बिहार: मोदी की आंधी से विपक्ष में शून्य बटे सन्नाटा, जानिए पूरी 40 सीटों का हाल
नई दिल्ली। 2019 का लोकसभा चुनाव बिहार के लिए ऐतिहासिक है। 40 में से 39 लोकसभा सीटें जीत कर एनडीए ने एक नया कीर्तिमान बनाया है। आज तक किसी दल या गठबंधन को ऐसी जीत नहीं मिली थी। 1984 के लोकसभा चुनाव में इंदिरा गांधी की सहानुभूति लहर में भी ऐसा रिकॉर्ड नहीं बन पाया था। 1984 में बिहार और झारखंड एक था और लोकसभा की कुल सीटों की संख्या 54 थी। उस समय प्रचंड लहर के बाद भी कांग्रेस 48 सीट ही जीत पायी थी। छह सीटों में से नालंदा और जहानाबाद में सीपीआइ, सासाराम में जगजीवन राम, गोपालगंज में निर्दलीय काली पांडेय, छपरा में जनता पार्टी के रामबहादुर सिंह और दरभंगा में लोकदल के विजय कुमार मिश्र जीते थे। लेकिन 2019 के चुनाव में नरेन्द्र मोदी, नीतीश कुमार और रामविलास पासवान की तिकड़ी ने 1984 के रिकॉर्ड को भी तोड़ दिया। महागठबंधन के खाते में केवल एक सीट आयी और 39 सीटें एनडीए ले उड़ा। भाजपा ने अपनी सभी 17 सीटों पर जीत हासिल की। लोजपा ने भी अपनी सभी छह सीटों पर विजय प्राप्त की। जदयू को 17 में से केवल एक सीट किशनगंज में हार मिली। महागठबंधन को केवल एक सीट मिली। कांग्रेस के डॉ. जावेद ने किशनगंज में जीत हासिल की। राजद, रालोसपा, हम औऱ वीआइपी का खाता भी नहीं खुला। जानते हैं सभी 40 सीटों के चुनावी नतीजे।
सबसे बड़ी जीत मधुबनी, सबसे कम मतों से जहानाबाद में
मधुबनी में भाजपा के अशोक यादव ने वीआइपी के बद्रीनाथ पूर्वे को 4 लाख 54 हजार 940 मतों से हराया। बिहार में यह सबसे बड़ी जीत है। अशोक यादव मधुबनी के सांसद हुकुमदेव नारायण यादव के पुत्र हैं। वे खुद विधायक रहे हैं। जब कि वीआइपी के बद्रीनाथ पूर्वे पहली बार चुनाव लड़ रहे थे। इस सीट पर कांग्रेस के नेता शकील अहमद ने भी निर्दलीय चुनाव लड़ा था लेकिन कोई असर नहीं डाल पाये।
जहानाबाद सीट पर कांटे का मुकाबला हुआ। जदयू के चंद्रेश्वर चंद्रवंशी राजद के सुरेन्द्र यादव को महज 1751 मतों से हरा पाये। काउंटिंग के दौरान कभी सुरेन्द्र यादव आगे रहते तो कभी चंद्रेश्वर आगे हो जाते। आखिरी दौर की गिनती में चंद्रेश्वर को बहुत कम मार्जिन से जीत मिली। राजद को इस सीट पर तेजप्रताप के विरोध का खामियाजा भुगतना पड़ा। तेज प्रताप ने इस सीट पर अपनी पसंद के उम्मीदवार को खड़ा किया था। उन्होंने सुरेन्द्र यादव के विरोध में प्रचार भी किया था।
बेगूसराय
इस चुनाव में बेगूसराय की सीट, हॉट सीट में शुमार थी। सीपीआइ के कन्हैया कुमार के समर्थन में देश-विदेश से चर्चित लोग आये थे। फिल्म स्टार शबाना आजमी, जावेद अख्तर, प्रकाश राज और स्वरा भास्कर ने खूब समां बांधा था। जिग्नेश मेवाणी ने दलित कार्ड भी खेला। कन्हैया पोस्टर ब्वॉय बन गये थे। लेकिन तमाम जतन करने के बाद भी कन्हैया मुकाबले में ठहर न सके। इस सीट पर भाजपा के गिराराज सिंह ने कन्हैया को 4 लाख 22 हजार 217 मतों के विशाल अंतर से हराया। इस चुनाव से कन्हैया की राजनीतिक हैसियत सबके सामने आ गयी। गाना-बजाना देखने के लिए भीड तो जुटी लेकिन वोट नहीं मिले। राजद के तनवीर हसन तीसरे स्थान पर रहे।
