बक्सर में राजद-बसपा की गंभीर चुनौती, क्या चौबे की नाव पार लगाएंगे मोदी?
नई दिल्ली। बक्सर धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व का नगर है। प्राचीन काल में यहां गुरु विश्वामित्र का आश्रम था जहां श्रीराम और लक्ष्मण ने उनसे शिक्षा ली थी। श्रीराम ने ताड़का का वध यहीं किया था। आधुनिक इतिहास में भी बक्सर का महत्व है। 1764 में ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना का बंगाल, अवध और मुगल शासन की संयुक्त सेनाओं से बक्सर में ही युद्ध हुआ था। ईस्ट इंडिया कंपनी की जीत के साथ ही भारत में अंग्रेजी शासन की नींव मजबूत हो गयी थी। आजादी के बाद बक्सर राजा-रजवाड़ा के प्रभाव में रहा। डुमरांव के राजा कमल सिंह पहले दो चुनावों में निर्दलीय जीते। फिर इस सीट पर कांग्रेस और भाकपा का दबदबा रहा। अगर 2009 को छोड़ दें तो इस सीट पर अभी तक भाजपा का वर्चस्व है। भाजपा के लालमुनी चौबे 1996 से इस सीट पर लगातार चार बार जीते थे। 2014 में अश्विनी चौबे जीते थे। 2019 के चुनाव में एक बार फिर भाजपा के अश्विनी कुमार चौबे का राजद के जगदानंद सिंह से मुकाबला है। लेकिन इस बार मायावती की सक्रियता से बक्सर सीट की लड़ाई त्रिकोणीय हो गयी है।
मायावती ने बक्सर में जोर लगाया
बक्सर उत्तर प्रदेश की सीमा पर अवस्थित है। मायावती बिहार के सीमावर्ती जिलों में बसपा के विस्तार के लिए सक्रिय रही हैं। पूर्वी चम्पारण, गोपलागंज, बक्सर, भभुआ और सासाराम जैसे जिलों में बसपा का प्रभाव भी है। 2014 के चुनाव में बक्सर लोकसभा सीट पर बसपा के ददन सिंह यादव ने एक लाख 84 हजार वोट लाकर अपनी ताकत दिखा दी थी। दूसरे स्थान पर रहने वाले जगदानंद सिंह को बसपा से केवल दो हजार वोट ही अधिक मिले थे। इसी बात को ध्यान में रख कर मायावती ने 2019 में इस सीट पर सबसे अधिक जोर लगा रखा है। 11 मई को बक्सर के चौसा में मायावती ने अपने उम्मीदवार सुशील कुशवाहा के लिए एक रैली की थी। इस रैली में जुड़ी भीड़ से बसपा में बहुत उत्साह है। बक्सर लोकसभा क्षेत्र में ब्राह्मण, यादव के बाद कुशवाहा वोटर भी प्रभावशाली स्थिति में हैं। मायावती बक्सर को बिहार में प्रवेश का आसान रास्ता मान रही हैं।
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अश्विनी चौबे के सामने चुनौती
बक्सर के सांसद अश्विनी चौबे भागलपुर के रहने वाले हैं। वे भोजपुरी नहीं जानते हैं। बक्सर के लोग उन्हें बाहरी मानते हैं। मोदी लहर में वे यहां से जीत गये। केन्द्र सरकार में मंत्री भी बने। लेकिन लोगों में उनके प्रति नाराजगी है। स्थानीय सांसद और केन्द्रीय स्वास्थ्य राज्य मंत्री होने के नाते उन्हें एम्स बक्सर में देना चाहिए था लेकिन वे भागलपुर लेकर चले गये। रामरेखा घाट और गंगा का उद्धार नहीं हुआ। बक्सर के अस्पतालों का भी कायाकल्प नहीं हुआ। चौबे की डगमगाती नैया को पार लगाने के लिए अब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को खुद पतवार थामनी पड़ी है। भाजपा को उम्मीद है कि नरेन्द्र मोदी की सभा से चौबे का उद्धार हो जाएगा। बक्सर में ब्राह्मणों का वर्चस्व रहा है। चौबे को मोदी और एनडीए के आधार मतों का सहारा है। पिछले चुनाव में बसपा से लड़ने वाले ददन सिंह यादव अब जदयू के विधायक हैं और अश्विनी चौबे के लिए वोट मांग रहे हैं।
जगदानंद सिंह की स्थिति
राजद के वरिष्ठ नेता जगदानंद सिंह का सासाराम, भभुआ और बक्सर इलाके में प्रभाव रहा है। उनकी छवि गंभीर और कर्मठ नेता की है। 2009 के लोकसभा चुनाव में वे राजद के टिकट पर यहां से जीते थे। लेकिन 2014 के चुनाव में वे अश्विनी चौबे से बुरी तरह पराजित हुए थे। चौबे ने जगदानंद को एक लाख 24 हजार वोटों से हराया था। इस बार जगदानंद महागठबंधन के उम्मीदवार हैं। उनको कांग्रेस के ब्राह्मण वोट और उपेन्द्र कुशवाहा के आधार मिलने की उम्मीद है। लेकिन स्वजातीय अश्विनी चौबे को छोड़ कर ब्राह्मण राजद को कितना वोट करेंगे, यह कुछ निश्चित नहीं है। बसपा के उम्मीदवार कुशवाहा जाति से हैं। इस लिए कुशवाहा वोट भी राजद को मिल पाएगा, इस पर संदेह है। राजद के लिए पूर्व विधायक रामचंद्र यादव भी मुश्किल पैदा कर रहे हैं। वे निर्दलीय मैदान में हैं। उनका दावा है कि उन्हें पप्पू यादव, ददन पहलवान और पूर्व विधायक अजीत चौधरी का समर्थन हासिल है। अब रामचंद्र को जो भी वोट मिलेंगे वो राजद के जगदानंद सिंह के खाते से ही कटेगा।