Lok Sabha Results 2019: ये देश का मूड है जिसमें कोई और बात बेमानी है
नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव परिणामों के आ रहे रुझान अगर कोई एक बात कहते हैं तो वह है देश के मूड का रुझान जिसमें किसी और बात का कोई मतलब नहीं रह जाता। विपक्ष के सारे अनुमान और सभी दावे चुनाव परिणामों से पहले के थे जो पूरी तरह असफल साबित होरहे हैं। सत्ता पक्ष की सभी बातें अक्षरशः साबित हो रही हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के विरोध की गणित समझाने वाले राजनीतिक पंडितों और विश्लेषकों को शायद इसका कतई इलहाम नहीं हो पाया कि मतदाताओं के मन में क्या चल रहा है। जिसे चुप्पी में कोई आहट नहीं नजर आ रही थी, वह इतनी मुखर साबित हो रही है जिसका अंदाजा लगाने में कुछ ही लोग सक्षम दिख रहे हैं।
एग्जिट पोल ने दिए थे जीत के संकेत
एग्जिट पोल को लेकर किए जा रहे वे सारे अनुमान ध्वस्त हो रहे हैं जिनमें कहा जा रहा था कि वे कभी-कभी ही सही साबित होते हैं। कितने लोग इस पर आस टिकाए हुए थे कि ये एक बार फिर गलत साबित होंगे जैसे आस्ट्रेलिया में हुए हैं। लेकिन ऐसा कुछ भी होता नहीं नजर आ रहा है। वे एकदम सटीक साबित हो रहे हैं और सारे के सारे एक्जिट पोल में किसी तरह का अंतर खोज पाना किसी के लिए भी टेढी खीर साबित होगा। इतना साइंटिफिक जितना होता वह कभी माना ही नहीं जाता क्योंकि इसको लेकर एक आम मान्यता यह होती है कि भले ही सर्वे के आधार पर इन्हें किया जाता हो लेकिन ज्यादा आधारित यह अनुमानों के आधार पर ही होता है। लेकिन शायद अब किसी को यह आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि यह पूरी तौर पर सच भी हो सकते हैं जैसा कि हो रहे हैं।
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बीजेपी के लिए ये जीत बड़ी
अब तक जितने भी चुनाव हुए हैं उनमें इस तरह की बड़ी जीत शायद ही कभी हुई हो। जब भी ऐसा हुआ है तब कारण कुछ अन्य रहे हैं। जैसे एक बड़ी जीत के रूप में राजीव गांधी की कही जाती है। वह चुनाव सहानुभूति लहर का माना गया था। मतलब किसी नेता, पार्टी अथवा मुद्दे के आधार अभी तक ऐसा उदाहरण नहीं रहा है जब किसी को इतनी बड़ी जीत मिल रही हो। यह अब हो रहा है जो अपने किस्म का एक नया इतिहास है। इस चुनाव में एक नेता, एक पार्टी और उनके मुद्दे मतदाताओं के जेहन में पूरी तरह हावी नजर आ रहे हैं। इसके अलावा दूर-दूर तक कोई नेता और कोई पार्टी नहीं टिक पा रही है। यह इस लिहाज से भी अपने आप में अलहदा चुनाव लग रहा है जिसमें ऐसा लग रहा है कि जनता दूसरों को न सुनने को तैयार थी और न मानने को। उसने बहुत पहले से तय कर लिया था। उसका दिमाग एकदम साफ था कि चुनावों में उसे क्या करना है।
ये ऐतिहासिक जनादेश है
बीते 2014 के चुनावों में इसकी झलक दिखी थी जिसमें भाजपा को पहली बार स्पष्ट बहुमत मिला था। आजादी के बाद के इतिहास में वह पहला मौका था जब किसी गैर कांग्रेसी पार्टी को लोकसभा में इतना बड़ा जनादेश मिला था। उससे पहले किसी के लिए भी यह अनुमान लगाना भी कठिन था कि कभी ऐसा भी हो सकता है। लेकिन यह हो गया था। उसी चुनाव में यह भी दावा किया गया था अब भारत कांग्रेस मुक्त होगा जो करीब-करीब सच होता दिखा था जब कांग्रेस अपने इतिहास में कुल 44 सीटों पर सिमटकर रह गई थी। हालांकि उसके बाद लगातार कुछ लोग यह कहते सुने जाते थे कि इस चुनाव में कांग्रेस कुछ अच्छा प्रदर्शन करेगी, लेकिन उसके आसार कम ही नजर आ रहे हैं। दिख यह रहा है कि वर्तमान राजनीतिक माहौल में अब शायद ही कांग्रेस वापसी कर पाए।