पटना साहिब
यहां के चुनाव पर पूरे देश की नजर टिकी हुई थी। भाजपा के उम्मीदवार और मौजूदा कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कांग्रेस के शत्रुघ्न सिन्हा को बुरी तरह पराजित कर दिया। रविशंकर ने 2 लाख 84 हजार 657 मतों के अंतर से शत्रुघ्न सिन्हा को हराया। 2014 में शत्रुघ्न सिन्हा ने इस सीट पर भाजपा उम्मीदवार के रूप में जीत हासिल की थी। लेकिन नरेन्द्र मोदी से पंगा लेने के बाद भाजपा ने उनका टिकट काट दिया था। फिर वे कांग्रेस में चले गये। लेकिन दल बदलना उनके लिए आत्मघाती साबित हुआ।
मुंगेर
मुंगेर सीट पर जदयू के उम्मीदवार राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह ने कांग्रेस की नीलम देवी को 1 लाख 67 हजार 937 मतों से हराया। नीलम देवी बिहार के बाहुबली विधायक अनंत सिंह की पत्नी हैं। मोकामा के निर्दलीय विधायक अनंत सिंह का इस इलाके में बहुत प्रभाव माना जाता है लेकिन उनकी पत्नी उस हिसाब से प्रदर्शन नहीं कर पायी। अनंत सिंह ने नीतीश कुमार से सिय़ासी अदावत साधने के लिए अपनी पत्नी को कांग्रेस के टिकट पर यहां से चुनाव लड़ाया था लेकिन हार का मुंह देखना पड़ा।
रामविलास पासवान के छोटे भाई जीते
हाजीपुर
हाजीपुर सीट लोजपा प्रमुख रामविलास पासवान की परम्परागत सीट है। इस चुनाव में वे खड़ा नहीं हुए थे। उनके छोटे भाई पशुपति कुमार पारस ने यहां से चुनाव लड़ा था। पारस ने राजद के शिवचंद्र राम को 2 लाख पांच हजार 449 मतों से हराया।
उजियारपुर
इस सीट पर भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष और मौजूदा सांसद नित्यानंद राय ने रालोसपा के अध्यक्ष उपेन्द्र कुशवाहा को 2 लाख 77 हजार 278 मतों से पराजित कर दिया। कुशवाहा कोइरी बहुल सीट समझ कर यहां चुनाव वड़ने आये थे। लेकिन जनता ने इस बार जाति से ऊपर उठ कर मतदान किया जिससे उपेन्द्र की करारी हार हुई।
समस्तीपुर
समस्तीपुर में लोजपा के रामचंद्र पासवान ने कांग्रेस के अशोक राम को 2 लाख 51 हजार 643 मतों से हरा दिया। रामचंद्र पासवान ने 2014 में भी यहां से चुनाव जीता था। वे रामविलास पासवान के भाई हैं।
खगड़िया
लोजपा ने खगड़िया सीट पर अपना कब्जा बरकरार रखा। मौजूदा सांसद महबूब अली कैसर ने फिर जीत हालिस की। उन्होंने इस बार वीआइपी के मुकेश सहनी को 2 लाख 48 हजार 570 मतों से हराया। मुकेश सहनी को अपने डेब्यू मैच में हार का सामना करना पड़ा। फिल्मी दुनिया से पैसा कमा कर वे पहली बार चुनावी मैदान में उतरे थे। मल्लाह वोट की संख्या देख कर यहां से चुनाव लड़ने आये थे। लेकिन उनको न महागठबंधन का साथ मिला न जाति का।
भागलपुर
भागलपुर पहले भाजपा का गढ़ था। पिछले चुनाव में राजद के बुलो मंडल जीते थे। लेकिन इस बार जदयू ने यहां से चुनाव लड़ा था। जदयू के अजय मंडल ने राजद के बुलो मंडल को 2 लाख 77 हजार 630 मतों से हरा दिया। माय समीकरण के ध्वस्त होने से बुलो मंडल की करारी हार हुई।
