एक बाहुबली जो लालू को नहीं सुहाते थे फूंटी आंख, अब हैं राजद के स्टार प्रचारक
एक बाहुबली जो लालू को नहीं सुहाते थे, अब हैं राजद के स्टार प्रचारक
नई दिल्ली। राजनीति में मतलबपरस्ती की कोई हद नहीं है। जानी दुश्मन को भी दोस्त बनते देर नहीं लगती। बिहार के बाहुबली विधायक अनंत सिंह कभी लालू यादव के जानी दुश्मन थे। दोनों एक दूसरे को फूटी आंख भी नहीं सुहाते थे। लेकिन 2019 में सियासी स्वार्थ की ऐसी आंधी चली कि नफरत की दीवार बालू की भीत की तरह ढह गयी। अब यही अनंत सिंह गांव-गांव घूम कर राजद के लिए वोट मांग रहे हैं। जो लालू यादव कभी अनंत को समाज के लिए बड़ा खतरा बताते थे अब वे राजद के लिए स्टार प्रचारक बन गये हैं।
अनंत ने राजद के रघुवंश के लिए किया रोड शो
बिहार की सामाजिक- राजनीति व्यवस्था में यादव और भूमिहार दो विपरीत ध्रुवों पर खड़े नजर आते हैं। 2019 के चुनाव में राजद ने किसी भूमिहार को टिकट नहीं दिया है। माना जाता है कि राजद को इनसे परहेज है। लेकिन बिहार में कुछ ऐसी सीटें हैं जहां जीत -हार के लिए भूमिहार डिसाइडिंग फैक्टर हैं। वैशाली भी उनमें एक है। वैसे तो यह सीट राजपूत बहुल है लेकिन यहां भूमिहार वोटर भी प्रभावकारी हैं। 1992 में जब राजपूत और भूमिहार वोटर एक हो गये थे तब लालू जैसे महाबली भी कुछ नहीं कर पाये थे। तब आनंद मोहन की पत्नी लवली आनंद ने यह सीट जीत ली थी। 2019 में राजद ने इस सीट पर अपने पुराने योद्धा रघुवंश प्रसाद सिंह को खड़ा किया है। 2014 में रघुवंश सिंह हार गये थे। इस बार उनको जीत के लिए के लिए पापड़ बेलने पड़ रहे हैं। उनको भूमिहार मतों की सख्त जरूरत थी। राजद के नाम पर तो ये वोट मिलेगा नहीं। इस लिए सारी अदवात भूल कर राजद ने अनंत सिंह को याद किया। अनंत सिंह भूमिहार शक्ति के बड़े प्रतीक हैं। वोट की मजबूरी क्या न कराये। राजपूत समुदाय के रघुवंश सिंह ने अनंत सिंह को वैशाली में रोड शो के लिए राजी कर लिया। अनंत सिंह उसी अकड़ के साथ राजद के लिए वोट मांगते रहे। बिहार की राजनीति में यह अचंभा से कम नहीं था। जो राजद कल तक अनंत सिंह को अपराधी बताया करता था उसकी नजर में अब वह स्टार प्रचारक है।
लालू को क्यों थी अनंत से खुन्नस ?
