मां-बाप और बुजुर्गों के हक, ध्यान से पढ़िए क्या है इस पर कानून
नई दिल्ली। कहा जाता है कि बच्चपन और बुढ़ापा दोनों जीवनकाल की दो ऐसी अवस्थाएं होती हैं जहां मनुष्य को प्यार और देखभाल की सबसे ज़्यादा जरूरत होती है। हमारे देश में तो बुजुर्गों को उस पेड़ की तरह माना जाता रहा है जो जब तक खड़ा है वो तब तक तपती धूप में छांव देता रहेगा। लेकिन अक्सर ऐसे मामले देखने में आते हैं जहां बच्चें अपने बुजुर्गों की अनदेखी करते हैं। मां-बाप को संपत्ति से बेदखल कर दर-दर की ठोकरें खाने के लिए छोड़ दिया जाता है या फिर उन्हें वृद्धाश्रम की चार दिवारी में रहने को मजबूर कर दिया जाता है। दुनिया के कई देशों में सामजिक सुरक्षा को लेकर कानून हैं और बुजुर्गों की सुरक्षा के लिए खास प्रावधान किए गए हैं। हमारे देश में भी बुजुर्गों पर होने वाले अत्याचारों को रोकने के लिए कानून बनाये गए हैं और वक्त-वक्त पर देश के सुप्रीम कोर्ट ने बुजुर्गों की देखभाल को लेकर कई दिशानिर्देश दिए हैं।
घरेलू हिंसा, आपसी मतभेद और संपत्ति विवाद को लेकर अक्सर बुजुर्गों के साथ मारपीट तक की जाती है और जब बात उनके स्वास्थ्य की देखभाल और खाने पीने की होती है तो उनके साथ बेहद बुरा सलूक होता है। देश में बढ़ते इसी तरह के मामलों से निपटने और बुजुर्गों को उनका हक दिलाने के लिए, माता-पिता एवं वरिष्ट नागरिकों का भरण पोषण व कल्याण अधिनियम 2007 में प्रवाधान किए गए हैं। इस कानून के तहत बुजुर्गों के कई अधिकार हैं।
क्या कहता है कानून ?
1.कोई भी वरिष्ठ नागरिक, जिसकी आयु 60 वर्ष अथवा उससे ज्यादा है इसके अंतर्गत माता-पिता भी आते हैं, जो कि अपनी आय या अपनी संपत्ति के द्वारा होने वाली आय से अपना भरण पोषण करने में असमर्थ हैं, वो अपने व्यस्क बच्चों या रिश्तेदारों से भरण पोषण प्राप्त करने के लिए आवेदन कर सकते हैं। अभिभावक में सगे और दत्तक माता-पिता और सोतेले माता और पिता भी शामिल हैं ।
2. इस अधिनियम में ये भी प्रावधान है कि अगर रखरखाव का दावा करने वाले दादा- दादी या माता-पिता हैं और उनके बच्चे या पोता-पोती अभी नाबालिग हैं तो वो अपने रिश्तेदार जो उनकी मृत्यु के बाद उनका उत्तराधिकारी होगा पर भी दावा कर सकते हैं।
3. ऐसी परिस्थिति में जब वरिष्ठ नागरिक इस शर्त पर अपनी संपत्ति अपने उत्तराधिकारी के नाम कर चूका है कि वो उसकी आर्थिक और शारीरिक जरूरतों का भरण पोषण करेगा और ऐसे में अगर संपत्ति का अधिकारी ऐसा नहीं करता है तो माता-पिता या वरिष्ठ नागरिक अपनी संपत्ति वापस ले सकता है ।
4.वरिष्ठ
नागरिक,
माता-पिता
अपने
क्षेत्र
के
अनुविभागीय
अधिकारी(राजस्व)के
पास
लगा
सकते
हैं।
अनुविभागीय
अधिकारी
(राजस्व)
न्यायालय
द्वारा
अधिकतम
दस
हजार
रूपये
तक
प्रतिमाह
का
भरण
पोषण
खर्च
वरिष्ठ
नागरिक,
माता
पिता
को
दिलाया
जा
सकता
है।
5.
वरिष्ठ
नागरिक
या
माता
पिता
दण्ड
प्रक्रिया
संहिता
(CrPC)
की
धारा
125
के
प्रावधान
के
तहत
भी
न्यायिक
दण्डाधिकारी
प्रथम
श्रेणी
के
न्यायालय
में
भरण
पोषण
का
आवेदन
पेश
कर
सकते
हैं।
6. कानून में ये भी है कि राज्य के हर जिले में कम से कम एक वृद्धाश्रम हो ताकि वो वरिष्ठ नागरिक जिनका कोई नहीं है, इन वृद्धाश्रमों में उनकी देखभाल हो सके।
7. सरकारी अस्पतालों में बुजुर्गो के उपचार का अलग से प्रावधान है उन्हें ज्यादा वक्त तक इंतजार ना करना पड़े इसके लिए अलग से लाइन की व्यवस्था होती है।
8. वरिष्ठ नागरिकों की उपेक्षा या फिर उन्हें घर से निकाल देना एक गंभीर अपराध है और इसके लिए पांच हजार रुपये का जुर्माना या तीन महीने की कैद या दोनों हो सकते हैं।
देश के कई राज्यों में माता-पिता एवं वरिष्ट नागरिकों का भरण पोषण व कल्याण अधिनियम 2007 लागू है। लेकिन असम विधानसभा ने 2017 में बुजुर्गों के हित में एक नया बिल पास किया। असम एम्प्लॉयीज पैरंट्स रेस्पॉन्सिबिलिटी एंड नॉर्म्स फॉर अकाउंटैबिलिटी एंड मॉनिटरिंग बिल-2017 के मुताबिक अगर कोई नौकरीपेशा शख्स अपने बुजुर्ग माता-पिता की देखभाल ठीक से नहीं करता है तो हर महीने एक तयशुदा रकम उसकी तनख्वाह से काटकर उसके मां-बाप को दी जाएगी। ये कानून फिलहाल असम में सरकारी कर्मचारियों के लिए है।
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