बांका
राजद के मौजूदा सांसद जय प्रकाश नारायण यादव इस बार चुनाव हार गये। उनको जदयू के गिरधारी यादव ने 2 लाख 532 मतों से हराया। इस सीट पर भाजपा की बागी और पूर्व सांसद पुतुल देवी ने भी चुनाव लड़ा था। लेकिन कोई प्रभाव नहीं डाल पायीं।
नालंदा
नालंदा सीट पर जदयू ने अपना कब्जा बरकरार रखा। जदयू के कौशलेन्द्र कुमार ने हम के अशोक कुमार आजाद को 2 लाख 56 हजार 137 मतों से हराया। पिछले चुनाव में जदयू का एनडीए से मुकाबला था। कौशलेन्द्र कुमार को लोजपा के खिलाफ तब मुश्किल से जीत मिली थी। लेकिन इस बार उन्होंने एनडीए उम्मीदवार के रूप में शानदार जीत हासिल की।
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पाटलिपुत्र से मीसा हारीं
पाटलिपुत्र
इस बार पाटलिपुत्र सीट पर रोमांचक मुकबला हुआ। कांटे की टक्कर में भाजपा के रामकृपाल यादव ने राजद की मीसा भारती को 39 हजार 321 मतों से हराया। 12वें राउंड तक मीसा भारती आगे चल रही थीं। शुरू में लग रहा था कि लालू यादव की बड़ी बेटी इस बार चुनाव जीत जाएंगी। लेकिन 13 वें राउंड की गिनती शुरू होते ही स्थिति बदलने लगी। रामकृपाल को एक बार बढ़त मिली तो अंत तक कायम रही। आखिरकार रामकृपाल यादव जीत गये। वे बिहार में भाजपा का यादव चेहरा हैं। इस लिए नरेन्द्र मोदी ने उनको मंत्री बनाया। रामकृपाल के लिए नरेन्द्र मोदी ने चुनाव प्रचार भी किया था। इस जीत से भाजपा को बहुत राहत मिली।
आरा
केन्द्रीय मंत्री और भाजपा के उम्मीदवार राज कुमार सिंह ने इस सीट पर अपना कब्जा कायम रखा। उन्होंने भाकपा माले के राजू यादव को 1 लाख 47 हजार 285 मतों के अंतर से हराया। राजद ने अपने कोटे की यह सीट भाकपा माले की दी थी। पिछले चुनाव में राजद और माले ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था। लेकिन इस बार भाजपा को हराने के लिए दोनों एक हुए फिर भी जीत न मिली। राज कुमार सिंह पहले से अधिक मतों से जीते।
बक्सर
केन्द्रीय मंत्री और भाजपा के उम्मीदवार अश्विनी चौबे ने अपनी यह सीट कायम रखी। उन्होंने राजद के जगदानंद सिंह को 1 लाख 17 हजार 609 मतों से हराया।
सासाराम
भाजपा के छेदी पासवान ने कांग्रेस की मीरा कुमार को 1 लाख 65 हजार 745 मतों से हरा कर फिर जीत हासिल की। कभी यह सीट भारत के उपप्रधानमंत्री जगजीवन राम की वजह से चर्चा में रहती थी। उन्होंने यहां से लगातार आठ बार जीत हासिल की थी। मीरा कुमार उसी दिग्गज नेता जगजीवन राम की पुत्री हैं। वे खुद यहां से सांसद रह चुकी हैं। लोकसभा का स्पीकर रह चुकी हैं। लेकिन पिछले दो चुनावों से उनकी किस्मत रुठी हुई है।
कुशवाहा भी हारे
काराकाट
