लोकसभा चुनाव 2019: मालवा-निमाड़ में नए चेहरों पर दांव लगाना चाहती है भाजपा
भोपाल। आगामी लोकसभा चुनाव में मध्यप्रदेश की 29 सीटों पर भाजपा और कांग्रेस दोनों ही सही उम्मीदवारों की तलाश में जुटी है। मध्यप्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती चुनाव लड़ने से मना कर चुकी हैं और विदिशा की सांसद सुषमा स्वराज ने भी लोकसभा चुनाव नहीं लड़ने का फैसला किया है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता टिकटों के मामले में वाद-प्रतिवाद कर रहे हैं। कमलनाथ चाहते हैं कि पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह भोपाल से चुनाव लड़ें और भाजपा को चुनौती दें। वहीं ज्योतिरादित्य सिंधिया को गुना के बजाय ग्वालियर से चुनाव लड़ने की चर्चाएं कांग्रेस में है।
मध्यप्रदेश के मालवा-निमाड़ क्षेत्र में भारतीय जनता पार्टी पुराने चेहरों पर दांव लगाने के मूड में नहीं दिखती। इसीलिए नए नामों पर विचार चल रहा है। 22 मार्च को इस बारे में दिल्ली में फैसला होना है। मध्यप्रदेश की चर्चित और विवादास्पद सीटों में से एक खंडवा से टिकट पाने के लिए पूर्व मंत्री अर्चना चिटनिस ऐडी-चोटी का जोर लगा रही हैं। वे इस बारे में प्रदेश भाजपाध्यक्ष और शीर्ष नेताओं से जाकर मिली भी हैं और अपना दावा पेश किया है। भारतीय जनता पार्टी ने अभी अर्चना चिटनिस के बारे में कोई फैसला नहीं किया है।
सुमित्रा महाजन का इंदौर से चुनाव लड़ना लगभग तय
धार, खरगोन, खंडवा, उज्जैन, देवास, शाजापुर और मंदसौर से मौजूदा सांसदों के साथ ही नए चेहरों पर भी विचार करना शुरू कर दिया है। मालवा-निमाड़ में केवल इंदौर की सीट पर ही भाजपा सुमित्रा महाजन को दोबारा चुनाव लड़ाएगी। सुमित्रा महाजन ने बीते कई वर्षों से अपनी राजनीतिक सक्रियता क्षेत्र में बनाए रखी है और वे किसी नए नेता को मौका देने के मूड में नहीं हैं। बहरहाल सुमित्रा महाजन का इंदौर से चुनाव लड़ना लगभग तय है। अगर ऐन मौके पर वे खुद मना कर दें, तो बात अलग है। इंदौर की तरह भोपाल में पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ने के इच्छुक हैं। अगर गौर के खिलाफ दिग्विजय सिंह उम्मीदवार होते हैं, तो भोपाल का चुनाव बेहद दिलचस्प हो जाएगा, जहां दो पूर्व मुख्यमंत्री आमने-सामने होंगे। भोपाल में सरकारी कर्मचारियों और उनके परिवार वालों पर वोटों की संख्या महत्वपूर्ण है। दोनों ही पूर्व मुख्यमंत्रियों का कर्मचारी वर्ग में अच्छा प्रभाव और संपर्क बना हुआ है।
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झाबुआ सीट से किसे मिलेगा मौका
झाबुआ सीट से पूर्व केन्द्रीय मंत्री कांतिलाल भूरिया कांग्रेस की तरफ से चुनाव लड़ेंगे, इसकी पूरी संभावना है। भाजपा यहां से निर्मला भूरिया के बजाय नए व्यक्ति को उम्मीदवार बनाना चाहती है। भाजपा को लगता है कि कांतिलाल भूरिया इस क्षेत्र का कई बार प्रतिनिधित्व कर चुके हैं और क्षेत्र में उनकी अच्छी पकड़ भी है, अगर पार्टी में आंतरिक मतभेद नहीं हुए, तो भूरिया को अच्छे वोट मिलेंगे। निर्मला भूरिया भी कांतिलाल भूरिया की रिश्तेदार हैं, लेकिन उनका राजनीतिक कद कांतिलाल भूरिया की तुलना में छोटा है।
