तेजप्रताप के बाद लालू यादव के साले बने राजद की राह में रोड़ा
पटना। तेजप्रताप के बाद अब लालू यादव के साला साधु यादव राजद की राह में रोड़ा बन गये हैं। साधु यादव यानी अनिरुद्ध प्रसाद बसपा के टिकट पर महाराजगंज से चुनाव लड़ेंगे। महाराजगंज में राजद के उम्मीदवार हैं रणधीर कुमार सिंह, जो बाहुबली नेता प्रभुनाथ सिंह के पुत्र हैं। साधु यादव के बसपा उम्मीदवार बन जाने से राजद के वोट बैंक में सेंधमारी तय है। इस बात की भी चर्चा है कि तेज प्रताप की बगावत को हवा देने में लालू कुछ संबंधी ही सक्रिय हैं। हालांकि तेज प्रताप, साधु यादव से कोई वास्ता नहीं रखने की बात कहते हैं, साधु यादव उनकी तरफदारी करते रहे हैं।
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लालू ने साधु यादव को राजनीति में उतारा
लालू यादव जब 1990 में मुख्यमंत्री बने थे तब अपने सगे संबंधियों को दिल खोल कर सियासी रेवड़ी बांटी थी। कुछ ही दिनों बाद उनके साला साधु यादव और सुभाष यादव समानांतर सत्ता का प्रतीक बन गये। लालू यादव ने भी इनको खूब आगे बढ़ाया। हद तब हो गयी जब लालू यादव ने साधु यादव को साहित्यकार के कोटे से विधानपरिषद का सदस्य बनावा दिया। राज्यपाल विभिन्न क्षत्रों में विशिष्ट योगदान करने वाले 12 प्रमुख लोगों को विधान परिषद में मनोनीत करते हैं। इस तरह साधु यादव उपकृत हो कर विधान पार्षद बन गये। फिर लालू-राबड़ी की कृपा से विधायक भी बने। 2004 में गोपालगंज से सांसद भी चुने गये। लेकिन सत्ता और शक्ति को साधु यादव पचा नहीं पाये। उन पर अपराधियों को संरक्षण देने का आरोप लगने लगा। उनके नाम से लोग खौफ खाने लगे।
फिल्म गंगाजल के खलनायक का नाम साधु यादव
कहा जाता है कि रियलिस्टिक फिल्में बनाने वाले प्रकाश झा ने अपनी चर्चित फिल्म गंगाजल में जिस दुर्दांत नेता का चरित्र गढ़ा था उसकी पृष्ठभूमि में साधु यादव ही थे। प्रकाश झा ने इस पात्र का नाम भी साधु यादव रखा था और उसे विधायक के रूप में दिखाया था। साधु यादव का किरदार मोहन जोशी ने निभाया है। लालू यादव के साला साधु यादव ने फिल्म के इस कैरेक्टर पर भारी विरोध जताया था। 2003 में ये फिल्म रिलीज हुई थी। उस समय बिहार में राबड़ी देवी की सरकार थी। जब ये फिल्म सिनेमा घरों में रिलीज हुई तो साधु य़ादव और उनके समर्थकों ने इसके प्रदर्शन को रोकने की कोशिश की। सिनेमा हॉल पर हमले भी किये गये थे। लेकिन इसका कोई असर नहीं पड़ा। ये फिल्म खूब चली।
2009 में लालू ने साधु यादव को पार्टी से निकाला
2005 में बिहार विधानसभा चुनाव हार जाने के बाद लालू यादव को अहसास हुआ कि उनके आसपास गलत लोगों का जमावड़ा लग गया है। 2005 में नीतीश और भाजपा ने लालू के जंगलराज को खत्म करने के लिए जनादेश मांगा था। अपहरण, रंगदारी, लूटमार से जनता त्रस्त थी। जनता ने नीतीश कुमार पर भरोसा किया और सत्ता सौंप दी। लालू के खिलाफ जिस जंगलराज का आरोप लगा उसके केन्द्र में साधु यादव और सुभाष के होने की बात कही गयी। लालू और राबड़ी ने भी माना कि उनकी वजह से उनके शासन की छवि खराब हुई। 2009 के लोकसभा चुनाव के समय लालू ने अपने साला साधु यादव को कोई भाव नहीं दिया। साधु ने बगावत कर दी और कांग्रेस में शामिल हो गये। लालू ने उन्हें पार्टी से निकाल दिया। साधु ने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा लेकिन हार गये। तब से लालू-राबड़ी ने साधु-सुभाष से न केवल नाता तोड़ लिया बल्कि उनके लिए घऱ के दरवाजे भी बंद कर दिये।
2014 में साधु ने राबड़ी का किया था विरोध
जब से लालू नाराज हुए साधु यादव की राजनीति का अंत हो गया। कई जगह हाथ-पांव मारते रहे लेकिन कुछ हासिल नहीं कर सके। 2014 के लोकसभा चुनाव में साधु यादव ने राबड़ी देवी के खिलाफ छपरा से चुनाव लड़ने की घोषणा की थी। तब लालू यादव ने कहा था कि मेरे बिना साधु यादव की कोई विसात नहीं। साधु यादव ने कई बार नाराज बहन और बहनोई को मनाने की कोशिश की लेकिन नाकाम रहे। लालू-राबड़ी ने आज तक उनको माफ नहीं किया है।
2018 में तेजप्रताप के साथ दिखे थे साधु
पिछले साल से ही तेज प्रताप यादव ने पार्टी में अपनी राजनीतिक सक्रियता बढ़ा दी थी। वे पार्टी के दफ्तर में जनता दरबार लगाते और लोगों की फरियाद सुनते। दिसम्बर 2018 में एक महिला ने जनता दरबार में तेजप्रताप को बताया कि फुलवारीशरीफ की पुलिस उसे परेशान कर रही है। वह अपने साथ हो रहे जुल्म के खिलाफ थाना में मामला दर्ज कराना चाहती है लेकिन पुलिसवाले उसकी नहीं सुन रहे। तेजप्रताप ने सीधे फुलवारीशरीफ थानेदार को फोन लगाया और महिला की शिकायत दर्ज करने की हिदायत दी। उस समय राजद सत्ता से अगल हो चुका था। थानेदार ने तेजप्रताप को भाव नहीं दिया। इससे नाराज तेजप्रताप अपने समर्थकों के साथ फुलवारीशरीफ थाना पहुंच गये। खूब हंगामा हुआ। तेजप्रताप थाना में धरना पर बैठ गये। जब साधु यादव को इस बात की खबर लगी तो वे भी फुलवारीशरीफ थाना पहुंच गये। साधु यादव भी तेज के समर्थन में धरना पर बैठ गये। आखिरकार पुलिस को महिला की शिकायत दर्ज करनी पड़ी। उस समय यह कहा गया कि साधु यादव, तेज प्रताप के जरिये राजद में जाना चाहते हैं। लेकिन नाराज लालू ने ऐसा कुछ भी नहीं होने दिया। साधु यादव ने बात तब और बढ़ा दी जब उन्होंने कह दिया कि तेजप्रताप यादव में पार्टी को संभालने की सलाहियत है। बहरहाल साधु यादव अब लालू परिवार से दूर हैं और राजद के खिलाफ ताल ठोकने की तैयारी में हैं।
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