पूर्व केन्द्रीय मंत्री और रालोसपा प्रमुख उपेन्द्र कुशवाहा को पाला बदलने की कीमत चुकानी पड़ी। कुशवाहा को जदयू के महाबली सिंह ने 84 हजार 542 मतों से हरा दिया। 2014 में कुशवाहा ने एनडीए उम्मीदवार के रूप में यहां से चुनाव लड़ा था और महाबली सिंह को हराया था। इस बार उपेन्द्र कुशवाहा एनडीए छोड़कर महागठबंधन में चले गये थे। उन्होंने काराकाट तो गंवाया ही उजियारपुर भी हार बैठे।
औरंगाबाद
औरंगाबाद सीट पर भाजपा का कब्जा बरकरार रहा। भाजपा के सुशील कुमार सिंह ने हम के उपेन्द्र प्रसाद को 72 हजार 607 मतों से हरा दिया। उपेन्द्र प्रसाद पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ रहे थे। पहले वे जदयू में थे। विधान पार्षद थे। बाद में टिकट के जुगाड़ में जीतन राम मांझी के साथ हो लिये। इस सीट पर कांग्रेस के निखिल कुमार का दावा था। लेकिन महागठबंधन के दांवपेंच ने उपेन्द्र प्रसाद को यहां उम्मीदवार बना दिया।
गया
गया सीट पर जदयू ने पहली बार कब्जा जमाया है। पहले यह भाजपा की परम्परागत सीट थी। इस बार जदयू के विजय मांझी ने हम प्रमुख और पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी को 1 लाख 52 हजार 426 मतों से हरा दिया। राहुल गांधी की सभा भी मांझी के काम न आयी।
नवादा
नवादा में लोजपा के चंदन सिंह ने राजद की विभा देवी 1 लाख 48 हजार 72 मतों से हरा दिया। चंदन सिंह बिहार के बाहुबली नेता सूरजभान के भाई हैं। जब कि विभा देवी राजद के पूर्व विधायक राजवल्लभ यादव की पत्नी हैं। राजवल्लभ यादव नाबालिग से रेप के जुर्म में उम्रकैद की सजा काट रहे हैं। इस सजा की वजह से राजवल्लभ को विधायकी भी गंवानी पड़ी। विभा देवी का राबड़ी देवी ने प्रचार किया था लेकिन कोई चुनावी लाभ नहीं मिला।
जमुई
जमुई में चिराग पासवान ने लगातार दूसरी बार जीत हासिल की। उन्होंने रालोसपा के भूदेव चौधरी को 2 लाख 41 हजार 49 मतों से हराया। चिराग ने पिछले चुनाव के मुकाबले दोगुने से अधिक मतों से जीत हासिल की।
सारण (छपरा)
पूर्व केन्द्रीय मंत्री और भाजपा उम्मीदवार राजीव प्रताप रूड़ी ने इस सीट फिर जीत हासिल की। उन्होंने राजद के चंद्रिका राय को 1 लाख 38 हजार वोटों से हराया। चंद्रिका राय लालू यादव के समधी हैं। राजद के लिए यह प्रतिष्ठा की सीट थी। लालू यादव यहां से चार बार सांसद चुने गये थे। तेजप्रताप यादव ने ससुर चंद्रिका राय की उम्मीदवारी का विरोध किया था। राजद को इससे नुकसान उठाना पड़ा। राजीव प्रताप रूडी ने 2014 में इस सीट पर राबड़ी देवी को हराया था।
महाराजगंज
महाराजगंज सीट पर भाजपा के जनार्दन सिंह सिग्रीवाल ने अपना कब्जा बरकार रखा। उन्होंने राजद के रणधीर सिंह को 2 लाख 30 हजार 772 मतों से हराया। रणधीर सिंह राजद के बाहुबली नेता प्रभुनाथ सिंह के पुत्र हैं।
सीवान
सीवान में जदयू की कविता सिंह ने राजद की हीना शहाब को 1 लाख 16 हजार 958 मतों से हराया। 2014 में इस सीट पर भाजपा के ओमप्रकाश यादव जीते थे। लेकिन इस बार ये सीट जदयू को मिली थी। कविता सिंह के पति अजय सिंह सारण इलाके बाहुबली हैं। दूसरी तरफ हीना शहाब के पति मोहम्मद शहाबुद्दीन भी बिहार के चर्चित बहुबली रहे हैं। अभी वे हत्या के जुर्म में सजा काट रहे हैं।