भाजपा नए चेहरे की कर रही तलाश
देवास-शाजापुर सीट से भी भाजपा नए चेहरे की तलाश कर रही है। 2014 में यहां से थावरचंद गेहलोत जीते थे। गेहलोत के शिष्यों ने विगत राष्ट्रपति चुनाव में दलित कार्ड खेलते हुए गेहलोत के नाम की चर्चा भी मीडिया में करवाई थी। बाद में रामनाथ कोविंद को पार्टी ने उचित समझा और समर्थन दिया। इसके बाद गेहलोत खुद को उपेक्षित समझने लगे। उनके परिवार के लोगों के प्रति भी क्षेत्र में असंतोष बढ़ रहा है। देवास में गेहलोत के प्रतिस्पर्धी सज्जन सिंह वर्मा मध्यप्रदेश में लोक निर्माण विभाग मंत्री हैं और दमदार नेता हैं। भाजपा को लगता है कि गेहलोत के बजाय अगर किसी नए व्यक्ति को मौका दिया जाए, तो निर्विवाद होने से पार्टी को फायदा हो सकता है। धार की सीट पर वर्तमान सांसद सावित्री ठाकुर के बजाय रंजना बघेल और गोपाल कनोज की दावेदारी मजबूत नजर आ रही है। खरगोन से सांसद सुभाष पटेल को लेकर भी ऊहापोह की स्थिति है।
भारतीय जनता पार्टी के लिए महत्वपूर्ण रही उज्जैन सीट
भारतीय जनता पार्टी के लिए उज्जैन सीट महत्वपूर्ण रही है। सत्यनारायण जटिया यहां से भाजपा के सशक्त नेता हुआ करते थे। वर्तमान सांसद चिंतामण मालवीय की वैसी पकड़ और पहुंच नहीं है। जैसी जटिया की हुआ करती थी। आरक्षित सीट उज्जैन से भाजपा किसी नए व्यक्ति को मौका दे सकती है।
भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने विधानसभा चुनाव नहीं लड़ा था। पार्टी चाहती है कि वे लोकसभा का चुनाव लड़ें, लेकिन इंदौर में सुमित्रा महाजन के रहते उन्हें टिकट मिलने से रहा। भारतीय जनता पार्टी ने विजयवर्गीय को पश्चिम बंगाल में पार्टी का दायित्व सौंप रखा है। वे इस दुविधा में है कि बंगाल जाकर पार्टी का कार्य करें या खुद लोकसभा चुनाव के लिए टिकट मांगे। पिछले विधानसभा चुनाव में वे बड़ी मुश्किल से अपने बेटे आकाश विजयवर्गीय को इंदौर 3 विधानसभा क्षेत्र से करीब 5 हजार वोट से जितवा पाए थे। उन्हें यह बात समझ में आ गई है कि मुख्यमंत्री बनने का रास्ता दिल्ली से होकर आता है। उमा भारती और शिवराज सिंह चौहान ने पहले दिल्ली की राजनीति की और फिर भोपाल की।
मध्य प्रदेश को लेकर बीजेपी बना रही खास प्लान
कैलाश विजयवर्गीय चाहते हैं कि उन्हें खंडवा या मंदसौर किसी भी सीट से टिकट मिल जाए। इसका फायदा यह होगा कि वे पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस से संघर्ष करने से बच जाएंगे और खुद के लिए भी नई राजनीतिक राह खोज लेंगे। पिछले विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को यह अनुभव हुआ है कि अगर कार्यकर्ता किसी नेता के पक्ष में नहीं हैं और उसे टिकट दे दिया गया, तो नतीजा अच्छा नहीं निकलता। भाजपा के कई मंत्री इसीलिए विधानसभा चुनाव हार गए। अभी भी भाजपा को लगता है कि अगर पुराने मंत्रियों और विधायकों को टिकट देने के बजाय नए चेहरे सामने लाए जाते, तो मध्यप्रदेश में भाजपा की सरकार बन सकती थी। इसीलिए भाजपा मध्यप्रदेश में छाछ भी फूंक-फूंक कर पी रही है।
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