कांग्रेस ने दिल्ली की नॉर्थ-ईस्ट सीट से 80 वर्ष की शीला दीक्षित को दिया टिकट, जिनका यूपी से भी है अहम रिश्ता
नई दिल्ली। लोकसभा चुनावों के मद्देनजर कांग्रेस पार्टी ने सोमवार को दिल्ली के 6 उम्मीदवारों के नामों का ऐलान कर दिया। कांग्रेस की इस सूची में पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित का नाम भी शामिल है जो नॉर्थ-ईस्ट दिल्ली से लोकसभा चुनाव लड़ेंगी, यहां से बीजेपी ने पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी को टिकट दिया है तो वहीं आम आदमी पार्टी ने दिलीप पांडेय को चुनावी मैदान में उतारा है।
कांग्रेस ने 80 वर्ष की शीला दीक्षित को दिया टिकट
कांग्रेस पार्टी ने एक बार फिर से 80 वर्ष की अपनी वयोवृद्ध नेता पर भरोसा जताया है, नेहरू-गांधी परिवार के बेहद करीब कही जाने वाली शीला दीक्षित के बारे में कांग्रेसी कहते हैं कि भले ही कितने पापड़ बेलने पड़े ये हमेशा संकटों से पार्टी को बाहर निकाल लेती हैं और शायद इसी वजह से कांग्रेस को उनके आगे कोई दिखता ही नहीं।
चलिए जानते हैं कांग्रेस पार्टी में बेहद अहम रोल प्ले करने वाली शीला दीक्षित के अब तक के सफर के बारे में...
'शीला दीक्षित के लिए उम्र सिर्फ एक नंबर है'
15 सालों तक लगातार दिल्ली की सत्ता पर बतौर मुख्यमंत्री राज करने वाली 80 वर्षीय शीला दीक्षित इस वक्त दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी की कमान संभाल रही हैं। गांधी परिवार के बेहद नजदीक कही जाने वाली शीला दीक्षित कांग्रेस की ही नहीं बल्कि सियासत का वो अहम चेहरा है, जिन्होंने हमेशा अपनी बातों और कामों से लोगों को हैरान किया है, अस्सी साल का आंकड़ा पार करने वाली शीला दीक्षित ने अपने काम और चुस्ती-फुर्ती से यह साबित कर दिया है कि उम्र तो सिर्फ एक नंबर है और इच्छा शक्ति प्रबल हो तो आप हमेशा फिट रह सकते हैं।
यह पढ़ें: Bomb Blasts In Sri Lanka : चारों ओर सिर्फ तबाही ही तबाही, तस्वीरें देखकर रो पड़ेंगे आप
जन्म और शिक्षा
शीला दीक्षित का जन्म 31 मार्च, 1938 को पंजाब के कपूरथला में हुआ था। शीला की प्रारंभिक शिक्षा दिल्ली के कान्वेंट ऑफ जीसस एंड मैरी स्कूल से हुई, बाद में उन्होंने स्नातक और कला स्नातकोत्तर की शिक्षा मिरांडा हाउस कॉलेज से हासिल की।
यूपी से भी शीला दीक्षित का है अहम रिश्ता
शीला का यूपी से गहरा संबंध रहा है। शीला दीक्षित का विवाह स्वाधीनता सेनानी और केंद्रीय मंत्रिमंडल के सदस्य रह चुके उमा शंकर दीक्षित के बेटे विनोद दीक्षित से हुआ था, जो कि आईएएस अधिकारी थे, दोनों का प्रेम विवाह हुआ था और इस तरह पंजाब की लड़की यूपी के एक ब्राह्मण परिवार की बहू बन गई, शीला दीक्षित दो बच्चों की मां हैं, उनके बेटे संदीप दीक्षित भी सांसद रह चुके हैं। परिवार के साथ एक रेल यात्रा के दौरान शीला दीक्षित के पति विनोद कुमार दीक्षित की हार्ट अटैक से मौत हो गई थी लेकिन इस गहरे आघात के बाद भी शीला दीक्षित ने ना केवल बखूबी अपने बच्चों और परिवार को संभाला बल्कि अपने ससुर की राजनीतिक विरासत को भी सफलता पूर्वक आगे बढ़ाया।
सियासत का लंबा सफर
राजनीति में आने से पहले वे कई संगठनों से जुड़ी रही हैं और उन्होंने कामकाजी महिलाओं के लिए दिल्ली में दो हॉस्टल भी बनवाए। 1984 से 89 तक वे कन्नौज (उप्र) से सांसद रहीं। इस दौरान वे लोकसभा की समितियों में रहने के साथ-साथ संयुक्त राष्ट्र में महिलाओं के आयोग में भारत की प्रतिनिधि भी रहीं, इसके बाद में वो केन्द्रीय मंत्री भी बनीं, उनका दिल्ली शहर की महापौर से लेकर मुख्यमंत्री तक का सफर काफी शानदार रहा है , दिल्ली प्रदेश कांग्रेस समिति के अध्यक्ष के पद पर रहते हुए शीला दीक्षित ने वर्ष 1998 में कांग्रेस को दिल्ली में बड़ी जीत दिलवाई थी। शीला वर्ष 1998 से 2013 तक तीन कार्यकाल में दिल्ली के मुख्यमंत्री का पद संभाल चुकी हैं, दिल्ली में मेट्रो और भारी संख्या में बने फ्लाईओवर उन्हीं के कार्यकाल की देन माने जाते हैं।
आरोपों के घेरे में भी रही हैं शीला दीक्षित
हालांकि सीएम के रूप में दिल्ली के विकास का श्रेय मिलने के साथ-साथ शीला दीक्षित और उनकी सरकार भ्रष्ट्राचार के गंभीर आरोपों के घेरे में भी रही है , उन पर जेसिका लाल हत्याकांड के मुख्य आरोपी मनु शर्मा को पैरोल पर रिहा करने को लेकर भी आरोप लगे थे। कामनवेल्थ गेम घोटाला और टैंकर स्कैम में उनका नाम आया जिसके बाद आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल ने इसे चुनावी मुद्दा बनाया और साल 2013 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने कांग्रेस और शीला दीक्षित को सत्ता से बेदखल कर दिया।
शीला दीक्षित ने 5 महीने बाद ही राज्यपाल का पद त्याग दिया
हालांकि केजरीवाल ने शपथ ली थी कि सत्ता में आते ही शीला दीक्षित जेल जाएंगी लेकिन अभी तक ऐसा कुछ नहीं हुआ, हालांकि हार के बाद शीला दीक्षित को कांग्रेस हाईकमान ने केरल के राजभवन भेज दिया था लेकिन 2014 में मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद शीला दीक्षित ने 5 महीने बाद ही राज्यपाल का पद त्याग दिया और दिल्ली आ गईं और अभी तक दिल्ली पार्टी की कमान संभाल रही थीं लेकिन अब वो चुनावी रण में उतरने जा रही हैं, देखते हैं कि उन्हें सफलता मिलती है कि नहीं।
यह पढ़ें: लोकसभा चुनाव का विशेष कवरेज