गोपालगंज
गोपालगंज में जदयू के डॉ. आलोक कुमार सुमन ने राजद के सुरेन्द्र राम को 2 लाख 86 हजार 434 मतों से हराया। अलोक कुमार पेशे से चिकित्सक हैं। उन्होंने पहली बार चुनाव लड़ा और जीत हासिल की।
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लोजपा की वीणा देवी से हारे राजद के रघुवंश प्रसाद सिंह
वैशाली
इस सीट पर लोजपा की वीणा देवी ने राजद के वरिष्ठ नेता रघुवंश प्रसाद सिंह को 2 लाख 34 हजार 584 मतों से हराया। रघुवंश प्रसाद सिंह जैसे नेता का इतने अधिक मतों से हारना बहुत हैरान करने वाला है। वे जमीनी नेता है। कहा जाता है राजपूत जाति से आने के बाद भी उन्होंने सवर्ण आरक्षण का विरोध किया था। उन्हें इसका खामियाजा भुगतना पड़ा।
मुजफ्फरपुर
मुजफ्फरपुर सीट पर भाजपा के अजय निषाद लगातार दूसरी बार जीतने में सफल रहे। उन्होंने वीआइपी के डॉ. राजभूषण चौधरी को 4 लाख 9 हजार 988 मतों के अंतर से हराया। डॉ. राजभूषण चौधरी पहली बार चुनाव लड़ रहे थे। निषाद बहुल सीट होने के बाद भी राजभूषण चौधरी को फायदा नहीं मिला।
दरभंगा
भाजपा के गोपालजी ठाकुर पहली बार मैदान में उतरे और जीत का परचम फहरा दिया। उन्होंने राजद के अब्दुल बारी सिद्दीकी को 2 लाख 67 हजार 989 मतों के अंतर से हराया। 2014 में इस सीट पर भाजपा के कीर्ति आजाद जीते थे। भाजपा से बगावत करने के बाद वे कांग्रेस में चल गये। कांग्रेस ने उन्हें धनबाद सीट से लड़ाया जहां उनकी हार हो गयी।
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शरद यादव को मिली हार
मधेपुरा
इस सीट पर जदयू के दिनेश चंद्र यादव ने दो दिग्गजों को पछाड़ कर जीत हासिल की। दिनेश चंद्र ने राजद के शरद यादव को 3 लाख 1 हजार 527 मतों के अंतर से हराया। 2014 में इस सीट पर पप्पू यादव राजद के टिकट पर जीते थे। राजद से विवाद होने पर उन्होंने यहां अलग चुनाव लड़ा। लेकिन वे तीसरे स्थान पर फिसल गये।
पूर्णिया
जदयू के संतोष कुशवाहा ने इस सीट पर लगातार दूसरी बार जीत हासिल की। उन्होंने कांग्रेस के उदय सिंह को 2 लाख 63 हजार 461 मतों से हराया। 2014 में उदय सिंह भाजपा के टिकट पर लड़े थे लेकिन संतोष कुशवाहा से हार गये थे।
कटिहार
जदयू के दुलालचंद गोस्वामी ने कांग्रेस के तारिक अनवर को 57 हजार 203 मतों से हराया। 2014 के चुनाव में तारिक अनवर एनसीपी के टिकट पर यहां से जीते थे। लेकिन इस चुनाव के पहले वे कांग्रेस में शामिल हो गये। उनके लिए राहुल गांधी ने चुनावी सभा तक की थी । फिर भी वे हार गये।
किशनगंज
महागठबंधन को जो एकलौती सीट मिली है वह किशनगंज ही है। यहां कांग्रेस के डॉ. जावेद ने जदयू के महमूद अशरफ को 34 हजार 466 मतों से हराया। आजतक किशनगंज में किसी हारे हुए उम्मीदवार को 3 लाख से अधिक वोट नहीं मिले थे। लेकिन इस बार जदयू ने यहां जोरदार मुकाबला दिया और तीन लाख से अधिक वोट हासिल किये।
अररिया
