Lockdown: यूपी में एक दिन में औसतन 2 किसानों से भी गेहूं नहीं खरीद पा रहे हैं सरकारी खरीद केंद्र
नई दिल्ली- खराब मौसम और कोरोना वायरस के चलते जारी लॉकडाउन की वजह से उत्तर प्रदेश के गेहूं किसानों को चौतरफा मार पड़ी है। खराब मौसम के चलते किसानों का जितना नुकसान होना था वह तो हुआ ही है, ऊपर से अब न तो सरकारी खरीद केंद्र किसानों से तेजी से गेहूं खरीद रहे हैं और लॉकडाउन की वजह से न ही किसान उसे ले जाकर कहीं दूसरी जगह बेचने की स्थ्ति में हैं। उनके सामने सबसे बड़े सवाल ये है कि अगर सरकारी खरीद केंद्रों की रफ्तार इतनी ही धीमी रही तो वो कहां जाएंगे, क्या करेंगे। जबकि, औपचारिक तौर पर राज्य में पिछले 15 अप्रैल से ही गेहूं की सरकारी खरीद शुरू हो चुकी है और राज्य सरकार ने कुल 55 लाख टन गेहूं की खरीद का लक्ष्य तय कर रखा है। लेकिन, अभी तक का आंकलन करें तो एक खरीद केंद्र एक दिन औसतन करीब 1.5 किसानों से ही गेहूं खरीद पा रहे हैं।
किसानों पर मार, गेहूं नहीं खरीद पा रही सरकार!
दि वायर की एक रिपोर्ट के मुताबिक उत्तर प्रदेश के गेहूं खरीद केंद्रों पर रोजाना औसतन करीब 1.5 किसान ही अपना गेहूं न्यूनतम समर्थन मूल्य पर बेच पा रहे हैं। यूपी में बीते 15 अप्रैल से गेहूं की खरीद हो रही है। यहां कुल 5,831 खरीद केंद्रों पर यह काम चल रहा है। लेकिन, 22 दिनों बाद इतने खरीद केंद्र भी सिर्फ 1.95 लाख किसानों से ही गेहूं खरीद सके थे। यानि 22 दिनों में एक केंद्र पर औसतन 33 किसानों से गेहूं की खरीद हुई। इसे एक दिन के औसत के रूप में देखें तो लगभग रोजाना लगभग 1.5 किसानों का ही भाग्य जागा कि उनकी गेहूं एमएसपी पर बिक गई। जाहिर है इस धीमी रफ्तार से अपना गेहूं नहीं बेच पाने वाले किसानों की संख्या बहुत ही ज्यादा है। जबकि, राज्य ने इस साल 55 लाख टन गेहूं खरीद का लक्ष्य रखा है।
खरीद केंद्रों से लौटाए जा रहे हैं किसान
सरकार की ओर से तय किए गए गेहूं खरीद केंद्रों की धीमी रफ्तार की मार सीधे-सीधे गरीब किसानों पर पड़ रही है। मसलन, बिजनौर में 6 एकड़ में 50 क्विंटल गेहूं उपजाने वाले रविंदर सिंह को खरीद केंद्र से यह कहकर लौटा दिया गया कि उनके गेहूं में नमी बहुत ही ज्यादा है। आम दिन होता तो वह अपनी पैदावार को बाजार में भी बेच देते, कुछ नुकसान भी उठा लेते। लेकिन, लॉकडाउन के चलते वो गेहूं लेकर बाहर नहीं जा सकते। जाहिर है कि इस समस्या का सामना करने वाले वो यूपी के अकेले किसान नहीं होंगे। राज्य के खाद्य और नागरिक आपूर्ति विभाग की ओर से जारी आंकड़ों के अनुसार अगर बीते 7 मई तक का हिसाब देखें तो सरकार की ओर से निर्धारित 10 एजेंसियों ने अपने 5,831 खरीद केंद्रों के जरिए कुल 1,94,819 किसानों से सिर्फ 10.46 लाख टन गेहूं की ही खरीद की थी। किसानों और कृषि विशेषज्ञों के मुताबिक खरीद की यह रफ्तार बहुत ही धीमी है और आखिरकार भुगतना किसानों को ही पड़ेगा।
गेहूं का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है यूपी
केंद्रीय कृषि मंत्रालय से जुड़े कृषि लागत एवं मूल्य आयोग के अनुसार यूपी देश का सबसे बड़ा गेहूं उत्पादक राज्य है, लेकिन सच्चाई ये है कि यहां महज 7 फीसदी किसान ही न्यूनतम समर्थन मूल्य का फायदा उठा पाते हैं। अगर योगी आदित्यनाथ सरकार के पिछले तीन साल का रिकॉर्ड देखें तो वह दो साल पहले भी लक्ष्य से कम गेहूं की खरीद कर पाई थी, लेकिन एक साल उसने तय लक्ष्य से ज्यादा गेहूं खरीदा था। जैसे 2017-18 में लक्ष्य था 40 लाख मीट्रिक टन (खरीद-36.99 लाख टन), 2018-19 में लक्ष्य- 50 लाख मीट्रिक टन (खरीद- 52.92 लाख ) और 2019-20 में 55 लाख मीट्रिक टन (खरीद-37.04 लाख टन )।
तुरंत नहीं मिल पा रहा भुगतान
लेकिन, यूपी के जो किसान सरकारी खरीद केंद्रों पर एमएसपी के दर पर गेहूं बेचने में सफल भी हो जा रहे हैं, उनकी समस्या का भी हल तुरंत नहीं निकल पा रहा है। यानि, कई किसानों को पूरे पैसे का भुगतान भी फौरन नहीं मिल पा रहा है। जैसे जालौन, के निशांत पालीवाल की शिकायत है कि 30 क्विंटल गेहूं बेचे 15 दिन गुजर गए, लेकिन 57,750 रुपया बकाया ही है। वह रोज इस उम्मीद में केंद्र पर जाते हैं कि आज पैसा मिल जाएगा, लेकिन यह आज और कल का सिलसिला खत्म ही नहीं हो रहा है। वह पछता रहे हैं कि इससे अच्छा तो किसी आटा चक्की वाले को बेच देते। क्योंकि, दाम भले ही कम मिलते, लेकिन यह परेशानी तो नहीं झेलनी पड़ती। अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के अध्यक्ष वीएम सिंह का दावा है कि असल में सरकार किसानों से खरीदना ही नहीं चाहती, इसलिए इतना तामझाम बनाया गया है कि वो मजबूर होकर बाहर ही बेच दें। किसान क्या करेगा, उसे अगली फसल की तैयारी के लिए तो पैसे चाहिए।
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