Lok Sabha Election Results 2019: जानिए वो 5 वजह जिस कारण स्मृति ईरानी से हारे राहुल गांधी
अमेठी। उत्तर प्रदेश की अपनी परंपरागत अमेठी लोकसभा सीट से अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी भाजपा उम्मीदवार स्मृति ईरानी से हार स्वीकार कर ली है। उन्होंने कहा है कि अमेठी की जनता ने फैसला दे दिया है। मैं चाहता हूं कि स्मृति ईरानी अमेठी की प्यार से देखभाल करें। आपको बता दें कि इस लोकसभा सीट को कांग्रेस के अभेद्य दुर्ग के रूप में जाना जाता था। आखिर स्मृति ईरानी कैसे कांग्रेस के किले को ध्वस्त करने में कामयाब हुईं? आइए जानते हैं उन 5 बड़े कारणों को
नरेंद्र मोदी ने कहा छोटी बहन
न्यूज 18 की खबर के अनुसार 2014 में जब पहली बार स्मृति ईरानी चुनाव लड़ने अमेठी पहुंची थीं तो एक बात ने सभी का ध्यान वहां खींचा था। जिले में एक चुनावी रैली के दौरान तब के बीजेपी के पीएम प्रत्याशी नरेंद्र मोदी ने कहा था कि स्मृति उनकी छोटी बहन की तरह हैं। एक लोकप्रिय पीएम कैंडिडेट द्वारा यह बात कहे जाने के बाद पूरे देश में इसे लेकर खूब चर्चाएं हुई थीं। कहा जाता है कि अमेठी में उस बार नरेंद्र मोदी की उस रैली का बहुत असर पड़ा था और राहुल गांधी अब तक के सबसे छोटे अंतर से जीते थे।
अमेठी में गांधी परिवार
अमेठी गांधी पारिवार की पारंपरिक सीट मानी जाती है। लंबे समय से यह सीट परिवार के पास है। इस सीट पर 2019 से पहले हुए सभी लोकसभा चुनावों में सिर्फ एक बार बीजेपी जीत हासिल कर सकी थी। 1999 से यह सीट पहले सोनिया गांधी फिर राहुल गांधी के पास रही है। माना जा रहा है कि लंबे समय से गांधी परिवार के पास यह सीट रही है, इस वजह से जनता ने यहां से बदलाव का मूड बनाकर वोट किया। हालांकि ऐसा माना जाता है कि अमेठी के लोग गांधी परिवार से अपनी नजदीकी मानते हैं, लेकिन इसके बावजूद इस बार राहुल गांधी को हार का सामना करना पड़ा।
बीजेपी के निशाने पर था अमेठी
भारतीय राजनीति में प्रतीकों का बेहद महत्व रहा है। अमेठी की सीट पर कांग्रेस अध्यक्ष की हार सामान्य हार के तौर पर नहीं याद की जाएगी। बीजेपी इस बात को जानती है। इसी वजह से लगातार इस सीट को लेकर फोकस बनाए रखा गया। बीते पांच सालों के दौरान बीजेपी की तरफ से इस सीट पर लगातार निगाह रखी गई। 2014 की हार को 2019 में जीत में तब्दील करने के लिए सारी जान झोंकी गई। स्मृति ईरानी के लगातार दौरे। सामान्य तौर पर देखा जाता है कि जिस सीट पर उम्मीदवारों की हार हो जाती है वहां पर उनकी सक्रियता कम हो जाती है, लेकिन स्मृति का मामला इससे अलग है। 2014 की 'छोटी हार' ने एक तरीके से उनके हौसले को बढ़ा दिया था। पांच सालों में उन्होंने 42 बार अमेठी के दौरे किए। स्थानीय कार्यकर्ताओं में यह भरोसा जगाया कि इस सीट से भी कांग्रेस को हराया जा सकता है। एक वेबसाइट में प्रकाशित एक रिपोर्ट में बीजेपी के स्थानीय नेता कहते हैं कि 2014 में स्मृति ने अमेठी में सिर्फ 15 दिन गुजारे थे। उन्हें यहां के लोगों का भरपूर स्नेह मिला था। चुनाव प्रचार के दौरान स्मृति ईरानी ने राहुल गांधी को लापता सांसद भी कहा था। स्थानीय बीजेपी नेता बताते हैं कि स्मृति ईरानी ने मोदी सरकार की योजनाओं को क्षेत्र में पहुंचाने के बहुत से प्रयास किए।
विकास का पहिया कमजोर
अमेठी के बारे में एक शिकायत यह भी की जाती है कि लंबे समय से इस क्षेत्र ने गांधी परिवार को लोकसभा भेजा, लेकिन ये इलाका विकास मापदंडों पर पिछड़ा रहा। राहुल गांधी इस सीट पर 2004 से लगातार जीतते रहे, लेकिन जब विकास की बात हुई तो अमेठी हमेशा पिछली पायदान पर ही खड़ा दिखाई दिया। स्थानीय लोगों में इस बात को लेकर एक आम राय हुई। बीजेपी ने इस दौरान अपना कनेक्ट यहां की जनता से बढ़ाने की कोशिश की जिसका नतीजा स्मृति ईरानी की जीत के रूप में नजर आया।
पूरे यूपी में ढहा कांग्रेस का किला
बात महज अमेठी की नहीं है. पूरे उत्तर प्रदेश में ही कांग्रेस किला भरभरा गया है। कभी यूपी कांग्रेस का गढ़ हुआ करता था। लेकिन बीते कुछ दशकों के दौरान पार्टी की पकड़ इस राज्य में बेहद कमजोर हुई है। दो दशकों से ज्यादा समय तक सपा और बसपा ने यूपी की राजनीति पर राज किया। लेकिन 2014 में बीजेपी की प्रचंड कामयाबी के बाद तो चौथे पायदान पर नजर आ रही है। पूरे प्रदेश में सिर्फ रायबरेली की एक सीट पर पार्टी को जीत नसीब हो पाई। महागठबंधन और बीजेपी के बीच सीधा मुकाबला दिखाई दिया। भले ही कांग्रेस ने चुनाव प्रचार में सभी का ध्यान खींचा हो, लेकिन ये वोटों में तब्दील नहीं हो पाया।