कई गांवों में कैसे खुशहाली आयी है। रवीन्द्र कुमार कहते हैं, परसों चुनाव है इसलिए कम बसें चल रही हैं। भीड़ भी अधिक है। चुनाव की चर्चा आते ही मैं उनसे पूछता हूं, यहां कौन जीत रहा है ? वे कहते हैं, यहां तो मोदी के नाम पर वोट पड़ेगा। गिरिराज सिंह के होने या न होने से कोई फर्क नहीं पड़ता। लोग नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री बनाने के लिए वोट करेंगे। रवीन्द्र सिंह कहते हैं, अगर यहां से गिरिराज सिंह के बदले कोई दूसरा भी उम्मीदवार होता तो जीत भाजपा की ही होती। वे बताते हैं कि बिहट में बहुत बड़ी सब्जी मंडी लगती है। मेरा वहां अक्सर आना जाना होता है। कन्हैया बिहट के ही रहने वाले हैं। वहां के अधिकतर किसान भाजपा को वोट करने वाले हैं। अधिकतर भूमिहार वोट गिरिराज सिंह को मिल रहा है। मैं उनसे पूछता हूं, आप इतने यकीन से कैसे कह सकते हैं कि अधिकतर भूमिहार वोट गिरिराज सिंह को मिल रहे हैं ?
इसे भी पढ़ें:- 'बेगूसराय के बेटे' के प्रचार में बाहरियों की भरमार से उठे स्थानीय सवाल
जो भूमिहार पहले कम्युनिस्ट थे अब वही हैं भाजपाई
मेरे सवाल के जवाब में रवीन्द्र सिंह कुछ बोलते इसके पहले पीछे से एक युवक कहता है, अब बेगूसराय में गिनती के ही भूमिहार कम्युनिस्ट रह गये हैं। साम्यवाद के पतन के बाद बेगूसराय ने यूटर्न ले लिया। यहां का रंग लाल से भगवा हो गया है। भूमिहार समुदाय की पसंद अब भाजपा है। जब से नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री बने हैं भगवा रंग कुछ और गहरा हो गया है। अधिकतर भूमिहार बहुल गांव नरेन्द्र मोदी के नाम पर भाजपा को वोट कर रहे हैं। भूमिहार जिधर वोट करेंगे, जीत उसी की होगी। गरीबी, महंगाई और बेरोजगारी की समस्या अब भी मुद्दा है लेकिन देश हित में मोदी का पीएम होना बहुत जरूरी है। खुद कन्हैया को अपने गांव में बहुत कम वोट मिल रहे हैं। कन्हैया जिस तरह से बाहरी लोगों के प्रचार प्रसार पर निर्भर हैं, उससे उनकी स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है। जावेद अख्तर, जिग्नेश मेवाणी और शेहला रशीद के भाषणों से लोगों में बहुत नाराजगी है। इसलिए कन्हैया को स्वजातीय वोट बहुत कम मिल रहे हैं।
लोकसभा में भाजपा को विधानसभा में कांग्रेस को
बस बेगूसराय-रोसड़ा रोड पर तेजी से दौड़ रही है। तकरीबन पैंतालिस मिनट बाद बस आठवां ढाला के पास पहुंचती है। पहाड़पुर गांव जाने के लिए यहां उतरना पड़ता है। एक संबंधी बाइक लेकर इंतजार करते हुए मिलते हैं। रास्ते में कई जगह कांग्रेस विधायक अमिता भूषण के नाम के शिलापट्ट लगे हैं। रास्ते के शुरुआती हिस्से में ईंट बिछी हुई है। कुछ हिस्सा सीमेंटेड है। बाकी सड़क कोलतार से बनी है। तेज पछिया हवा है। मुंह में गमछा लेपेटने के बाद भी हलक सूखने को है। शर्बत-पानी के लिए एक दलान पर बाइक रुकती