'डोली रस्म' छोड़ सुनवाई में पहुंचा वकील, काम के प्रति समर्पण देख कोर्ट ने क्लाइंट को तुरंत दे दी जमानत
नई दिल्ली। भारत की अदालतों में ऐसे लाखों केस पेंडिंग पड़े हैं जिनपर समय की कमी के चलते सुनवाई नहीं हो पा रही है। कोर्ट में समय की बहुत बड़ी कीमत है, इसलिए वकील कोशिश करते हैं कि वह अपनी सुनवाई के दौरान बिल्कुल भी लेट न हों। उन्हें पता है कि अगर समय पर नहीं पहुंचे तो अगली डेट मिलने में महीनों लग जाएंगे। ऐसे में कई आरोपियों को अपनी जमानत अर्जी के लिए सालों तक इंतजार करना पड़ता है। लेकिन अगर केस लड़ने वाला वकील अच्छा है तो वह किसी भी कीमत पर अपने क्लाइंट के लिए कोर्ट पहुंच ही जाता है।
क्लाइंट को जमानत दिलाने के लिए वकील ने टाली शादी की रस्म
ऐसा ही एक दिलचस्प मामला पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट से सामने आया है जहां एक वकील ने अपने क्लाइंट को जमानत दिलाने के लिए खुद के शादी समारोह को कुछ घंटों के लिए टाल दिया। वकील का अपने पेशे के प्रति ऐसा समर्पण देखकर न्यायालय भी प्रभावित हो गया और उसके क्लाइंट को अग्रिम जमानत देदी। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक घटना 28 अक्टूबर की है जब पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय में वकील लुपिल गुप्ता ने क्लाइंट की जमानत के लिए शादी के बाद अपनी डोली रस्म को लेट कर दिया।
27 अक्टूबर को हुई थी वकील की शादी
वकील लुपिल गुप्ता की प्रतिबद्धता के देख चंडीगढ़ में स्थित कोर्ट की सिंगल जज बेंच ने वकील के क्लाइंट को जमानत दी। सुनवाई के दौरान लुपिल गुप्ता ने न्यायाधीश को बताया कि 27 अक्टूबर को उनकी शादी हुई और 28 अक्टूबर की सुबह होने वाली डोली रस्म को इस सुनवाई के लिए टाल दिया गया। कोर्ट ने पेशे के प्रति उनके इस समर्पण को देखते हुए उनकी प्रशंसा की, साथ में उनके क्लाइंट को जमानत भी दे दी।
कोर्ट ने अपने आदेश में किया वकील का जिक्र
न्यायमूर्ति अरुण मोंगा ने अपने आदेश में कहा, कल रात को इनकी (लुपिल गुप्ता) शादी हुई। वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए हो रही सुनवाई पर अपने क्लाइंट के प्रति कर्तव्य के निर्वहन के लिए इन्हें अपनी बारी के इंतजार में बैठना पड़ रहा है, इसके लिए उन्होंने शादी के बाद डोली रस्म को टाल दिया। अरुण मोंगा ने आगे कहा कि यह अदालत उन्हें एक सुखद और खुशहाल वैवाहिक जीवन की कामना करती है।
कोर्ट ने वकील के क्लाइंट को दी जमानत
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक न्यायमूर्ति मोंगा उस आरोपी की जमानत याचिका पर सुनवाई कर रहे थे जिसपर 17 महीने पहले एफआईआर दर्ज हुई थी। जिसमें 28 अक्टूबर, 2020 तक कोई चालान नहीं दायर किया गया था। आरोपी की ओर से पेश अधिवक्ता लुपिल गुप्ता ने कहा कि यदि उनकी हिरासत आवश्यक थी, तब भी वह डिफॉल्ट जमानत के हकदार है। न्यायमूर्ति मोंगा ने आरोपी को जांच अधिकारी के सामने पेश होने और जांच में शामिल होने का निर्देश देते हुए अग्रिम जमानत दे दी।
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