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'फ़टाफ़ट' लोन देकर महामारी से जूझते लोगों को फंसाने वाले लोन-ऐप्स

जहां आमतौर किसी सरकारी बैंक से लोन लेने के लिए कई तरह के दस्तावेज़ जमा करने होते हैं, वहीं इस ऐप से लोन लेना चुटकी बजाने जितना आसान था.

By अरुणोदय मुखर्जी
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लोन ऐप्स
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लोन ऐप्स

"अगर आज अपने पैसों का भुगतान नहीं किया तो मैं आपके दोस्तों और रिश्तेदारों को कॉल करने जा रहा हूं. इसके बाद, आपको अफ़सोस होगा कि आपने कभी लोन लेने का फ़ैसला किया था."

विनीता टेरेसा को बीते लगभग तीन महीनों से इस तरह के फ़ोन कॉल आ रहे हैं और ये कॉल उनमें से एक है. लगभग हर रोज़ ही लोन-रिकवरी एजेंट के नाम से उनके पास फ़ोन आते. इन एजेंट्स के नाम अलग-अलग होते लेकिन उनका काम एक ही होता. कॉल करने के साथ ही वो उन पर चिल्लाने लगते. कई बार वो धमकी तक दे देते और बहुत बार अपमानजनक शब्दों का भी इस्तेमाल करते.

भारत में कोरोना वायरस के संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए लॉकडाउन लगाया गया था. लेकिन लॉकडाउन ने कई लोगों के सामने वित्तीय संकट पैदा कर दिया. महीनों तक चले लॉकडाउन ने कई बने-बनाए स्थापित कारोबार को बर्बाद कर दिया. लॉकडाउन की वजह से विनीता की आर्थिक स्थिति भी चरमरा गई. ऐसे में उन्होंने उन ऐप्स का रुख़ किया जो 'इंस्टेंट-लोन' यानी फ़टाफ़ट से लोन देने का दावा करते हैं.

लोन ऐप्स
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इन ऐप्स से लोन लेना बहुत आसान था. जहां आमतौर पर किसी सरकारी या ग़ैर-सरकारी बैंक से लोन लेने के लिए कई तरह के दस्तावेज़ जमा करने होते हैं, वेरिफिकेशन करानी होती है वहीं इस ऐप से लोन लेना चुटकी बजाने जितना आसान था.

उन्हें सिर्फ़ अपने बैंक अकाउंट की डिटेल देनी थी, एक मान्य पहचान पत्र देना था और रेफ़रेंस देना था. ये सबकुछ देने के मिनटों बाद लोन उनके ख़ाते में आ गया. वो ख़ुद कहती हैं- "यह बहुत ही आसान था."

महामारी ने लाखों लोगों की नौकरी छीन ली. कारोबार बंद हो गए और लॉकडाउन के इसी दौर में इस तरह के फ़टाफ़ट लोन देने वाले ढेरों ऐप्स बाज़ार में आ गए.

अब जबकि लॉकडाउन ख़त्म हो चुका है और बहुत से वेतनभोगी दोबारा से काम पर लौट चुके हैं/लौट रहे हैं, बावजूद इसके इस बात से इनक़ार नहीं किया जा सकता है कि इंजीनियर से लेकर सॉफ़्टवेयर डेवलपर्स तक और सेल्समैन से लेकर छोटे व्यापारियों के लिए भी ये दौर बेहद संघर्ष भरा रहा है. एक बड़े वर्ग ने आर्थिक तंगी झेली है और उसे दूर करने के लिए जब भी उन्हें जल्दी में पैसे की ज़रूरत पड़ी,तो उन्होंने ऐसे ही ऐप्स को मदद के तौर पर चुना.

यहां हर तरह के लोन उपलब्ध थे. जैसे महज़ 150 डॉलर यानी क़रीब दस हज़ार रुपये का लोन और सिर्फ़ 15 दिनों के लिए. इन ऐप्स ने लोन देने के लिए वन-टाइम-प्रोसेसिंग फ़ीस भी ली. हालांकि ये वन-टाइम-प्रोसेसिंग फ़ीस ब्याज दर की तुलना में तो कुछ भी नहीं थी क्योंकि लोन देने वाले इन ऐप्स ने कई बार 30% से भी अधिक के इंटरेस्ट रेट पर लोन दिया. अगर इस इंटरेस्ट रेट की तुलना भारतीय बैंकों के इंटरेस्ट रेट से करें तो यह कम से कम 10 से 20% अधिक है.

दूसरी समस्या ये भी कि इनमें से कुछ ऐप्स जहां भारतीय बैंक के लिए निर्धारित मानकों के अनुसार काम करते हैं तो कुछ इन मानकों के तहत वैध नहीं पाए गए.