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जनता ने विपक्ष की बातों पर ध्यान नहीं दिया, एक पार्टी को दिया जनादेश
इन चुनावों ने यह भी साबित कर दिया कि इस देश में बेरोजगारी, महंगाई, भ्रष्टाचार, किसानों की बदहाली और आत्महत्या, मॉबलिंचिंग, लोगों में असुरक्षा, संस्थाओं का क्षरण, असहिष्णुता आदि कोई मुद्दा नहीं है। यह कोई गुजरे जमाने की बात रही होगी जब लोगों को इस सबकी चिंता होती थी। अब शायद किसी का इस पर कोई ध्यान नहीं है। तभी तो मतदाताओं ने इस पर कुछ भी नहीं सोचा और विपक्ष की बातों पर कोई ध्यान नहीं दिया। इसके पीछे दो ही कारण हो सकते हैं। पहला यह कि अब वे इस सबको कोई मुद्दा नहीं मानते बल्कि संभवतः उनकी नजर में ये सब समस्याएं हल हो चुकी हैं। दूसरा यह कि अब ऐसे मुद्दे उनके सामने आ चुके हैं जिनको हासिल करना मतदाताओं और लोगों के लिए अभीष्ट बन चुका है। इसके अलावा शायद लोगों को अपने अगुवा के रूप में ऐसा करिश्माई नेतृत्व चाहिए जिसके लिए कुछ भी असंभव न हो। ऐसी पार्टी चाहिए जो शुचिता के लिए जानी जाती हो। ऐसा देश चाहिए जिसका डंका पूरी दुनिया में बजता हो और जिसके आगे पूरी दुनिया नतमस्तक होने को मजबूर हो। यह है भारतीय मतदाताओं का संदेश जो उन्होंने इस चुनाव के जरिये देश और दुनिया को देने की साफ कोशिश है। इसे हर किसी को स्वीकार करना चाहिए और लोकतंत्र का यही तकाजा है जिस पर हर किसी को भरोसा रहा है। भारत का लोकतंत्र जिसके लिए पूरी दुनिया में जाना जाता है और जिसकी जड़ें काफी मजबूत मानी जाती हैं।
ईवीएम और वीवीपैट को लेकर किया हो-हल्ला बेकार!
अब इस बात का भी कोई मतलब नहीं रह जाता कि चुनावों के दौरान चुनाव आयोग की भूमिका कैसी रही उसने क्या-क्या किया और क्या-क्या नहीं किया। ईवीएम और वीवीपैट को लेकर किया वह सारा हो-हल्ला भी बेकार साबित हो चुका है जिसको आधार बनाकर विपक्ष यह बताने की कोशिश करने में लगा था कि चुनाव स्वतंत्र और निष्पक्ष नहीं हो रहे हैं। अभी दो दिन पहले भी विपक्ष ने चुनाव आयोग से अपनी शिकायत दर्ज कराई थी और कुछ मांगें रखीं थीं जिसे अस्वीकार कर दिया गया था। विपक्ष सुप्रीम कोर्ट भी गया था जहां उसकी बात सुनी गई थी लेकिन उसकी मांग आंशिक रूप से स्वीकार भी कर ली गई थी। यह अलग बात है इससे वह खुद को संतुष्ट नहीं पा रहा था। इस सबके बाद लोगों के अपने-अपने समीकरण और अपनी-अपनी उम्मीदें थीं जो अपने तरह से ही सामने आई हैं।
भारत के लोकतंत्र में लोगों का अबाध विश्वास
विपक्षी एकता और गठबंधनों को जनता ने उस तरह नहीं स्वीकारा जिस तरह की उम्मीदें विपक्ष कर रहा था। जहां विपक्ष अकेले लड़ा वहां भी कुछ वैसा नहीं कर पाया जिसकी उम्मीद लेकर वह चल रहा था। विपक्ष की अपनी उम्मीदें अधूरी रह गईं क्योंकि मतदाताओं ने उन्हें नहीं सुना। इसके विपरीत सत्ता पक्ष के इरादों को ऐसे पंख लगे कि वह आसमान पर पहुंच गया जिसको वह मानकर चल रहा था। एक तरह से साफ हो गया कि देश का मूड क्या है और वह किस तरह से सोच रहा है। फिलहाल किसी तरह के किंतु-परंतु की गुंजाइश नहीं बची है सिवाय इसके कि सभी लोग जनादेश को स्वीकार करें और लोकतंत्र की मजबूती के लिए काम करने के लिए तैयार हों। यह भारत का लोकतंत्र ही है जिसमें अभी तक लोगों का अबाध विश्वास रहा है और उम्मीद की जानी चाहिए यह आगे भी उसी तरह बना रहेगा। लोकतंत्र को किसी भी कीमत पर कमजोर नहीं होना चाहिए, इस विश्वास के साथ आगे बढ़ना ही ज्यादा समीचीन होगा। यही इस जनादेश का संदेश है और यही विकल्प भी है।