लोकसभा अध्यक्ष बनने वाले पहले बिहारी, आरा से चुने गये थे सांसद
नई दिल्ली। आरा से एक ऐसे दिग्गज सांसद भी चुने गये हैं जिन्होंने लोकसभा स्पीकर बनने का गौरव प्राप्त किया था। वे इस सीट पर लगातार पांच बार सांसद चुने गये। भारत जब गहरे राजनीतिक संकट के दौर से गुजर रहा था तब वे लोकसभा के अध्यक्ष थे। जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी को इन पर भरोसा था। कांग्रेस के इस लोकप्रिय नेता का नाम है बलिराम भगत।
पांच चुनाव जीते लगातार
आरा लोकसभा क्षेत्र 1977 के पहले शाहाबाद संसदीय क्षेत्र के नाम से जाना जाता था। 1952 के पहले लोकसभा चुनाव में इसका नाम पटना-शाहाबाद क्षेत्र था। 1952 के पहले लोकसभा चुनाव में पटना-शाहाबाद सीट से कांग्रेस के बलिराम भगत जीते थे। वे सिर्फ 30 साल की उम्र में सांसद बन गये थे। इसके बाद वे 1957,1962,1967 और 1971 के लोकसभा चुनाव में इस सीट पर लगातार जीते। फिर 1984 में उन्हें इस सीट पर फिर विजय मिली थी। बलिराम भगत मूल रूप से समस्तीपुर जिले के मोहनपुर प्रखंड के दशहरा गांव के रहने वाले थे। लेकिन उनका परिवार पटना आ गया था। बलिराम भगत का लालन-पालन पटना में हुआ। उन्होंने पटना विश्वविद्यालय से इकॉनोमिक्स में एमए किया था। वे भारत छोड़ो आंदोलन के समय ही कांग्रेस से जुड़ गये थे। आजादी की लड़ाई में शामिल रहे। आजादी के बाद वे एक प्रखर युवा नेता के रूप में उभरे। पहले लोकसभा चुनाव में वे पटना शाहाबाद सीट से जीत कर सांसद बने।
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लोकसभा अध्यक्ष बनने वाले पहले बिहारी
बलिराम भगत 1952 -56 तक वित्त विभाग में संसदीय सचिव रहे। 1957 में वित्त विभाग में उपमंत्री बने। 1969 में पहली बार कैबिनेट मिनिस्टर बने। 1971 में वे शाहाबाद लोकसभा सीट से चौथी बार जीते थे। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 1975 में इमरजेंसी लगा दी। इंदिरा गांधी निरंकुश शासक बन गयी। जिस समय भारत में इनरजेंसी लगी उस समय लोकसभा के स्पीकर थे गुरुदयाल सिंह ढिल्लो। वे मार्च 1971 से दिसम्बर 1975 तक स्पीकर रहे। इसके बाद बलिराम भगत लोकसभा का स्पीकर चुने गये। वे 15 जनवरी 1976 से 22 मार्च 1977 तक इस पद पर रहे। तब तक लोकसभा का कार्यकाल बहुत कम बचा था। बलिराम भगत करीब चौदह महीने ही लोकसभा के अध्यक्ष के पद पर रहे। इस प्रतिष्ठित पद पर जाने वाले वे बिहार के पहले नेता थे।
इस तरह चुने गये स्पीकर
5 जनवरी 1976 को संसद का सत्र शुरू हुआ। आपातकाल का समय था। लोकसभा के नये स्पीकर का चुनाव होना था। कांग्रेस ने बलिराम भगत को खड़ा किया। तब तक इमजेंसी के खिलाफ आंदलन शुरू हो चुका था। विपक्षी दलों नें जनता मोर्च बना कर जगन्नाथ राव जोशी को अपना उम्मीदवार बनाया था। उस समय सरकार ने जोशी और विपक्ष के बीस सांसदों को नजरबंद कर रखा था। चुनाव में बलिराम भगत को 344 वोट मिले जब कि जोशी को केवल 58 मत ही मिल सके। उस समय अखबारों के प्रकाशन पर कई पाबंदियां थीं। देश के लोग समाचार के लिए ऑल इंडिया रेडियो पर निर्भर थे। इंदिरा गांधी की निरंकुश शासन में मीडिया की आजादी छीन ली गयी थी। आकाशवाणी से वही खबरें प्रसारित होती थीं जिसे सरकार मंजूरी देती थी। उस समय विश्वसनीय खबरों के लोग बीबीसी सुनते थे। तब बीबीसी ने खबर दी थी कि संसद का संयुक्त सत्र के शुरू होने पर विपक्ष के अधिकांश सदस्यों ने राष्ट्रपति के अभिभाषण का बहिष्कार कर दिया था। इस तरह बलिराम भगत जब स्पीकर बने तो देश की राजनीति में बहुत उथलपुथल मची हुई थी। उनके स्पीकर बनने की खबर सबसे पहले आकाशवाणी पर ही प्रसारित हुई थी।
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अलग होने के बाद फिर आये कांग्रेस में
बलिराम भगत ने इमरजेंसी के खौफनाक दौर को करीब से देखा था। 1977 में वे कांग्रेस से अलग होकर ब्रह्मानंद रेड्डी की अगुवाई वाली कांग्रेस में शामिल हो गये। 1980 में जब इंदिरा गांधी की वापसी हुई तो वे फिर कांग्रेस में शामिल हुए। अरसे बाद 1984 में वे चुनाव लड़ने के लिए फिर आरा आये। जीते भी। राजीव गांधी की सरकार में विदेश मंत्री बने थे। बाद में कांग्रेस ने उन्हें राजस्थान का राज्यपाल भी बनाय था।
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