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लॉकडाउन: क्या आगे नमक की किल्लत होने वाली है? उत्पादन घटने से बढ़ी चिंता

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नई दिल्ली- भारतीय तटीय इलाकों के आसपास रहने वाले नमक किसानों का अनुमान है कि आने वाले दिनों में लॉकडाउन की वजह से नमक के उत्पादन का पूरा चक्र बिगड़ सकता है, जिसके चलते नमक की किल्लत हो सकती है। दरअसल, नमक उत्पादन के काम में लगे लोगों को इस वक्त मजदूरों की कमी, परिवहन का अभाव और जिलों के बीच की आवाजाही में भी पाबंदियां झेलनी पड़ रही हैं, जिसके चलते कई जगहों पर नमक का उत्पादन रोक देना पड़ा है। दरअसल, नमक के उत्पादन का सीजन अक्टूबर महीने से शुरू होकर मध्य जून तक जारी रहता है। लेकिन, इस दौरान सबसे ज्यादा नमक का उत्पादन मार्च और अप्रैल के महीनों में ही होता है। लेकिन,इस साल मार्च का एक हिस्सा और पूरा अप्रैल लॉकडाउन में ही गुजर गया।

नकम उत्पादकों को उत्पादन घटने की सता रही है चिंता

नकम उत्पादकों को उत्पादन घटने की सता रही है चिंता

गुजरात, राजस्थान, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु में देश के 95 फीसदी नमक का उत्पादन होता है। जबकि, महाराष्ट्र, ओडिशा, और पश्चिम बंगाल में इसका उत्पादन होता है, लेकिन बहुत ही सीमित मात्रा में। कुल मिलाकर देश में 200 से 250 टन नमक का उत्पादन सालाना होता है। इकोनॉमिक टाइम्स के एक रिपोर्ट के मुताबिक इंडियन साल्ट मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन (ISMA) के अध्यक्ष भारत रावल का कहना है कि, 'हमनें आधा मार्च और पूरा अप्रैल गंवा दिया.....यह 40 दिन सीजन में चरम पर होता है। नमक के उत्पादन में गर्मी का एक महीना गंवाने का मतलब है दूसरे उद्योंगो का 4 अहम महीने जाया हो जाना।' रावल का कहना है कि 'हमें नहीं पता कि गंवाए हुए समय की भरपाई करने में सक्षम हो पाएंगे.....अब हमारे पास सिर्फ 45 दिन बचे हैं। हर प्रोडक्शन साइकिल को 60 से 80 दिन चाहिए- यह खास स्थान की तेजी पर निर्भर है।' उन्होंने अपनी चिंता जाहिर करते हुए कहा कि 'अगर अगले कुछ दिनों में हम अपना उत्पादन नहीं बढ़ा पाए तो ऑफ-सीजन (मानसून) शुरू हो जाएगा और बफर स्टॉक शायद उतना नहीं रहेगा। खासकर लॉकडाउन के बाद उद्योगों की ओर से मांग बढ़ गई तो इसे पूरा करना चुनौतीपूर्ण हो जाएगा।'

सीजन का मुख्य वक्त लॉकडाउन में चला गया

सीजन का मुख्य वक्त लॉकडाउन में चला गया

भारत में एक साल में 95 लाख टन नमक हम भारतीयों के खाने में खपत होती है, उद्योगों की ओर से अपने काम के लिए सालाना 110 से 130 लाख टन नमक की मांग होती है, जबकि 58 से 60 लाख टन उन देशों को निर्यात होता है, जो नमक के लिए पूरी तरह से भारत पर ही निर्भर रहते हैं। नमक की जरूरत पावर प्लांट, तेल कंपनियों, सोलर पावर कंपनियों, रसायन उद्योगों, टेक्सटाइल कंपनियों, मेटल उद्योगों, दवा कंपनियों, रबर और चमड़ा उद्योगों में होती है। अब नमक उत्पादकों को मानसून में देरी पर उम्मीदें टिकी हैं, जिसमें हर दिन की देरी उनका पिछला कोटा बढ़ाने में सहायता कर सकता है। बशर्ते कि आगे के दो महीने मानसून-पूर्व की बारिश या चक्रवात न परेशान करे। गुजरात के जामनगर के नमक निर्माता और आईएसएमए के सचिव पीआर ध्रुवे के मुताबिक, 'मौजूदा सीजन में हमनें देर से काम शुरू किया था, क्योंकि नवंबर में देर तक बारिश होती रही थी। अब अगर जल्दी बारिश शुरू हो जाती है, जैसी की भविष्यवाणी की गई है, तब नमक निर्माताओं के भारी मात्रा में बफर स्टॉक तैयार करना शायद संभव नहीं हो पाएगा।'