है। दलान पर कई लोग बैठे चुनाव की ही चर्चा कर रहे होते हैं। एक बुजुर्ग सज्जन कहते हैं, ये लोकसभा का चुनाव है। इस चुनाव से देश का प्रधानमंत्री तय होता है। हम लोगों को कैसा प्रधानमंत्री चाहिए ? अगर मोदी को नहीं बनाएंगे तो बताइए कौन है उसके लायक ? अभी पक्ष और विपक्ष में जितने भी नेता हैं, उनमें मोदी से बेहतर कौन है ? कोई कुछ नहीं बोलता है। वे कहते हैं मोदी ने बहुत कुछ नहीं किया, लेकिन जो भी किया वो कम नहीं है। हां, विधानसभा चुनाव में हम लोग सोचेंगे। तभी एक ग्रामीण कांग्रेस विधायक अमिता भूषण की तारीफ करते हैं। तब वे कहते हैं, अमिता भूषण ने अपने फंड से गांव की सड़क बनायी, बांध की मरम्मत करायी और किसानों को उचित मूल्य दिलाने के लिए मेहनत की। हम तो विधानसभा के चुनाव में अमिता भूषण को वोट करेंगे। अब उनके काम पर कांग्रेस का नाम हो जाए तो ये अलग बात है।
श्मशान घाट पर भाजपा का झंडा
सिमरिया घाट। गांगा की पावन धारा। यहां से कुछ ही दूरी पर है राष्ट्रकवि दिनकर की जन्म भूमि। सिमरिया घाट की एक और पहचान है। अंतिम संस्कार के लिए लोग दूर दूर से आते हैं। बालू और धूल भरे रास्ते को तय कर श्मशान घाट पर पहुंचते हैं। लू के थपेड़े झुलसा रहे हैं। तभी नजर एक जगह पर ठहर जाती है। घाट की ढलान के ठीक ऊपर भाजपा के एक झंडा तेज हवा की झोंकों में लगातार लहरा रहा है। देख कर हैरानी होती है, इस दुखदायी स्थान पर भला राजनीति का क्या काम ? यहां आकर तो लोग जीवन के सत्य से परिचित होते हैं। अंतिम संस्कार के लिए डोम राजा जब अपनी औपचारिकता पूरी कर लेते हैं तो एक सवाल पूछे बिना खुद को नहीं रोक सका। श्मशान घाट पर भाजपा का झंडा क्यों लगा है ? तीस-बत्तीस सााल के डोम राजा बेपरवाह तरीके से कहते हैं, आपको मालूम नहीं है क्या ? बनारस के डोम राजा को नरेन्द्र मोदी ने अपना प्रस्तावक बनाया है। आज तक किसी प्रधानमंत्री ने ऐसा किया है क्या ? नरेन्द्र मोदी ने हम लोगों को जो इज्जत दी है उसको कभी भुला नहीं सकते। हम लोग तो मोदी को ही वोट करेंगे।
गिरिराज की बेहतर स्थिति
दिन-सोमवार। तारीख- 29 अप्रैल। दिन ढलने को है। बेगूसराय में कुछ बूथों के पास से गुजरता हूं। रास्ते में वोट डाल कर लौट रहे लोगों से मुलाकात होती है। पूछता हूं, कौन निकल रहा है ? कई लोग मुसकुराते हैं और आगे निकल जाते हैं। कुछ नौजवान मिलते हैं। पूछने पर इशारा करते हैं और कहते हैं, फूल खिले हैं गुलशन गुलशन। भाजपा, सीपीआइ और राजद के नेता अपने अपने तरीके से फीडबैक ले रहे हैं। भाजपा के खेमे में दो बातों को लेकर उत्साह है। कहा जा रहा है कि गिरिराज सिंह को थोक भाव में कैडर और स्वजातीय मत मिले हैं। इस बात की भी चर्चा है कि अल्पसंख्यक मत राजद के पक्ष में गोलबंद होने से कन्हैया का गेम ओवर होने को है।
पढ़ें, बेगूसराय लोकसभा सीट का पूरा प्रोफाइल