26 साल तो लगे पर मायावती ने मोहब्बत से जीती सम्मान की लड़ाई
नई दिल्ली। दो तारीखें एक सिक्के के दो अलग-अलग सतह बन गयीं। न कभी एक-दूसरे से दूर हो सकती हैं, न कभी ये ताऱीखें एक दूसरे के करीब आ सकती हैं। मगर, इन तारीखों की बीच की जो मोटाई है वही इन्हें जोड़ती है। इसी हिस्से में सिमटी है 26 साल की सियासत। इसमें समाजवादी और बहुजनवादी रंग की परतें भी अलग-अलग गाढ़ी होती चली गयीं। 2014 में जब इन दोनों रंगों पर भगवा रंग भारी पड़ गया, तो 2019 में ये दोनों रंग अपनी पुरानी चमक को पाने के लिए एक साथ आ खड़े हुए। इस तरह वह सिक्का बन गया जिसकी एक सतह पर लिखा है 2 जून 1993। दूसरी सतह पर उत्कीर्ण हो चुका है 19 अप्रैल 2019।
पहली तारीख अलगाव की शुरुआत थी, दूसरी तारीख इकट्ठा होने की। एक तारीख है सम्मान छिन और छीन लेने के लिए कुख्यात। दूसरी तारीख है सम्मान देने और सिर्फ देने की होड़ दिखाने का आगाज़। सम्मान के लिए जो लड़ाई लड़ती हुईं मायावती ने 26 साल बिता दिए, आखिर उसी सम्मान की जिद के आगे मुलायम हो गये समाजवादी मुलायम सिंह यादव। मैनपुरी में इस मैन ने उस वुमेन के लिए ऐसा सम्मान दिखाया जिसे ज़माना याद रखेगा। भीषण गर्मी में जब मुलायम सिंह के लिए पानी आया, तो पानी कंठ तक पहुंचे इससे पहले उन्होंने पूछा कि क्या मायावतीजी को पानी मिला है कि नहीं।
सिर्फ पानी नहीं, दाना-पानी का संबंध
कभी एक-दूसरे को पानी पिलाने की जिद में शोषित-समाज को पिछड़ा और दलित में बांट चुके नेता आज एक-दूसरे के लिए पानी सुनिश्चित कर रहे थे। मुलायम सिंह यादव के लिए वोट मांगने आयी थीं मायावती और इसलिए उनको पानी पूछना मुलायम का कर्त्तव्य था। ये दाना-पानी का संबंध ही वास्तविक होता है। यही संबंध वंचित तबके को एक-दूसरे से जोड़ता है। मुलायम ने यही संदेश देने की कोशिश की।
माया
ने
मुलायम
को
कांशीराम-सा
सम्मान
दिया
मुलायम
से
सम्मान
पाकर
मायवती
कितनी
गदगद
हुईं
इसे
बयां
करने
के
लिए
तो
तीसरी
आंख
चाहिए।
ज़ुबां
से
ये
बयां
नहीं
हो
सकता।
इसके
लिए
अलग
से
नज़र
पैदा
करनी
होगी।
मुलायम
बोलने
उठे,
तो
मायावती
खड़ी
मिलीं,
बोलकर
कुर्सी
की
ओर
लौटने
लगे,
तो
मायावती
कुर्सी
से
खड़ी
मिलीं।
एकबारगी
मायावती
ने
कांशीराम
के
प्रति
अपने
सम्मान
की
तस्वीरों
को
ज़िन्दा
कर
दिखाया।
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क्षमा करें, यह ‘सम्मान वापसी’ कुछ अलग है!
इस ‘सम्मान वापसी' के मायने अलग हैं। 1993 में जो सम्मान लुटा था, उसके स्मृति अवशेष को मिटा देने का भाव लेकर दो हस्तियां एक-दूसरे को 2019 में सम्मान दे रही थीं। नफ़रत मिटाकर सम्मान लौटाना- इससे बड़ी नहीं हो सकती है कोई ‘सम्मान वापसी'। यह उस ‘सम्मान वापसी' से बहुत अलग है जो कभी साहित्याकारों ने मोदी सरकार में कर दिखाया था। वह एक तरफा था। उसमें असंतोष था, शिकायत थी, अपने अपमान का इज़हार था। वहीं उसकी प्रतिक्रिया में जो खामोशी थी उस वजह से भी वास्तव में साहित्यकारों को दिया गया सम्मान वापस हो चुका था। सम्मान का अमृत जब सरकार के समक्ष खाली हुआ तो निकला हुआ पदार्थ अपना रूप बदलकर विष हो चुका था। सम्मान भी अपमान में बदल चुका था।
मुलायम
का
सख्त
संदेश-
पिछड़े
करें
दलितों
का
सम्मान
देश
की
2479
पिछड़े
वर्ग
की
जातियों
के
लिए
मुलायम
का
यह
संदेश
है
कि
वे
दलितों
का
सम्मान
करें।
मुलायम
ने
आगे
भी
लोगों
से
मायावती
का
सम्मान
करते
रहने
को
कहा
है।
सम्मान
के
धागे
से
बन
रही
यह
डोर
पिछड़े
और
दलितों
को
ऐसे
मजबूत
बंधन
में
बांध
दे
जो
एक-दूसरे
के
लिए
छुआछूत,
भेदभाव
को
खत्म
कर
भाईचारगी
के
नये
युग
का
शुरुआत
करे।
यह
काम
हुआ,
तो
लोग
भूल
जाएंगे
ये
कहना
कि
राजनीति
बांटती
है।
एक
ऐसी
राजनीति
की
शुरुआत
होती
दिख
रही
है
जो
बांटती
नहीं
जोड़ती
है।
ये पल दोहराए नहीं जा सकते
एसपी-बीएसपी और महागठबंधन बन जाने के बावजूद लोगों को भरोसा नहीं था कि दोनों दलों के कार्यकर्ताओँ के दिल मिलेंगे। इसकी वजह 19 अप्रैल 2019 की इसी तारीख का इंतज़ार था। यह पल दोहराया नहीं जा सकता। मुलायम-मायावती एक मंच पर। मायावती मांग रही हैं मुलायम के लिए वोट। मुलायम कह रहे हैं मायावतीजी का सम्मान करो। आगे भी सम्मान करते रहो। मायावती को पहले पानी मिले, फिर मुलायम को दो पानी। बदले में मायावती बारम्बार कुर्सी से उठकर दिखाती रहीं मुलायम के लिए आदर।
अब यूपी में क्या होने वाला है!
अब सोचिए, अगर देश के पिछड़े और दलितों में राजनीतिक एकता हो गयी तो क्या होगा। अगर देश फिलहाल छोड़ दें, सिर्फ यूपी देखें तो क्या होने वाला है। माया-मुलायम को इकट्ठा करने वाले अखिलेश यादव ने यूपी की सियासत को ही नहीं बदला, उन्होंने देश की भावी सियासत की रूपरेखा तय कर दी है। मैनपुरी में ओल्ड मैन ने एक दलित वुमन के लिए जो आदर दिखाया है और बदले में उस वुमन से जो आदर पाया है वह 21वीं सदी की अब तक की सबसे बड़ी घटना के रूप में याद की जाएगी।
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