किसी भी गैर-एनडीए गठबंधन को समर्थन देने को तैयार है वामदल लेकिन ममता ने बढ़ाई मुश्किलें
नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव 2019 (Lok Sabha Elections 2019) के तहत 19 मई को आखिरी चरण के मतदान के बाद इसके परिणामों पर सभी की नजरें होंगी। वहीं राजनीतिक दल भी चुनाव परिणामों को लेकर तमाम संभावनाओं के हिसाब से अपनी-अपनी रणनीति पर काम कर रहे हैं। चुनावों को लेकर आ रहे अलग-अलग दावों के बीच खंडित जनादेश को लेकर भी चर्चा है और ऐसे में देश में किसकी सरकार बनेगी, इसको लेकर अटकलों का बाजार गर्म है। वहीं, कई ऐसे दल हैं जो ना एनडीए के साथ और ना ही यूपीए के साथ और उनमें से ही वाम दल हैं जो भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार को सत्ता से दूर रखने के लिए किसी भी गैर-एनडीए गठजोड़ का समर्थन करने को तैयार हैं।
टीएमसी का समर्थन बंगाल में आत्मघाती होगा- सीपीआईएम
वाम दल केंद्र की भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार की जगह किसी भी वैकल्पिक गठबंधन को बाहर से समर्थन देने के लिए तैयार हैं। लेकिन वे ममता बनर्जी के ऐसे गठबंधन का हिस्सा बनने की संभावनाओं पर असमंजस की स्थिति में हैं। सीपीआई(एम) के सूत्रों के हवाले से एक नेता ने कहा, 'हम वास्तव में नहीं जानते कि ऐसी स्थिति पैदा होने पर क्या करना चाहिए। तृणमूल का समर्थन करना हमारे लिए बंगाल में आत्मघाती साबित होगा। लेकिन भाजपा को सत्ता से बाहर रखना भी जरूरी है।
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बीजेपी को हराओ, तृणमूल को हराओ- सीपीआईएम का बंगाल में नारा
2014 के लोकसभा चुनावों में 34 सीटें जीतने वाली टीएमसी ने पश्चिम बंगाल में 34 साल बाद वाम मोर्चा को सत्ता से बेदखल किया था। पिछले लोकसभा चुनाव में वाम दलों के 9 सांसद चुनकर आए थे। पश्चिम बंगाल में इनका मुख्य चुनावी नारा है- "बीजेपी को हराओ, तृणमूल को हराओ"।
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वाम दलों ने पहले भी किया है यूपीए का समर्थन
वाम दलों ने मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए गठबंधन सरकार का समर्थन किया था, लेकिन 2008 के भारत-अमेरिका परमाणु समझौते को लेकर समर्थन वापस ले लिया। कांग्रेस ने बाद में टीएमसी के साथ गठबंधन किया और ममता बनर्जी ने यूपीए सरकार में रेल मंत्री के रूप में कार्य किया। वाम दल एक वैकल्पिक सरकार का समर्थन करना चाहते हैं, क्योंकि उनके नेताओं का एक वर्ग यूपीए सरकार से समर्थन वापस लेने को 'बहुत बड़ी गलती' मानता है। संसदीय मामलों के पूर्व सचिव अफजल अमानुल्लाह ने कहा कि वाम दल अपनी रणनीति के बारे में बाद में सोच सकते हैं। उन्होंने कहा, 'यदि ममता बनर्जी को 30 से अधिक सीटें मिलती हैं और वाम दल दहाई से नीचे रहते हैं तो ममता एक पसंदीदा साथी होगीं।'