लालू राज को लेकर 5 साल में कम हुई नाराजगी, नीतीश को जीत के लिए और लगाना होगा जोर
पटना। वो 2005 का साल था जब लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) और राबड़ी देवी के 15 साल के राज के बाद नीतीश कुमार (Nitish Kumar) बिहार की सत्ता पर काबिज हुए थे। तब नीतीश कुमार ने लालू के राज की तुलना जंगलराज से करते हुए बिहार के लोगों से मौका मांगा था। जनता ने उन्हें मौका दिया भी। 15 साल बीत गए लेकिन आज भी लालू के जंगलराज की चर्चा खत्म नहीं हो रही। 2020 के चुनाव में भी जंगलराज का जिक्र हो रहा है लेकिन जनता अब अलग तरह से देख रही है।
लोकनीति-CSDS के सर्वे के मुताबिक इस बार बिहार की जनता में लालू प्रसाद के 2005 के पहले के राज को लेकर नाराजगी कम हुई है। सर्वे में जब ये सवाल पूछा गया कि क्या लालू यादव का शासन जंगलराज था तो 43 प्रतिशत लोगों ने हां में जवाब दिया जबकि 42 प्रतिशत लोगों ने इससे असहमति जताई। यानि कि सहमत और असहमत की संख्या लगभग बराबर ही थी। यही सवाल 2015 के विधानसभा चुनाव से पहले जब पूछा गया था तो हां कहने वालों की संख्या काफी ज्यादा थी। पिछली बार 50 प्रतिशत लोगों ने इस सवाल का जवाब हां में दिया था जबकि 36 प्रतिशत लोगों ने जंगलराज नहीं माना था।
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सर्वे की खास बात ये रही कि जहां उच्च वर्ग और अन्य पिछड़ा वर्ग की जातियों में ज्यादातर लोग लालू यादव के राज को जंगलराज मानते हैं वहीं यादव, मुस्लिम और दलितों में इनकी संख्या कम है।
वहीं लालू यादव के जेल में रहने को लेकर भी लोगों में सहानुभूति बढ़ी है। जब लोगों से लालू यादव की रिहाई को लेकर सवाल किया गया था तो बहुमत उनके पक्ष में था। करीब 58 फीसदी लोग ये मानते हैं कि लालू यादव बहुत समय जेल में रह चुके और उन्हें अब रिहा कर दिया जाना चाहिए। 26 प्रतिशत लोगों की राय इसके उलट है। यहां भी विरोध करने वालों में अधिकांश राजपूत और ब्राह्मण मतदाता अधिक थे।
नीतीश
की
लोकप्रियता
घटी
वहीं
नीतीश
सरकार
के
लिए
ये
सर्वे
ज्यादा
खुशी
भरा
नहीं
है।
नीतीश
सरकार
के
कामकाज
के
सवाल
पर
28
प्रतिशत
लोगों
ने
कहा
कि
वे
पूरी
तरह
संतुष्ट
हैं
जबकि
24
प्रतिशत
लोगों
ने
कहा
कि
वे
संतुष्ट
हैं
लेकिन
पूरी
तरह
से
नहीं।
यानि
कि
नीतीश
सरकार
से
संतुष्ट
होने
वालों
का
प्रतिशत
52
है
जो
कि
बहुमत
से
ज्यादा
है।
वैसे
तो
प्रतिशत
लोगों
का
आंकड़ा
काफी
है
लेकिन
अगर
तुलना
करें
तो
ये
संख्या
कम
हुई
है।
2010
में
जब
भाजपा
और
जेडीयू
ने
साथ
मिलकर
चुनाव
जीता
था
तब
एनडीए
को
37
प्रतिशत
वोट
मिले
थे।
उस
बार
सरकार
के
कामकाज
से
संतुष्ट
लोगों
का
प्रतिशत
77
था।
वहीं
2015
के
चुनाव
पूर्व
सर्वेक्षण
में
नीतीश
सरकार
से
80
प्रतिशत
लोग
संतुष्ट
थे।
2015
के
चुनाव
में
नीतीश
और
लालू
साथ
मिलकर
चुनाव
लड़े
थे।
इस
गठबंधन
को
42
प्रतिशत
वोट
मिले
थे
और
नीतीश
ने
बहुमत
से
सरकार
बनाई
थी।
वहीं
इस
बार
के
सर्वेक्षण
में
52
प्रतिशत
लोग
ही
संतुष्ट
हैं
यानि
कि
नीतीश
कुमार
को
पुराना
प्रदर्शन
दोहराने
के
लिए
और
मेहनत
करने
की
जरूरत
होगी।
भाजपा
का
सीएम
देखना
चाहते
हैं
लोग
भले
ही
नीतीश
कुमार
की
लोकप्रियता
में
पिछली
बार
की
तुलना
में
कमी
आई
है
लेकिन
वोटरों
की
पसंद
में
एनडीए
अभी
भी
महागठबंधन
के
मुकाबले
आगे
है।
हालांकि
सर्वे
में
कई
सारे
मतदाताओं
ने
भाजपा
का
सीएम
बनने
की
इच्छा
भी
जताई
है।
करीब
10
फीसदी
की
पसंद
भाजपा
के
सुशील
मोदी
भी
हैं।
वहीं
महागठबंधन
में
केवल
तेजस्वी
और
लालू
का
नाम
ही
है।
महागठबंधन
के
दूसरे
सहयोगियों
कांग्रेस
और
वामदलों
में
जनता
को
कोई
भी
चेहरा
नजर
नहीं
आता
जो
कि
इन
दलों
के
लिए
चिंता
का
विषय
होना
चाहिए।
Bihar Elections 2020: जिस शराबबंदी का दावा कर नीतीश मांग रहे वोट वो कितना सच ?