तेजप्रताप ने तेजस्वी को दिखायी ताकत, जहानाबाद में छीन ली राजद से जीत
नई दिल्ली। लालू परिवार की लड़ाई का घातक अंजाम सामने आ गया है। तेजप्रताप की वजह से राजद जहानाबाद सीट हार गया। पूरी पार्टी जीरो पर ऑलआउट हो गयी। वर्षों की मेहनत के बाद लालू यादव ने जो इज्जत कमायी थी, वो मिट्टी में मिल गयी। अहंकार की लड़ाई में दो निवर्तमान सांसदों की भी मिट्टीपलीद हुई। खुद को सूरमा समझने वाले निवर्तमान सांसद अरुण कुमार और पप्पू यादव को दुर्गति झेलनी पड़ी।
तेजप्रताप ने राजद को जहानाबाद में हराया
तेजप्रताप यादव ने तेजस्वी से केवल दो सीटें मांगी थी। तेजस्वी ने बड़े भाई की मांग को ठुकरा दिया था। तब तेजप्रताप ने महाभारत का उदाहरण दिया था। उस समय अपने राजनीतिक अधिकारों के लिए पांडवों ने केवल पांच गांव मांगे थे लेकिन दुर्योधन ने नहीं दिये। दुर्योधन ने कहा था कि सुई की नोक के बराबर भी जमीन नहीं दूंगा। इस अहंकार की वजह से महाभारत की लड़ाई हुई थी और दोनों पक्षों का भारी विनाश हुआ। तेज ने जो अंदेशा जाहिर किया था आखिर वो सच हुआ। लालू के उत्तराधिकारी तेजस्वी अपने बड़े भाई तेजप्रताप की मांग को हल्के में ले रहे थे। लेकिन तेजप्रताप को कमजोर समझने की गलती राजद के लिए महंगी पड़ गयी। अगर तेजप्रताप विरोध न करते तो राजद कम से कम एक लोकसभा सीट जरूर जीत जाता। लेकिन तेज ने दिखा दिया कि राजद की सियासत में वे भी हैसियत रखते हैं। जहानाबाद में राजद के उम्मीदवार सुरेन्द्र यादव महज 1751 वोट से हारे। जब कि तेजप्रताप के उम्मीदवार चन्द्र प्रकाश ने 7755 वोट हासिल किये। अगर तेजप्रताप विरोध ने करते तो ये वोट भी राजद को ही मिलते और सुरेन्द्र यादव आसानी से जीत जाते। अगर राजद को एक सीट भी मिल जाती से तो लोग उसे जीरो पर बोल्ड आउट न कहते। इस हार ने लालू की वर्षों से कमायी हुई इज्जत मिट्टी में मिला दी।
राजद के वोट प्रतिशत में भारी गिरावट
राजद में अंदरुनी विवाद, महागठबंधन में बखराव की वजह से राजद को भारी नुकसान उठाना पड़ा है। माय समीकरण टूटने से उसके वोट शेयर में करीब 5 फीसदी की बड़ी गिरावट आयी है। 2014 में मोदी लहर के बाद भी राजद के चार सांसद जीते थे और उसे 20.46 फीसदी वोट मिले थे। इस बार राजद 19 में एक भी सीट नहीं जीत पाया और उसको सिर्फ 15.36 फीसदी वोट मिले। करीब 5 फीसदी कम वोट मिलने से राजद 4 से जीरो पर चला गया। दूसरी तरफ कांग्रेस ने 9 में एक सीट पर जीत हासिल की लेकिन उसका वोट शेयर बढ़ गया। 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को 7.7 फीसदी वोट मिले हैं जो 2014 की तुलना में करीब डेढ़ फीसदी अधिक है। 2014 में कांग्रेस ने किशनगंज और सुपौल सीट जीती थी और उसे 6.4 फीसदी वोट मिले थे। इससे पता चलता है कि महागठबंधन के घटक दलों ने एक दूसरे को अपनी क्षमता के हिसाब से वोट ट्रांसफर नहीं कराये।
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सांसद रहते अरुण कुमार और पप्पू यादव की दुर्गति
पप्पू यादव और तेजस्वी में इगो की लड़ाई विनाश का कारण बनी। सांसद रहते पप्पू यादव की शर्मानक हार हुई। पप्पू यादव खुद को लालू के बाद के बाद यादवों के साबसे बड़ा नेता मानते हैं। इसी आधार पर वे मधेपुरा को अपनी जागीर मान रहे थे। दूसरी तरफ तेजस्वी के लालू के पुत्र होने के गुमान में थे। लेकिन जनता ने दोनों का घमंड चकनाचूर कर दिया। बड़े बड़े दावे करने वाले बाहुबली पप्पू यादव को चुनाव में केवल 97 हजार 631 वोट मिले। वे तीसरे स्थान पर जा फिसले। यादवों ने एकजुट हो कर जदयू को अपना समर्थन दे दिया। जदयू के दिनेश चंद्र यादव 3 लाख से अधिक वोटों से जीते।
बड़बोले नेताओं को इस बात उनकी जाति ने बिल्कुल नकार दिया। अरुण कुमार 2014 में जहानाबाद से सांसद चुने गये थे। वे पहले रालसोपा के अध्यक्ष उपेन्द्र कुशवाहा से लड़े। फिर नीतीश कुमार से लड़े। अंत में एनडीए को भी अनापशनाप कहने लगे। वे खुद को भूमिहार समुदाय का सबसे बड़ा नेता मान कर मनमानी करते रहे। जब कहीं दाल नहीं गली तो अपनी बेजान पार्टी के बैनर पर जहानाबाद से मैदान में कूद गये। उनको लगता था कि भूमिहार वोटर उनकी नैया पार लगा देंगे लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। अरुण कुमार को महज 34 हजार 558 वोट ही मिले और उनकी करारी हार हुई।
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