Lok Sabha Elections 2019: बिहार में दो चरण के चुनाव के बाद NDA उत्साह में
पटना। बिहार में दो चरण के मतदान के बाद एनडीए में उत्साह है। 2014 की तुलना में नरेन्द्र मोदी का इकबाल कम हुआ है लेकिन नीतीश के फिर मिल जाने से एनडीए की स्थिति मजबूत मानी जा रही है। अब तक के चुनाव प्रचार में मोदी, नीतीश और पासवान की तिकड़ी ने बेहतर तालमेल के साथ वोटरों से संवाद कायम किया है। त्रिमूर्ति सरकार के काम पर वोट मांग रही है तो महागठबंधन केवल मोदी को हराने के नाम पर वोट मांग रहा है। अभी तक तेजस्वी एनडीए के खिलाफ कोई मजबूत चुनावी मुद्दा नहीं बना पाये हैं। महागठबंधन के घटक दलों में भारी बिखराव से गैरभाजपा मतों का ध्रुवीकरण नहीं पा रहा है।
दो चरणों के चुनाव के बाद एनडीए आशान्वित
अब तक नौ सीटों पर हुए चुनाव में एनडीए को कम से कम सात सीटों पर बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद है। एनडीए के एकजुट होने से इस बार मध्य बिहार, कोसी और सीमांचल में फायदा मिलता दिख रहा है। माना जा रहा है कि इस बार एनडीए ने पूर्णिया, भागलपुर औरंगाबाद, गया, नवादा, जमुई और बांका में बेहतर प्रदर्शन किया है। बांका में पुतुल कुमारी के खड़ा होने के बावजूद एनडीए के मतों में बहुत कम बिखराव की बात कही जा रही है। किशनगंज में मुस्लिम मतों का तीन तरफा विभाजन हुआ है। किशनगंज में जदयू और कांग्रेस दोनों ही आशान्वित हैं। कटिहार में कांग्रेस की स्थिति ठीक बतायी जा रही है।
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आरक्षण और संविधान का मुद्दा कारगर नहीं
महागठबंधन के नेता तेजस्वी यादव अभी तक आरक्षण और संविधान के मुद्दे पर वोटरों को प्रभावित नहीं कर पाये हैं। सवर्णों को जो 10 प्रतिशत आरक्षण मिला है उसके लिए पहले के प्रावधान में कोई छेड़छाड़ नहीं की गयी है। पिछड़े और दलितों को इससे कोई नुकसान नहीं होगा। इस लिए तेजस्वी का यह कहना कि मोदी सरकार फिर आयी तो आरक्षण खत्म कर देगी, लोगों के गले नहीं उतर रहा। इसी तरह संविधान खतरे में है का मुद्दा भी बेमानी हो गया है। भारत में लिखित संविधान है और इसकी हिफाजत के लिए सुप्रीम कोर्ट मौजूद है। सरकार चाह कर भी संविधान की मूल भावना से खिलवाड़ नहीं कर सकती। कांग्रेस का यह नारा भी बेअसर लग रहा है जिसमें चौकीदार चोर है कहा जा रहा है। राजद और कांग्रेस की पूरी ताकत केवल एक व्यक्ति को हराने पर केन्द्रीत हो गयी है। नकारात्मक राजनीति के कारण केन्द्र सरकार के खिलाफ हवा नहीं बन पा रही है।
नीतीश ने अत्यंत पिछड़ा वर्ग को गोलबंद किया
पिछड़े वर्ग में गैरयादव जातियों पर नीतीश कुमार की मजबूत पकड़ रही है। अत्यंत पिछड़ा वर्ग ही वह ताकत है जिसके बल पर नीतीश आज तक लालू यादव को चुनौती देते आये हैं। उपेन्द्र कुशवाहा को महागठबंधन में पांच सीटें तो मिली हैं लेकिन टिकट बंटवारे में जिस तरह से लेनदेन के आरोप लगे हैं उससे कुशवाहा की साख धूमिल हुई है। इस लिए कहा जा रहा है कि कुशवाहा वोट भी एनडीए को मिले हैं। अत्यंत पिछड़ावर्ग, भाजपा के कैडर वोट और रामविलास पासवान के दलित वोट के मिल जाने से एनडीए प्रभावशाली स्थिति में है। मतदान के प्रतिशत में भी कोई बहुत बड़ा बदलाव नहीं हुआ है। इसके आधार पर यह कहा जा रहा है कि सत्ता विरोधी वोटर बहुत कम संख्या में बूथ तक पहुंचे।
बूथ प्रबंधन में पिछड़ा महागठबंधन !
महागठबंधन के पक्ष में यादव-मुस्लिम वोट एकजुट दिख रहा है। वैसे उपेन्द्र कुशवाहा, जीतन राम मांझी और मुकेश सहनी के आने से महागठबंधन खुद को मजबूत बता रहा है। लेकिन कहा जा रहा है कि बूथ प्रबंधन में महागठबंधन पिछड़ गया है। चर्चा के मुताबिक चुनाव के दिन समर्थकों की संख्या आशा के मुताबिक वोट में तब्दील नहीं हो पायी है।