नीतीश क्यों बनना चाहते हैं BJP के 'बड़े भाई', ये हैं चार बड़ी वजह
जेडीयू ने इशारों-इशारों में जता दिया है कि लोकसभा चुनाव में नीतीश कुमार बिहार में बड़े भाई की भूमिका में होंगे, यानी सीटों के बंटवारे में बड़ा हिस्सा जेडीयू का ही होगा।
नई दिल्ली। 2019 के सियासी संग्राम का बिगुल बजने से पहले ही एनडीए के कुनबे में खींचतान की खबरें सामने आने लगी हैं। 9 महीने पहले ही महागठबंधन से नाता तोड़, भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाने वाली जेडीयू ने इशारों-इशारों में जता दिया है कि लोकसभा चुनाव में नीतीश कुमार बिहार में बड़े भाई की भूमिका में होंगे, यानी सीटों के बंटवारे में बड़ा हिस्सा जेडीयू का ही होगा। अगर ठीक से पड़ताल करें तो भाजपा के प्रति नीतीश कुमार के इस नए बदले हुए रुख की चार बड़ी वजहें हैं।
1:- नीतीश को अंदेशा, भाजपा नहीं देगी ज्यादा सीटें
महागठबंधन में शामिल होने से पहले नीतीश कुमार जब एनडीए का हिस्सा थे तो उन्हें बड़े भाई का दर्जा मिला हुआ था। 2010 के विधानसभा चुनाव में जेडीयू को चुनाव लड़ने के लिए कुल 243 सीटों में से 141 सीटें मिली, जबकि भाजपा को महज 102 सीटें ही मिली। 2015 में दोनों अलग-अलग चुनाव लड़े और भाजपा ने 157 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे, जबकि महागठबंधन में शामिल नीतीश को महज 101 सीटें चुनाव लड़ने के लिए मिलीं। 2009 के लोकसभा चुनाव में भी बिहार की 40 सीटों में से 25 भाजपा ने नीतीश कुमार को दी। फिलहाल बिहार के 40 में से 31 सांसद एनडीए के हैं, जिनमें अकेले भाजपा के 22 सांसद हैं। इन हालातों में नीतीश को एनडीए में कम सीटें मिलने का अंदेशा है, इसीलिए भाजपा के वर्तमान 'तनावपूर्ण हालातों' मे वो दबाव बनाकर पहले से ही अधिक सीटों पर दावेदारी ठोंकना चाहते हैं।
2:- सिद्धांतवादी नेता की छवि में लौटने की तैयारी
2013 में नीतीश ने भाजपा की ओर से नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का दावेदार बनाए जाने पर 'सिद्धांतों से समझौता नहीं' कहकर एनडीए से संबंध तोड़ लिए थे। इसके बाद पिछले साल नीतीश यह कहकर कि वह भ्रष्टाचार के खिलाफ अपनी लड़ाई से समझौता नहीं कर सकते, आरजेडी और कांग्रेस से संबंध तोड़कर फिर से भाजपा के साथ चले गए। इस पूरे घटनाक्रम से नीतीश कुमार की सिद्धांतवादी नेता की छवि को धक्का लगा था। अब, 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले नीतीश ने बिहार के लिए विशेष राज्य के दर्जे की मांग फिर से तेज कर दी है। सीटों पर चल रहे ताजा घमासान में नीतीश किसी तरह दबाव बनाकर बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिलाकर फिर से अपनी सिद्धांतवादी छवि को उभारना चाहते हैं।
3:- पीएम बनने की इच्छा का पुनर्जन्म
बिहार में आरजेडी और कांग्रेस के साथ जेडीयू का नाता टूटने से पहले तक सियासी गलियारों में यह चर्चा जोर-शोर से थी कि नीतीश कुमार 2019 में विपक्ष की ओर से प्रधानमंत्री पद के प्रबल उम्मीदवार होंगे। एनडीए में शामिल होने के साथ ही नीतीश कुमार ने परोक्ष रूप से प्रधानमंत्री पद की दावेदारी पूरी तरह से नरेंद्र मोदी को सौंप दी थी। अब, जब हाल के उपचुनावों में भाजपा का प्रदर्शन गिरा है और उसके कई सहयोगी दल उससे नाता तोड़कर अलग हो चुके हैं, तो ऐसे में सियासी जानकारों का कहना है कि नीतीश कुमार ज्यादा से ज्यादा सीटों को जेडीयू के हिस्से में डालकर, कहीं ना कहीं पीएम बनने की संभावना की भी जीवित रखना चाहते हैं।
4:- राजनीतिक कद बढ़ाने की तैयारी
2015 में बिहार में लालू प्रसाद यादव के साथ मिलकर सरकार बनाने के बाद नीतीश ने संघ मुक्त भारत की बात कही थी। 'कांग्रेस मुक्त भारत' के जवाब में नीतीश ने भाजपा की विचारधारा का विरोध करते हुए खुले मंच से 'संघ मुक्त भारत' का नारा दिया था। इससे विपक्ष में नीतीश की एक अलग छवि बनी थी। एनडीए में जाने के साथ ही नीतीश को अपने इस नारे को त्यागना पड़ा, जिसकी वजह से सेक्युलर ब्रिगेड के नेताओं में नीतीश का कद काफी घट गया। बिहार में तेजस्वी के लगातार बढ़ते प्रभाव, जिसे लेकर हाल ही में भाजपा सांसद शत्रुघ्न सिन्हा ने भी नीतीश को आगाह किया था, के बीच नीतीश कुमार बिहार में खुद को 'बड़ा भाई' बनाकर और ज्यादा सीटें हासिल कर अपना राजनीतिक कद बढ़ाना चाहते हैं।