अनंत सिंह पर कई आपराधिक मुकदमे चल रहे हैं। आपराधिक छवि के कारण ही उन्हे दबंग कहा जाता है। राजनीति में आये तो पहले नीतीश से जुड़े। अनंत, नीतीश के पुराने चुनाव क्षेत्र बाढ़ के लदमा गांव के रहने वाले थे। बाढ़ में यादव बनाम भूमिहार की लड़ाई बहुत पुरानी है। अनंत सिंह ने यादवों के वर्चस्व को तोड़ा। इस बात ने लालू यादव को परेशान कर दिया। अनंत जदयू से विधायक बन गये तो उनकी ताकत आसमान छूने लगी। अनंत सिंह की उठान लालू यादव को चुभने लगी। लालू, अनंत को सबक सिखाना चाहते थे। इसी बीच जून 2015 में एक ऐसी घटना हो गयी जिससे लालू यादव के मन की मुराद पूरी हो गयी। अनंत सिंह लालू के विरोध के बाद भी निर्दलीय विधायक बने थे। तब उन्होंने लालू को लूटने वाल नेता बताया था। उन्होंने आरोप लगाया था कि लालू ने उनके शॉपिंग मॉल में हिस्सा मांगा था और रंगदारी नहीं देने पर झूठे मुकदमे में फंसाने की धमकी दी थी।
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लालू और अनंत में अदावत की आग
17 जून 2015 को बाढ़ बाजार में एक लड़की से छेड़खानी हुई थी। इस घटना के बाद सामाजिक तनाव फैल गया। इस बीच बाढ़ बाजार से चार युवकों को अगवा कर लिया गया। अपहरण का आरोप लगा अनंत सिंह पर। कुछ दिनों के बाद अपहृत युवकों में एक पुटुश यादव का शव मिला। ग्रामीणों ने पुटुश यादव पर भी छेड़खानी का आरोप लगाया था। इसके बाद इस मामले ने राजनीतिक रंग ले लिया। भूमिहार बनाम यादव की लड़ाई शुरू हो गयी। उस समय बिहार में लालू यादव और नीतीश कुमार करीब आ गये थे। राजनीति में पिछड़ावाद एक बार फिर जोर मार रहा था। लालू से नाराज चल रहे पप्पू यादव ने इस घटना को बड़ा मुद्दा बना लिया। लालू डर गये कि कहीं पप्पू उनके यादव वोट बैंक पर कब्जा न कर लें। तब लालू ने अपने स्वजातीय लोगों पर पकड़ बनाये रखने के लिए अनंत सिंह पर कार्रवाई के लिए दबाव बनाया। नीतीश भी उस समय लालू के प्रभाव में थे। लालू के दबाव पर नीतीश सरकार ने अनंत सिंह की गिरफ्तारी के लिए पुलिस को हरी झंडी दिखा दी। तब इस बात की पुरजोर चर्चा रही कि अनंत सिंह को गिरफ्तार करने के लिए एक भूमिहार आइपीएस विकास वैभव को बुलाया गया है। पुटुस यादव हत्या मामले की बजाय अनंत सिंह को अपहरण और फिरौती के एक पुराने मामले में जून 2015 में गिरफ्तार कर लिया गया। लालू किसी भी हाल में अनंत को सलाखों के पीछे देखना चाहते थे। लालू ने बाद में इस बात को स्वीकार किया था कि ये गिरफ्तारी उनके दबाव पर हुई थी। अनंत सिंह की जिस तरह से गिरफ्तारी हुई उससे उनकी हनक खत्म हो गयी। जदयू के विधायक रहते उनकी दुर्गति हुई। तभी अनंत सिंह का नीतीश से मोहभंग हो गया था।
अनंत बन गये लालू के प्रशंसक
गिरफ्तारी के करीब ढाई महीने के बाद अनंत सिंह ने जदयू से इस्तीफा दे दिया। 2015 के विधानसभा चुनाव में मोकामा से निर्दलीय लड़े और पहले से अधिक वोटों से जीते। इससे लालू और भी भन्ना गये। लेकिन जुलाई 2017 में बिहार की राजनीति में अचंभा हो गया। राजद सरकार से बाहर और विपक्षी दल भाजपा सत्ता का भागीदार बन गया। लालू , नीतीश पर आगबबूला हो गये। अनंत सिंह पहले से नीतीश के विरोध में थे। अनंत को लगा कि अगर वे लालू के साथ मिल जाएं तो नीतीश कुमार को राजनीतिक नुकसान पहुंचा सकते हैं। इसके बाद अक्टूबर 2018 से अनंत सिंह ने लालू की तारीफ शुरू कर दी। लालू को नीतीश से बड़ा नेता बताने लगे। उनकी मंशा मुंगेर से लोकसभा चुनाव लड़ने की भी थी। वे नीतीश को अपनी ताकत दिखाना चाहते थे। लालू ने अनंत को राजद में लेने सें इकार कर दिया। लेकिन इतनी सहूलियत जरूर दे दी कि वे कांग्रेस में जा कर महागठबंधन का हिस्सा बन सकते हैं। कांग्रेस ने अनंत के नाम पर ना नुकुर किया तो उन्होंने अपनी पत्नी को टिकट दिला दिया। आखिरकार अनंत सिंह महागठबंधन का हिस्सा बन ही गये। इसके बाद राजद ने भी लाज के बंधन को तोड़ दिया। वैशाली में जरूरत हुई तो सीधे अनंत को बुला लिया।