लोन एप्स
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कई राज्यों में अब इस तरह लोन देने वाले दर्जनों ऐप्स की जांच की जा रही है क्योंकि कई लोगों ने इन ऐप्स पर नियमों के उल्लंघन और लोन वसूल करने के लिए आक्रामक तरीक़े अपनाने का आरोप लगाया है. वित्तीय अपराधों की जांच करने वाला प्रवर्तन निदेशालय भी अब मनी ट्रेल स्थापित करने के लिए आगे आया है. हाल ही में गूगल ने भी अपने गूगल-प्लेस्टोर से ऐसे कई ऐप्स हटा दिये हैं जिन्हें लेकर इस तरह की शिकायतें मिली थीं. या फिर जिनके संदर्भ में नियमों के उल्लंघन का प्रमाण मिला है.

अधिकारियों को इस बात के भी प्रमाण मिले हैं कि इनमें से कई ऐप्स तो ऐसे भी हैं जो भारत के केंद्रीय बैंक के साथ पंजीकृत भी नहीं थे. नियमों के उल्लंघन और पंजीकरण से जुड़े इन मामलों के सामने आने के बाद से लोगों को चेतावनी जारी की गई है कि वे अनाधिकृत डिजिटल लोन प्लेटफॉर्म या फिर ऐप्स से दूर रहें.

विशेषज्ञों का कहना है कि एक बार जब कोई लोन ले लेता है तो उनका डेटा ऐसे ही लोन देने वाले दूसरे ऐप्स के साथ भी शेयर हो जाता है. इसके बाद शुरू होता है, उस शख़्स को हाई क्रेडिट लिमिट्स पर लोन देने के नोटिफ़िकेशन्स का सिलसिला. एक के बाद एक नोटिफ़िकेशन्स आने के साथ बढ़ती जाती है उस शख़्स के फंसने की आशंका.

विनीता टेरेसा बताती है कि उन्होंने इन नोटिफ़िकेन्श के चक्कर में फंसकर ही आठ लोन ले लिये.

लेकिन सारी बात सिर्फ़ लोन लेने तक नहीं सीमित रहती.

इसके बाद शुरू होता है भंवर में फंसते जाने का सिलसिला. लोन लेने के बाद रिकवरी एजेंट्स के कॉल इस क़दर आने शुरू होते हैं कि कुछ ही दिनों में आप उनसे छुटकारा पाने के तरीक़े खोजने लग जाते हैं. और इसी में एक तरीक़ा होता है एक दूसरा लोन लेकर पहले वाले लोन का भुगतान करना.

अपना नाम ज़ाहिर ना करने की शर्त पर एक शख़्स का कहना था "ये कभी ख़त्म ना होने वाले चक्र की तरह होता है. एक लोन के बाद दूसरा लोन..दूसरे के बाद..."

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बहुत से दूसरे ऐप्स की तरह ये लोन ऐप्स भी डाउनलोड के समय पर कॉन्टेक्ट और फ़ोटो गैलरी के एक्सेस के लिए आपसे पूछते हैं. जब लोन लेने वाला शख़्स इसके लिए रज़ामंदी दे देता है तो फिर ये और अधिक जानकारी मांगने लगते हैं.

साइबर सिक्योरिटी विशेषज्ञ अमित दुबे बताते हैं, "जब मैंने इस तरह के एक मामले की जांच की तो मैंने पाया कि ये ऐप वास्तव में ना केवल आपकी कॉन्टेक्ट लिस्ट को पढ़ते हैं बल्कि उनकी पहुंच में काफी कुछ आ जाता है. वे आपकी फ़ोटोज़, वीडियो और लोकेशन पर भी नज़र रख रहे होते हैं. वे आपके बारे में काफी कुछ जान चुके होते हैं, जैसे कि आपने इस पैसे का इस्तेमाल कहां किया है या फिर आपने किसे ये पैसे ट्रांसफ़र किये हैं."

विनीता टेरेसा कहती हैं, "ये ख़तरा व्यक्तिगत भी हो जाता है. मैंने मेरे बच्चों को उस तक़लीफ़ से गुज़रते देखा है जब वो देखते थे कि मैं घंटों-घंटों फ़ोन पर लगी रहती थी. मैं बेहद परेशान हो चुकी थी. ना तो मैं अपने काम पर ध्यान दे पा रही थी और ना परिवार पर."

जेनिस मकवाना बताते हैं कि नवंबर में उनके भाई अभिषेक ने आत्महत्या कर ली और उनके इस क़दम के पीछे एक बड़ी वजह लोन-ऐप्स का वसूली के लिए किया गया उत्पीड़न भी था.

भारतीय टेलीविज़न के पटकथा लेखक अभिषेक ने भी लॉकडाउन में उस परिस्थिति का सामना किया था जिससे एक वर्ग को गुज़रना पड़ा.