उत्पादकों को नहीं मिल पा रहे मजदूर

उत्पादकों को नहीं मिल पा रहे मजदूर

गौरतलब है कि आवश्यक वस्तुओं में शामिल होने के बावजूद राज्य-स्तर पर लॉकडॉउन के कड़े नियमों के चलते नमक उत्पादन पर बहुत ज्यादा असर पड़ा है। ज्यादातर नमक उत्पादक राज्यों ने औद्योगिक इकाइयों को बंद करवा दिया था और परिवहन पर भी पाबंदियां थीं। अंतर-जिला आवाजाही पर भी रोक लगाए गए थे। नमक उत्पादकों के मुताबिक, गुजरात, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु जैसे राज्य पिछड़े जिलों या दूसरे राज्यों के मजदूरों को खेतों मे काम पर लगाते हैं। इनमें से ज्यादातर लोग अपने घर वापस चले गए हैं। पीआर ध्रुवे ने कहा कि, 'नमक के ज्यादातर मैदान दूसरे जिलों के अंदरूनी इलाकों में हैं। हम मजदूरों को काम वाले जगह पर पहुंचाने में सक्षम नहीं हो रहे। सच तो ये है कि अब तक आवश्यकता के मुताबिक काम करने वाले मिल ही नहीं रहे हैं।'

कच्छ से बची है बड़ी उम्मीद

कच्छ से बची है बड़ी उम्मीद

भारत में जितना भी नमक का उत्पादन होता है, उसका सबसे बड़ा हिस्सा यानि 75 से 80 फीसदी अकेले गुजरात और उसमें भी सबसे ज्यादा उसके कच्छ इलाके से हो जाता है। भौगोलिक तौर पर यह इलाका सुखा, खुला हुआ और राज्य के दूसरे इलाकों से बहुत ही कम आबादी वाला है। यहां बरसात भी बहुत कम होती है और वह भी मौसम के आखिर में। इसलिए अभी भी उम्मीद है कि लॉकडाउन में हुई उत्पादन की कमी की भरपाई यहां से की जा सकती है। लेकिन,आईएसएमए के सदस्यों का कहना है कि फिलहाल तो कच्छ में भी लॉकडाउन की थोड़ी-बहुत मार पड़ चुकी है। कच्छ इलाके के एक नमक उत्पादक बचुभाई अहीर के मुताबिक, 'बारिश के लंबे मौसम (पिछले साल) और लॉकडाउन की वजह से उत्पादन प्रभावित हुआ है, वर्तमान में नए स्टॉक में कमी आई है। लेकिन, हम उत्पादन बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं। अब हम अपने कार्यकर्ताओं से कह रहे हैं कि नमक के मैदानों के पास ही ठहरें।'

असंगठित क्षेत्र में हैं ज्यादा नमक कार्यशाला

असंगठित क्षेत्र में हैं ज्यादा नमक कार्यशाला

आईएसएम के लोगों के मुताबिक देश में नमक उत्पादन के 12,500 कार्यशाला हैं और उनमें से 80 फीसदी असंगठित क्षेत्रों में काम कर रहे हैं। बड़ी बात ये है कि कुल नमक उत्पादन का 70 फीसदी यही असंगठित क्षेत्र पूरा करता है। इनमें से कई उत्पादक कच्चा नमक को टाटा, ग्रासिम और निरमा जैसी बड़ी कंपनियों को सप्लाई कर देते हैं। लेकिन अभी उनके लिए नमक को बड़ी फैक्ट्रियों के गेट तक पहुंचाना भी मुश्किल हो रहा है। ध्रूवे का कहना है कि इनमें से कई कंपनियां अभी बंदी की स्थिति में हैं....उनमें से कुछ की फैक्ट्रियां अभी अहमदाबाद जैसे कोविड हॉटस्पॉट में हैं।'

बड़ी कंपनी का भरोसा, नमक की कोई किल्लत नहीं होगी

बड़ी कंपनी का भरोसा, नमक की कोई किल्लत नहीं होगी

नमक किसान जरूर नमक की किल्लत होने की आशंकाएं जता रहे हैं। लेकिन, नमक के टाटा जैसे बड़े निर्माता भरोसा दे रहे हैं कि नमक की सप्लाई में कमी नहीं होगी। टाटा साल्ट बनाने वाली कपनी टाटा का दावा है कि उसका ऑपरेशन सामान्यतौर पर चल रहा है और उत्पादन में कोई कमी नहीं आई है। टाटा केमिकल्स के सीओओ शोहाब रइस के मुताबिक, 'हमारा मौजूदा स्टॉक और प्लांड ऑपरेशन ऑफ-सीजन के लिए भी पर्याप्त होगा।' उन्होंने कहा कि, 'हमें नहीं लगता कि आने वाले महीनों में नमक की कोई खास कमी होगी, कोविड के चलते प्रशासनिक पाबंदियों के चलते स्थानीय स्तर पर उपलब्धता के छोटे-मोटे मामलों को छोड़ दें तो।' नमक किसानों की आशंकाएं अपनी जगह वाजिब हैं, लेकिन बड़ी नमक कंपनियों का भरोसा भी सामान्य नहीं है और उम्मीद यही होनी चाहिए कि जब चारों ओर से प्रयास शुरू हो चुके हैं तो उत्पादन में जो भी कमी रह गई है, उसकी भरपाई भी बारिश से पहले जरूर पूरी कर ली जाएगी।

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English summary
Lockdown: Will there be a shortage of salt next? Increased concern due to decreased production
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