बीमा कराना इस्लाम में नाजायज, दारुल उलूम ने जारी किया नया फतवा
उलेमाओं ने तर्क दिया है कि जिंदगी और मौत अल्लाह के अधीन हैं। बीमा कराकर जो राशि आती है, वह सूद की राशि होती है और सूद को इस्लाम में हराम करार दिया गया है।
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सहारनपुर। एक ओर जहां आज लोग अपना भविष्य संवारने के लिए जीवन बीमा समेत अपनी चल व अचल संपत्ति का बीमा कराकर लाभ प्राप्त कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर देवबंदी उलेमाओं ने जीवन बीमा और चल अचंल संपत्ति के बीमे को नाजायज करार दिया है। उलेमाओं ने तर्क दिया है कि जिंदगी और मौत अल्लाह के अधीन हैं। बीमा कराकर जो राशि आती है, वह सूद की राशि होती है और सूद को इस्लाम में हराम करार दिया गया है।
'जिंदगी और मौत अल्लाह के अधीन'
चल अचल संपत्ति और जीवन बीमा कराने के मामले में गाजियाबाद के एक व्यक्ति द्वारा देवबंद से लिए गए फतवे के जवाब में मुफ्तियों ने इसे नाजायज बताया है। उलेमा का कहना है कि कोई भी बीमा कंपनी किसी इंसान की जिंदगी नहीं बचा सकती, इसलिए अल्लाह पर भरोसा रखना चाहिए, क्योंकि जिंदगी और मौत उसके हाथ में है।
गाजियाबाद के युवक ने पूछा सवाल
गाजियाबाद निवासी मोहम्मद इनाम ने मुफ्तियों से सवाल किया था कि क्या जीवन बीमा कराना चाहिए। क्योंकि इंसानी जान के अलावा चल अचल संपत्ति का भी बीमा किया जाता है और इस तरह की कंपनियां दस से पंद्रह साल तक की अवधि का बीमा करती है। इंश्योरेंस कंपनी कहती है कि पैसा कारोबार में लगाया जाता है और उसका मुनाफा बीमा धारकों में बांटा जाता है। किसी साल मुनाफा कम हो जाता है तो क्या इसका लाभ लेना जायज है?
'बीमा कंपनी जिंदगी नहीं बचा सकती'
इस प्रश्न के जवाब में मुफ्तियों की खंडपीठ ने कहा कि जान माल और चल अचल संपत्ति का बीमा कराना नाजायज है, क्योंकि जो मुनाफा मिल रहा है वो सूद यानि ब्याज की श्रेणी में आता है और इस्लाम में सूद लेना और देना दोनों ही हराम करार दिए गए हैं, इसलिए इस दृष्टिकोण से बीमा करना या कराना नाजायज है। इस पर दारुल उलूम निस्बाह के नायब मोहतमिम मौलाना नजीफ का कहना है कि बीमा से ताल्लुक जो फतवा आया है वो शरीयत की रोशनी में है, जो एकदम दुरुस्त है। बीमा कराकर रकम प्राप्त करना ये कमाई का एक चोर दरवाजा है। उन्होंने कहा कि जिंदगी और मौत अल्लाह के अधीन है, इसलिए सभी को अल्लाह पर ही भरोसा रखना चाहिए। कोई भी बीमा कंपनी किसी की जिंदगी नहीं बचा सकती।