क्विक अलर्ट के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
For Daily Alerts
Oneindia App Download

हताश लालू 2015 में तो उबर गये थे लेकिन अब क्या होगा?

By अशोक कुमार शर्मा
Google Oneindia News

पटना। लालू यादव 2010 के बाद भी घोर निराशा में घिर गये थे। चुनावी हार हुई। चारा घोटला में सजायाफ्ता हुए। 2024 तक लालू चुनाव लड़ने के काबिल न रहे। लालू के बिना राजद का क्या होगा, ये सवाल छह साल पहले भी उठा था। लेकिन वक्त का पहिया तेजी से घूमा। लालू यादव तमाम दुश्वारियों के बावजूद एक बार फिर राजनीति ताकत बन कर उभरे। तब और अब में फर्क ये है कि इस बार लालू पहले से अधिक निराश हैं। सेहत भी ठीक नहीं। जेल से कब बाहर आएंगे , यह भी कुछ निश्चित नहीं। सबसे मुश्किल ये कि सफऱ शून्य से शुरू करना है।

हताश लालू 2015 में तो उबर गये थे लेकिन अब क्या होगा ?

बिन सत्ता सब सून
2009 के लोकसभा चुनाव में यूपीए की तो वापसी हुई लेकिन लालू यादव को बहुत नुकसान उठाना पड़ा था। कुल चार सांसद ही जीत पाये थे। लालू यादव खुद पाटलिपुत्र में चुनाव हार गये थे। ये तो गनिमत थी कि उन्होंने छपरा से भी चुनाव लड़ा था। छपरा में उनकी जीत हुई थी। किसी तरह वो लोकसभा में पहुंचे थे। उन्होंने केन्द्र में यूपीए सरकार को समर्थन तो दिया था लेकिन उन्हें सरकार में शामिल नहीं किया गया था। इस बीच 2010 के विधानसभा चुनाव में भी लालू यादव की करारी हार हुई। राजद 22 सीटों पर सिमट गया। नीतीश की जोरदार वापसी हुई। लालू परिवार पहली बार बिना सत्ता की स्थिति में आ गया। न केन्द्र में पावर, न बिहार में पावर।

<strong>इसे भी पढ़ें:- अगर राहुल गांधी ने दिया इस्तीफा तो कौन होगा कांग्रेस अध्यक्ष, ये हैं वो 4 नाम </strong>इसे भी पढ़ें:- अगर राहुल गांधी ने दिया इस्तीफा तो कौन होगा कांग्रेस अध्यक्ष, ये हैं वो 4 नाम

निराश लालू शिफ्ट हो गये दिल्ली

निराश लालू शिफ्ट हो गये दिल्ली

2010 में पहली बार ऐसी स्थिति आयी थी कि लालू यादव सत्ता के गलियारे से बाहर हु्ए थे। 2005 में जब नीतीश ने बिहार में राबड़ी देवी को सरकार से बेदखल किया था उस समय लालू केन्द्र में रेल मंत्री थे। कम से कम एक जगह वे सरकार का हिस्सा थे। लेकिन 2010 में केन्द्र और राज्य, दोनों जगहों पर वे सत्ताविहीन हो गये। राजनीति में उनका जो भी प्रभाव रह गया था वह सांसद के रूप में ही था। सत्ता के शीर्ष रहने वाले नेता का यूं सिमट जाना बहुत पीड़ादायक था। हताश और निराश लालू पटना से दिल्ली शिफ्ट हो गये। उनका पूरा परिवार दिल्ली के सरकारी बंगले में आ गया। 2012 तक लालू यादव दिल्ली में रमे-जमे रहे। कभी-कभार पटना आते। राजद को उन्होंने स्थानीय नेताओं के भरोसे छोड़ दिया था। ऐसी स्थिति में विपक्षी दल के रूप में राजद की सक्रियता बहुत कम हो गयी। लालू परिवार पटना से इस कदर दूर हो गया था कि 2012 में राबड़ी देवी ने दिल्ली में ही छठ पूजा की थी। अब तक राबड़ी देवी पटना में छठ पूजा करती रही थीं। लेकिन बदली हुई परिस्थितियों में उन्होंने लालू यादव के दिल्ली स्थित सरकारी आवास पर पूजा की। राजद बिहार की राजनीति में गौण होते जा रहा था।