जेनिस याद करते हैं- लॉकडाउन में फ़िल्म-मेकिंग का काम रुक गया. लोगों को भुगतान करना मुश्किल हो गया और इन सबसे उबरने के लिए उन्होंने क़रीब 1500 डॉलर (एक लाख रुपये से कुछ अधिक) का लोन लिया. अभी लोन लिये ज़्यादा दिन भी नहीं हुए थे कि उन्हें धमकी भरे फ़ोन कॉल आने लगे.

जेनिस कहते हैं कि इन कॉल्स का सिलसिला उनके मरने के बाद तक जारी रहा.

जेनिस मकवाना और विनीता टेरेसा दोनों ही मामलों की अब पुलिस जांच कर रही है. इसके साथ ही ऐसे ही सैकड़ों दूसरे केस पर भी पुलिस की जांच जारी है.

प्रवीण कालाइसेलवन कुछ दूसरे विशेषज्ञों के साथ मिलकर ऐसे ही मामलों की जांच कर रहे हैं. उन्होंने हमारे साथ इस तरह के मामलों से जुड़ी कुछ जानकारियां साझा कीं. वो कहते हैं, - हमें इसकी तह दर तह उधेड़नी होगी. यह समस्या इतनी छोटी नहीं, बहुत गहरी है.

प्रवीण इस मामले से उस वक़्त जुड़े जब उनके एक दोस्त ने एक ऐसे ही लोन ऐप से पैसे उधार लिये और जब वो लोन चुका नहीं सके तो उन्हें कई दूसरे लोगों की तरह धमकाया जाने लगा. इसके बाद उन्होंने इस पूरे मामले की जांच करने का फ़ैसला किया. इसके लिए उन्होंने ऐसे लोगों की एक टीम बनायी जिन्हें ऐसे ऐप्स का अनुभव था.

वो कहते हैं, "पिछले आठ महीने में मेरी टीम को 46 हज़ार से अधिक शिकायतें मिल चुकी हैं और 49 हज़ार से अधिक डिस्ट्रेस कॉल. हमें एक दिन में 100 से 200 और कभी-कभी इससे भी अधिक डिस्ट्रेस कॉल मिलते हैं."

प्रवीण ने भारत के सर्वोच्च न्यायालय में इस संबंध में एक याचिका भी दायर की. उन्होंने याचिका के माध्यम से इस तरह के लोन-ऐप्स पर प्रतिबंध लगाने की मांग की. लेकिन कोर्ट की तरफ़ से उन्हें केंद्र सरकार को संपर्क करने के लिए कहा गया है.

दिसंबर महीने में 17 लोगों को धोखाधड़ी करने, फ़र्ज़ीवाड़ा करने और उत्पीड़न करने के आरोप में गिरफ़्तार किया गया था. पुलिस का कहना है कि वे इस पूरे तंत्र से जुड़े विदेशी तार भी तलाशने की कोशिश कर रही है. लेकिन विशेषज्ञ मानते हैं कि गिरफ़्तार लोगों और डेवलपर्स के बीच संबंध स्थापित कर पाना उतना आसान नहीं होगा.

स्टेट बैंक
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स्टेट बैंक

लेकिन अमित दुबे का मानना है कि इन ऐप्स का मक़सद सिर्फ़ आर्थिक रूप से कमज़ोर लोगों को निशाना बनाना नहीं है, इनका एजेंडा इससे कहीं अधिक ख़तरनाक है.

वो कहते हैं, "इस तरह के ऐप्स चलाने वाली अदृश्य इकाइयां मुख्य तौर पर आपके डेटा पर नज़र रखती हैं और इस डेटा को बेचकर पैसे बना सकती हैं." वो कहते हैं- उनकी नज़र आपके पर्सनल डेटा पर होती है और वो इससे पैसे बना सकते हैं. ये डेटा बेचा जा सकता है और दूसरे अपराधियों से शेयर भी किया जा सकता है यहां तक कि डार्क वेब पर भी.

वो कहते हैं कि उन्हें एक ही सर्वर पर होस्ट किये गए ऐप्स का क्लस्टर मिला. जिसे एक ही डेवलेपर ने प्रोग्राम किया था और इस बात के भी साक्ष्य मिले कि उनमें से कई एक ही सोर्स साझा कर रहे थे.

विशेषज्ञ कहते हैं कि जब तक क़ानूनन इन पर लगाम नहीं लगती तब तक जागरुकता फैलाकर ही इन लोन ऐप्स के क़हर को रोका जा सकता है.

विनीता टेरेसा कहती हैं, "मैं पीड़ित नहीं कहलाना चाहती हूं. इसका मुक़ाबला करने का एकमात्र तरीक़ा यही है कि मैं लोगों से अपने अनुभव साझा करूं ताकि दूसरे मेरे अनुभव से सीख सकें.

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English summary
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