भाजपा ने अररिया सीट राजद से छीनी है। भाजपा के प्रदीप कुमार सिंह ने राजद सके सरफराज आलम को 1 लाख 37 हजार 241 मतों से हराया। 2014 में इस सीट पर राजद के तस्लीमुद्दीन जीते थे। उनके निधन के बाद उपचुनाव हुआ तो तस्लीमुद्दीन के पुत्र सरफराज ने जीत हासिल की। लेकिन इस बार भाजपा ने यह सीट राजद से छीन ली है।
सुपौल
जदयू ने सुपौल सीट कांग्रेस से छीनी है। जदयू के दिलेश्वर कामत ने कांग्रेस की रंजीत रंजन को 2 लाख 66 हजार 853 मतों से हराया। 2014 में रंजीत रंजन यहां से जीती थीं। उनके पति पप्पू यादव खुद मधेपुरा से जीते थे। पति-पत्नी दोनों संसद पहुंचे थे। वेकिन इस बार दोनों की हार हो गयी है। राहुल गांधी की सभा के बाद भी रंजीत रंजन जीत हासिल नहीं कर सकीं।
झंझारपुर
झंझारपुर में जदयू के रामप्रीत मंडल ने राजद के गुलाब यादव को 3 लाख 22 हजार 951 मतों से हराया। रामप्रीत पहली बार चुनाव मैदान में उतरे और सफल रहे।
सीतामढ़ी
सीतामढ़ी में जदयू के सुनील कुमार पिंटू ने राजद के अर्जुन राय को 2 लाख 50 हजार 539 मतों से हराया। सुनील कुमार पहले भाजपा में थे। लेकिन ऐन चुनाव के पहले जदयू ने अपने प्रत्याशी बदल दिया तो सुनील कुमार चुनाव लड़ने के लिए जदयू में आ गये। उनको शानदार जीत मिली। जब कि अर्जुन राय पहले जदयू में थे। लेकिन बाद में राजद में चले गये। उनका दल बदलना नुकसानदेह रहा।
शिवहर
भाजपा ने इस सीट पर अपना कब्जा बरकरार रखा। भाजपा की रमा देवी ने राजद के सैयद फैजल अली को 3 लाख 40 हजार 360 मतों से हराया। सैयद फैजल पूर्व पत्रकार हैं। पहली बार चुनाव मैदान में उतरे लेकिन हार का सामना करना पड़ा। इस सीट पर तेजप्रताप यादव के विरोध से भी राजद को नुकसान हुआ।
पूर्वी चम्पारण
केन्द्रीय मंत्री और भाजपा उम्मीदवार राधामोहन सिंह ने इस सीट पर अपना कब्जा बरकरार रखा। उन्होंने रालोसपा के आकाश सिंह को 2 लाख 96 हजार 348 मतों से हराया। आकाश सिंह, कांग्रेस के सांसद अखिलेश प्रसाद सिंह के पुत्र हैं। आकाश पर जोड़तोड़ कर टिकट हासिल करने का आरोप लगा था। इसे उपेन्द्र कुशवाहा का गलत फैसला माना जा रहा था। आखिरकार यहां रालोसपा के आकाश सिंह की हार हुई।
पश्चिमी चम्पारण
इस सीट पर भाजपा के संजय जायसवाल ने फिर जीत का परचम लहाराया। उन्होंने रालोसपा के ब्रजेश कुशवाहा को 2 लाख 93 हजार 906 मतों से हराया। ब्रजेश पहली बार चुनाव लड़ रहे थे। ब्रजेश को टिकट दिये जाने पर उपेन्द्र कुशवाहा का विरोध भी हुआ था।
वाल्मीकि नगर
इस सीट पर जदयू के वैद्यनाथ महतो ने कांग्रेस के शाश्वत केदार को 3 लाख 54 हजार 616 मतों से हराया। 2014 में इस सीट पर भाजपा के सतीश चंद्र दूबे जीत थे। लेकिन इस बार ये सीट जदयू के खाते में चली गयी। वैद्यनाथ महतो 2009 में भी यहां से जीत चुके हैं। कांग्रेस प्रत्याशी शाश्वत केदार पहली बार चुनाव मैदान में उतरे थे। उनके दादा केदार पांडेय बिहार के मुख्यमंत्री रहे थे। पिता मनोज पांडेय सांसद रहे थे। लेकिन समृद्ध राजनीतिक पृष्ठभूमि भी शाश्वत के काम न आयी।