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महागठबंधन में मायावती को मुंहमांगी सीटें देने को क्यों तैयार हैं अखिलेश, कहीं ये वजह तो नहीं

मायावती को साथ लेकर अखिलेश यूपी में एक और बड़ा दांव खेलना चाहते हैं।

By धर्मेंद्र कुमार
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नई दिल्ली। सपा अध्यक्ष और यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव स्पष्ट तौर पर ऐलान कर चुके हैं कि 2019 के लोकसभा चुनावों में भाजपा को हराने के लिए वो खुद 'जूनियर' बनकर भी बसपा सुप्रीमो मायावती के साथ महागठबंधन करेंगे। अखिलेश के इस ऐलान के बाद यूपी में बनने वाले महागठबंधन में मायावती को उनके मन मुताबिक 40 सीटें मिलना तय माना जा रहा है। सूत्रों की मानें तो अखिलेश और मायावती के बीच सीटों के बंटवारे का गणित भी तय हो चुका है। दरअसल अगर गहराई से पड़ताल करें, तो ऐसी तीन बड़ी वजहें हैं, जिनके लिए अखिलेश यादव महागठबंधन में मायावती को मुंहमांगी सीटें देने को तैयार हैं।

मायावती का जिताऊ वोटर

मायावती का जिताऊ वोटर

इस बात में कोई दो राय नहीं है कि देश के तमाम सियासी दलों में केवल बहुजन समाज पार्टी के पास वो वोटर है, जो मायावती के कहने भर से किसी भी दूसरी पार्टी को ट्रांसफर हो सकता है। गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा उपचुनाव में भाजपा को बिल्कुल अंदाजा नहीं था कि वो सीएम और डिप्टी सीएम की सीटें भी खो सकती है। लगभग अजेय मानी जी रही इन दोनों सीटों पर मायावती ने सपा उम्मीदवारों को समर्थन देने का ऐलान किया और समीकरण बदल गए।

इसके बाद कैराना... जहां मायावती ने खुलकर ना तो आरएलडी उम्मीदवार तबस्सुम हसन को समर्थन देने का ऐलान किया और ना ही अपने वोटरों से किसी तरह की कोई अपील की। वोटिंग से चंद रोज पहले लखनऊ से बसपा के कैडर को गुप्त तौर पर भाजपा के खिलाफ वोट करने का इशारा मिला और कैराना में सारे पासे पलट गए। सियासत के गहरे जानकार तक इस बात से हैरान हैं कि बिना मायावती के सामने आए, इतनी बड़ी संख्या में दलित वोट महागठबंधन के प्रत्याशी को कैसे मिला। अखिलेश इस बात को अच्छी तरह जानते हैं कि बसपा के वोटर को साथ लेकर चुनाव लड़ना सपा प्रत्याशियों के लिए जीत की गारंटी साबित हो सकता है, इसीलिए वो मंच से खुले तौर पर कह रहे हैं कि महागठबंधन के लिए वो 2-4 सीटों का बलिदान करने को भी तैयार हैं।

एकमुश्त मुस्लिम मतदाता, वोट बंटने का खतरा खत्म

एकमुश्त मुस्लिम मतदाता, वोट बंटने का खतरा खत्म

उत्तर प्रदेश में मुस्लिम आबादी करीब 19 फीसदी है। बिजनौर, मेरठ, मुजफ्फरनगर, सहारनपुर, मुरादाबाद, बलरामपुर, बरेली, श्रावस्ती, अमरोहा, संभल और रामपुर यूपी की वो सीटें हैं, जहां मुस्लिम वोटर 30-35 फीसदी से भी ज्यादा है। 2014 के लोकसभा चुनाव और 2017 के विधानसभा चुनाव में ऐसी कई सीटें थी, जो मुस्लिम बाहुल्य होने के बावजूद भाजपा के खाते में गईं। इसका एकमात्र कारण था, मुस्लिम वोटों का बंटवारा। दरअसल, यह माना जाता रहा है कि किसी भी चुनाव में मुस्लिम समुदाय हमेशा अंतिम वक्त पर फैसला करता है और भाजपा को हराने में सक्षम उम्मीदवार को वोट देता है। इस गफलत में अक्सर मुस्लिम वोटों का बंटवारा हो जाता है। यूपी में मुस्लिमों के सर्वाधिक वोट सपा और बसपा के पास ही हैं। महागठबंधन में इन दोनों दलों के साथ आने से अखिलेश यादव के लिए मुस्लिम वोटों के बंटने का खतरा खत्म होगा।

दलित+मुस्लिम+यादव समीकरण बनाने की तैयारी

दलित+मुस्लिम+यादव समीकरण बनाने की तैयारी

2017 के विधानसभा चुनाव में बसपा प्रमुख मायावती ने करीब 100 मुस्लिम नेताओं को टिकट दिए थे। इस बारे में दिल्ली के एक भाजपा सांसद ने उस वक्त कहा था कि हमें केवल इस बात का डर है कि यूपी में कहीं दलित-मुस्लिम एक साथ ना आ जाएं। हालांकि यूपी चुनाव में दलित+मुस्लिम समीकरण नहीं बन सका और मायावती को हार का सामना करना पड़ा। यूपी में करीब 21 फीसदी दलित मतदाता और लगभग 9 फीसदी यादव वोटर हैं। ऐसे में अखिलेश यादव की कोशिश है कि मायावती से एक कदम और आगे बढ़ते हुए यूपी में दलित+मुस्लिम+यादव समीकरण तैयार किया जाए। कैराना सीट पर अपने मुस्लिम प्रत्याशी को आरएलडी के टिकट पर चुनाव जिताकर अखिलेश पहले ही जाट+मुस्लिम समीकरण का प्रयोग आजमा चुके हैं। मायावती को साथ लेकर अखिलेश यूपी में एक और बड़ा दांव खेलना चाहते हैं।

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English summary
Lok Sabha Election 2019: Why Akhilesh Yadav Ready For Giving More Seat To BSP Chief Mayawati.
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