अक्टूबर 2013 में सजायाफ्ता होने से निराशा और बढ़ी

अक्टूबर 2013 में सजायाफ्ता होने से निराशा और बढ़ी

चारा घोटाला मामले में सीबीआइ की विशेष अदालत ने 3 अक्टूबर 2013 को लालू य़ादव को पांच साल कैद की सजा सुनायी। इसके बाद लालू यादव की सांसदी भी खत्म हो गयी। लालू को फिर जेल जाना पड़ा। राजद में गहन अंधकार छा गया। इस समय तेजप्रताप और तेजस्वी की उम्र कम थी। वे चुनाव लड़ने के काबिल नहीं हुए थे। ऐसे में सवाल पैदा हुआ कि लालू के बाद राजद को कौन संभालेगा ? वरिष्ठ नेताओं के सहयोग से किसी तरह राबड़ी देवी ने पार्टी संभाली। लालू यादव ने अपने निकट सहयोगी और विधायक भोला यादव के जरिये जेल से ही पार्टी की व्यवस्था बनाये रखने की कोशिश की। कुछ समय के बाद लालू यादव जमानत पर जेल से बाहर आये। सांसदी खत्म होने के बाद अब लालू के पास कोई पावर नहीं रह गया था। लालू कमजोर हो रहे थे। इस बीच राजद में आंतरिक मतभेद शुरू हो गये थे।

राजद में विद्रोह

राजद में विद्रोह

जून 2013 में नीतीश कुमार बीजेपी से अलग हो गये थे। उनकी सरकार अल्पमत में आ गयी थी जो कांग्रेस और निर्दलीय विधायकों के बल पर चल रही थी। अभी दो साल और सरकार चलानी थी जिसके लिए जदयू को बहुमत की दरकार थी। राजद के कुछ असंतुष्ट विधायक नीतीश के सम्पर्क में थे। इस बीच फरवरी 2014 में राजद के 22 विधायकों में से 13 ने विद्रोह कर दिया। बागियों के नेता थे सम्राट चौधरी चौधरी। नीतीश के समर्थक और विधानसभा के स्पीकर उदयनारायण चौधरी ने आनन-फानन में राजद के 13 विधायकों को अलग गुट के रूप में मान्यता दे दी। उस समय लालू यादव दिल्ली में थे। वे दौड़े-दौड़े पटना लौटे। स्पीकर के फैसले के खिलाफ विधानसभा मार्च किया। हंगामा हुआ। इस घटना ने लालू को झकझोर दिया। वे जैसे नींद से जागे। वे पटना में फिर से जमे। 13 में से 8 विधायक लालू के पाले में लौट आये। पांच विधायक नीतीश के पाले में चले गये। लालू ने इस तोड़फोड़ के लिए नीतीश को जिम्मेवार ठहराया और खूब खरी खोटी सुनायी। लालू-नीतीश में सियासी दुश्मनी और बढ़ गयी।

हार से निकला जीत का रास्ता

हार से निकला जीत का रास्ता

2014 के लोकसभा चुनाव में लालू यादव और नीतीश कुमार ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था। दोनों की करारी हार हुई। लालू चार तो नीतीश दो सीट पर सिमट गये। एनडीए की शानदार जीत हुई। सत्ता में रहते नीतीश ने ऐसी दुर्गति की कल्पना नहीं की थी। लालू यादव को भी अपनी जमीन खिसकती दिखी। इस करारी हार ने दो दुश्मनों को कुछ नया सोचने के लिए बाध्य किया। राजद और जदयू का सम्मिलित मत प्रतिशत, विजयी एनडीए से अधिक था। इस चुनावी सूत्र ने लालू -नीतीश को फिर एक कर दिया। 2015 के विधानसभा चुनाव के समय लालू, नीतीश को नेता नहीं मान रहे थे। लेकिन उनको अपने पुत्रों को राजनीति में स्थापित करने की चिंता खाये जा रही थी। वे खुद चुनाव नहीं लड़ सकते थे। इस लिए नीतीश को नेता मानना उनकी मजबूरी थी। फिर उनको लग रहा था कि अगर नीतीश के साथ लड़े तो उनके पुत्र विधायक बन सकते हैं। उधर नीतीश भी भाजपा का हराने के लिए कोई मजबूत कंधा खोज रहे थे। राजद उनके लिए वाजिब विकल्प था। मजबूरी में दोनों एक हुए। लेकिन फिर इसके बाद कमाल हो गया। नीतीश मुख्यमंत्री बने तो हाशिये पर सिमट गया राजद अरसे बाद सत्ता में लौट आया। बीमार राजद में एक नयी जान आ गयी। लेकिन दो साल बाद ही राजद फिर एक बार निराशा के गहरे कुएं में गिर गया है। इस बार तो पार्टी के तारणहार लालू भी साथ नहीं हैं।

अपने राज्य की विस्तृत चुनावी खबरें पढ़ने के लिए क्लिक करें

Comments
English summary
Lok Sabha Election Results 2019: disappointed Lalu Prasad Yadav was recovered in 2015 but what will happen now.
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
For Daily Alerts
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X