Lockdown:'राम और लक्षमण' दो सगे भाइयों की मदद से 80 कश्मीरी मजदूर J&K रवाना
नई दिल्ली- देश के कई अनेक इलाकों की तरह ही आंध्र प्रदेश में भी जम्मू-कश्मीर के कई मजदूर लॉकडाउन में फंसे थे। लंबे वक्त बीतने के बाद उनकी मुश्किलें बढ़ने लगीं। वो लोग अपने घर वापस जाना चाहते थे। शुरू में तो राज्य सरकार के पास भी कोई उपाय नहीं था। बाद में जब श्रमिक स्पेशल ट्रेनें चलनी शुरू हुईं तो उन कश्मीरी मजदूरों की उम्मीद जाग गई। लेकिन, जब उन्हें पता चला कि ट्रेन पकड़ने से पहले उन्हें 450 किलोमीटर की यात्रा खुद करनी होगी तो वे मायूस हो गए। आंध्र प्रदेश सरकार ने उन्हें बसों में बिठाकर हैदराबाद पहुंचाने का भरोसा तो दिया, लेकिन स्टेट ट्रांसपोर्ट कॉर्पोरेशन के भाड़े के लिए भी 1.82 लाख रुपये मांग लिए। मजदूर खाली हाथ थे। लेकिन, उन्हें घर भेजने के लिए राम-लक्षण नाम के दो भाइयों ने बड़ा दिल दिखाया। सारे पैसे अपनी जेब से दिए।
राम-लक्षमण ने की कश्मीरी मजदूरों की मदद
आंध्र प्रदेश में राम और लक्षमण नाम के दो जुड़वां भाई लॉकडाउन में फंसे 80 कश्मीरी मजदूरों के लिए किसी देवदूत से कम नहीं हैं। जब घर वापसी की उनकी सारी उम्मीदें टूट कर बिखर गई थीं, तब ये दोनों भाई ही उनकी मुसीबत का सहारा बनकर आए। दरअसल, आंध्र प्रदेश के पुट्टपर्थी में रह रहे उन कश्मीरी मजदूरों का अब वहां एक पल भी रहना मुश्किल हो रहा था। उनके पैसे खत्म हो गए थे। खाने की दिक्कत हो गई थी। वो लोग स्थानीय अधिकारियों से संपर्क में थे और कुछ दिनों पहले उनसे कहा गया कि वो अब अपने घर वापस जा तो सकते हैं, लेकिन इसके लिए उन्हें ट्रेन पकड़ने 436 किलोमीटर दूर हैदराबाद जाना होगा।
राज्य सरकार ने बस दिए, लेकिन 1.82 लाख रुपये वसूले
आंध्र प्रदेश प्रशासन ने मजदूरों से दो टूक कह दिया कि हैदाराबाद से उधमपुर जाने में तो उन्हें ट्रेन के टिकट के पैसे नहीं देने होंगे। लेकिन, हैदराबाद तक का इंतजाम अपनी जेब से करना होगा। स्थानीय अधिकारियों ने ये भी कहा कि वो बस का इंतजाम भी करवा देंगे, लेकिन भाड़े के 1.82 लाख रुपये का इंतजाम उन्हें खुद करना होगा। उन गरीब मजदूरों के लिए जिनके पास एक भी पैसे नहीं बचे थे, इतनी बड़ी रकम जुटाना नामुकिन नजर आ रहा था। दशकों से आंध्र प्रदेश में रह रहे उन कश्मीरी भाइयों का दुख स्थानीय कारोबारी बंधुओं राम और लक्षण राव से नहीं देखा गया। उन्होंने अधिकारियों से गुहार लगाई, स्थानीय विधायक से मदद मांगी, लेकिन किसी का दिल नहीं पसीजा।
कश्मीरी मजदूर हमारे भाई हैं- लक्षमण
आखिरकार दोनों भाइयों राम-लक्षमण ने अपनी जेब से उन कश्मीरी बंधुओं को घर भेजने का इंतजाम करना तय किया। उन्होंने फॉरन अपने पेट्रोल पंप से 1.82 लाख उन मजदूरों को दे दिया। मीडिया से फोन पर बात करते हुए लक्षमण राव ने बताया, 'हम इन कश्मीरियों को जो हमारे इलाके में रहते हैं 20 वर्षों से जानते हैं। वे हमारे भाई हैं।' दोनों भाइयों के वहां कई सोने की दुकानें हैं, रियल एस्टेट बिजनेस है और आंध्र प्रदेश में कई पेट्रोल पंप भी हैं। उन्होंने कहा कि प्रशासन का रवैया देखकर उन्होंने खुद पैसे देने का फैसला किया ताकि वे अपने घर लौट सकें।
हम समझेंगे कि समाज सेवा किया है.....
राम-लक्षमण
ने
कश्मीरियों
के
लिए
जो
दिल
खोला
है,
उसने
मजदूरों
को
बहुत
ही
भावुक
कर
दिया
है।
कश्मीरी
शॉल
और
कपड़े
बेचने
वाले
शेख
तारिक
कहते
हैं,
'जब
तक
राव
भाइयों
से
हमें
मदद
नहीं
मिली
थी,
हम
बहुत
ही
दुखी
थे।
अब
हमें
उम्मीद
है
कि
हम
घर
जा
सकते
हैं।'
दरअसल,
सोशल
डिस्टेंसिंग
के
पालन
के
लिए
उन
मजदूरों
के
वास्ते
65,000
हजार
रुपये
के
हिसाब
से
तीन
बसों
का
इंतजाम
किया
गया
था
(आंध्र
प्रदेश
स्टेट
ट्रांसपोर्ट
कॉर्पोरेशन
की
बस)।
इसकी
वजह
ये
थी
कि
इसमें
बस
की
दोंनों
तरफ
का
भाड़ा
शामिल
था।
राव
बंधुओं
ने
काफी
कोशिश
की
कि
उन्हें
30,000
रुपये
की
रियायत
दी
जाए।
तारिक
ने
भरोसा
दिया
है
कि
चाहे
मजदूरों
को
अपने
घरों
का
सामान
ही
बेचना
पड़
जाए,
वह
राव
बंधुओं
से
लिए
पैसे
बाद
में
लौटा
देंगे।
लक्षमण
राव
का
कहना
है
कि
अगर
उनके
पैसे
वापस
नहीं
भी
मिले
तो
वो
यह
समझेंगे
कि
समाज
सेवा
किया
है।
मैं
पिछले
वर्षों
में
चार
बार
कश्मीर
गया
और
उन्होंने
हमारी
बहुत
खातिरदारी
की
थी।
(रसीद
के
अलावा
सारी
तस्वीरें
प्रतीकात्मक)
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